HomeAdivasi Dailyआदिवासी दुल्हनों का प्रेग्नेंसी टेस्ट - पूर्वाग्रह नहीं तो क्या है?

आदिवासी दुल्हनों का प्रेग्नेंसी टेस्ट – पूर्वाग्रह नहीं तो क्या है?

मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल डिंडोरी जिले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं के लिए सामूहिक विवाह योजना कुछ दुल्हनों की प्रेग्नेंसी टेस्ट कराने के बाद विवादों में आ गई है.

दरअसल, राज्य सरकार ने शनिवार को अक्षय तृतीया के अवसर पर मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना के तहत नामांकित जिले के गड़ासरई मोहल्ले में 224 जोड़ों का सामूहिक विवाह कराया.

योजना के तहत, एक दुल्हन को नया जीवन शुरू करने के लिए 55 हजार रुपये की वित्तीय सहायता मिलती है (खाते में 49 हजार रुपये और शादी के खर्च पर 6 हजार रुपये).

अधिकारियों के मुताबिक पॉलिसी के मुताबिक शादी से पहले मेडिकल जांच कराना अनिवार्य है. ऐसे में भावी दुल्हनों के टेस्ट सरकारी  स्वास्थ्य केंद्र में कराए गए थे.

लेकिन इस मुद्दे ने उस समय विवाद खड़ा कर दिया जब पांच दुल्हनों के नाम लाभार्थियों की सूची से हटा दिए गए क्योंकि वे गर्भवती पाई गईं.

मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्री और क्षेत्र के आदिवासी कांग्रेस विधायक ओंकार सिंह मरकाम ने प्रशासन के इस कदम को गरीबों का ‘अपमान’ बताया है. उन्होंने इस कदम पर  आपत्ति जताई और राज्य सरकार से यह बताने को कहा कि क्या उसने उन लोगों के लिए कुछ पात्रता मानदंड निर्धारित किए हैं जो योजना का लाभ लेना चाहते हैं.

मरकाम ने कहा, “राज्य के इस गरीब क्षेत्र में युवतियों को इस तरह के परीक्षणों से अपमानित किया जा रहा है और यह निंदनीय है.”

मरकाम ने यह भी दावा किया कि उन चार-पांच दुल्हनों के नाम लाभार्थियों की सूची से हटा दिए गए, जिनका गर्भावस्था परीक्षण पॉजिटिव आया था. उन्होंने कहा, “यह उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और उनकी निजता का हनन है और मैं इस मुद्दे को मुख्यमंत्री के समक्ष उठाऊंगा.”

यह पहली बार नहीं है जब सरकार द्वारा वित्तपोषित सामूहिक विवाह से पहले गर्भावस्था परीक्षण के मुद्दे पर राज्य में विवाद खड़ा हुआ हो. 2013 में, दो आदिवासी बहुल जिलों – डिंडोरी और बैतूल में इसी तरह की घटनाओं की सूचना मिली थी.

बैतूल में आदिवासी बहुल जिले के हरड़ गांव में ‘मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना’ के तहत राज्य सरकार द्वारा आयोजित एक सामूहिक विवाह कार्यक्रम के दौरान कथित तौर पर 350 महिलाओं का कौमार्य और गर्भावस्था परीक्षण किया गया था.

एक हफ्ते बाद योजना के तहत बजक गांव में सामूहिक विवाह समारोह आयोजित करने से पहले 40 आदिवासी दुल्हनों का गर्भावस्था परीक्षण किया गया. तब यह मामला देश की संसद तक पहुंचा था. राज्य सरकार ने मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश भी दिए थे लेकिन जांच रिपोर्ट का दस साल बाद भी कहीं पता नही है.

वहीं इस कदम का बचाव करते हुए मीडिया के साथ बातचीत में डिंडोरी के कलेक्टर विकास मिश्रा ने कहा, ‘यह मिस कम्युनिकेशन का मामला है.

हमारे जिले में सिकल सेल एनीमिया एक बड़ी बीमारी है और खून का परीक्षण करने के लिए भारत सरकार के दिशानिर्देश हैं, इसलिए जब भी हम ऐसी शादियां करते हैं तो यह टेस्ट जरूर करते हैं.’

उन्होंने कहा कि जो महिलाएं इस योजना का लाभ उठाना चाहती हैं, प्रशासन उनका ने तो ‘वर्जिनिटी टेस्ट’ कराता है और न ही प्रेगनेंसी टेस्ट. हमारे द्वारा ऐसा कोई टेस्ट नहीं किया गया है. महिलाओं ने खुद कहा कि उनके पीरियड्स मिस हो गए हैं.

लेकिन अब इस मामले ने एक बड़ा राजनीतिक विवाद उत्पन्न कर दिया है. कांग्रेस ने सवाल किया है कि टेस्ट का आदेश किसने दिया. कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार ने प्रेग्नेंसी टेस्ट कराकर महिलाओं का अपमान किया है.

पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ट्वीट कर कहा, ‘डिंडौरी में मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत किए जाने वाले सामूहिक विवाह में 200 से अधिक बेटियों का प्रेगनेंसी टेस्ट कराए जाने का समाचार सामने आया है. मैं मुख्यमंत्री से जानना चाहता हूं कि क्या यह समाचार सत्य है? यदि यह समाचार सत्य है तो मध्य प्रदेश की बेटियों का ऐसा घोर अपमान किसके आदेश पर किया गया?’

उन्होंने आगे कहा, ‘क्या मुख्यमंत्री की निगाह में गरीब और आदिवासी समुदाय की बेटियों की कोई मान मर्यादा नहीं है? शिवराज सरकार में मध्य प्रदेश पहले ही महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार के मामले में देश में अव्वल है. मैं मुख्यमंत्री से मांग करता हूं कि पूरे मामले की निष्पक्ष और उच्च स्तरीय जांच कराएं और दोषी व्यक्तियों को कड़ी से कड़ी सजा दें. यह मामला सिर्फ प्रेगनेंसी टेस्ट का नहीं है, बल्कि समस्त स्त्री जाति के प्रति दुर्भावनापूर्ण दृष्टिकोण का भी है.’

आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की महिलाओं के विवाह के लिए मुख्यमंत्री कन्या विवाह/निकाह योजना अप्रैल 2006 में शुरू की गई थी

आदिवासी समाज

आदिवासियों समुदायों में खास तौर पर सेक्स को लेकर लड़की या महिला को लांक्षित करने या प्रताड़ित करने का रिवाज नहीं रहा है. उनकी एक अलग जीवन शैली है. मध्य प्रदेश में हर साल होने वाले भगोरिया मेले इसका जीवंत उदाहरण हैं.

आदिवासी समाज के अपने नियम हैं. उनकी अपनी मान्यताएं हैं. सेक्स और महिलाओं को लेकर उनकी धारणा कट्टर नहीं है. इसी वजह से अक्सर लड़के-लड़कियां साथ रह कर बच्चे तो पैदा कर लेते हैं. लेकिन समाज को दावत देने के लिए पर्याप्त धन न होने की वजह से वह शादी नहीं कर पाते हैं.

ऐसे में डिंडोरी जिले में सामूहिक विवाह के दौरान जो हुआ उसे ठीक नहीं कहा जा सकता है. स्थानीय अधिकारियों को आदिवासी समाज के प्रति संवेधनशील नज़रिया अपनाना चाहिए.  अगर आदिवासियों को यह लगता है कि राज्य सरकार आदिवासी समाज पर अपने नियम थोप रही है, तो यह सरकार पर समुदाय के भरोसे को तोड़ सकता है. 

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