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मोदी सरकार आदिवासियों से शिक्षा और संस्कृति के वादे कब पूरा करने में बुरी तरह विफल

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ख़ुद देश के आदिवासियों के लिए बेहतरीन योजनाएं शुरू करने का दावा कई बार किया है. लेकिन जब ज़मीन पर इन दावों को परखा जाता है तो ये खोखले साबित होते हैं.

एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) और Tribal Freedom Fighters’ Museums जैसी आदिवासी मामलों के मंत्रालय (Ministry of Tribal Affairs – MoTA) की दो बड़ी योजनाओं को समय सीमा के भीतर लागू करने में बुरी तरह से विफल रही है.

EMRS योजना की घोषणा वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 2018–19 के बजट भाषण में की थी. उस समय इस वित्तमंत्री ने कहा था कि 2022 तक 740 EMRS देशभर में स्थापित कर दिए जाएँगे. 

सरकार ने कहा कि दूरदराज़ और शैक्षिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी बच्चों को नवोदय विद्यालयों जैसी गुणवत्तापूर्ण आवासीय शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए यह योजना शुरू की जा रही है. 

लेकिन समाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय से जुड़ी संसदीय रिपोर्ट बताती है कि मंजूरी मिलने के बावजूद जमीनी स्तर पर निर्माण का काम ठप पड़ा रहा है.

सरकार ने 720 स्थानों पर एकलव्य स्कूलों को स्वीकृति दे दी है. लेकिन सच्चाई ये है कि, केवल 477 EMRS ही आज तक चालू हालत में आ सके हैं. 

इनमें से भी सिर्फ 341 अपनी बिल्ड़िंग में संचालित हो रहे हैं. बाकी विद्यालय किराए या अस्थायी ढांचों में चल रहे हैं. यानि इन स्कूलों में न प्रयोगशालाएँ हैं, न खेल के मैदान, और न ही वह बुनियादी शिक्षकीय माहौल जिसे EMRS मॉडल का आधार माना गया था.

संसदीय स्थायी समिति ने कहा है कि यह देरी केवल प्रशासनिक लापरवाही का संकेत नहीं है, बल्कि अनुसूचित जनजातियों के शिक्षा और सांस्कृतिक अधिकारों पर सीधा प्रहार है.

समिति ने साफ कहा है कि भूमि उपलब्ध न होना, कागज़ी मंजूरियाँ और सुस्त कार्यप्रणाली मिलकर इन योजनाओं को वर्षों पीछे धकेल चुके हैं—जिसका खामियाजा देश के सबसे कमजोर आदिवासी समुदायों को उठाना पड़ रहा है.

पुराने EMRS विद्यालयों की हालत सुधारने के वादे के मामले में भी कुछ अच्छी रिपोर्ट नहीं है. सरकार ने कहा था कि 211 स्कूलों की पहचान अपग्रेडेशन के लिए की गई है. इस सिलसिले में अभी तक 192 प्रस्ताव स्वीकृत हुए, लेकिन मंत्रालय यह तक नहीं बता पाया कि यह काम कब पूरा होगा. 

इस मामले में समिति ने नाराज़गी जताते हुए कहा है कि यह “गंभीर लापरवाही” है और जब तक भूमि उपलब्धता की प्रक्रिया सुनिश्चित न हो, तब तक नए EMRS की मंजूरियाँ रोक दी जानी चाहिए. 

समिति ने कहा है कि क्योंकि कागज़ों पर योजनाएँ बनाना और ज़मीन पर स्कूल न मिलना—आदिवासी विद्यार्थियों के साथ अन्याय है.

योजनाओं में देरी का सबसे गहरा असर बच्चों पर पड़ता है. हर साल स्कूल नहीं बनने का अर्थ है कि सैकड़ों आदिवासी बच्चे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अवसर से वंचित रह जाते हैं. 

यह वह शिक्षा है जो उन्हें उच्च और प्रोफेशनल संस्थानों में प्रतिस्पर्धा करने का आत्मविश्वास दे सकती थी. लेकिन जब विद्यालय ही किराए की चारदीवारियों में समेट दिए जाएँ, तो ‘आवासीय शिक्षा’ बस एक अधूरी अवधारणा बनकर रह जाती है. 

समिति ने रिपोर्ट में कहा है कि यह देरी आदिवासी बच्चों के जीवन से “अवसर” छीनने के बराबर है.

इसी तरह जनजातीय कार्य मंत्रालय की Tribal Freedom Fighters’ Museums की स्थिति भी निराशाजनक है. इन संग्रहालयों का उद्देश्य देश की आज़ादी में आदिवासी नायकों—जैसे बिरसा मुंडा, रानी गैदिनल्यू, ताना भगत—के योगदान को राष्ट्रीय स्मृति का हिस्सा बनाना था. 

मंत्रालय ने वादा किया था कि 2022 के अंत तक 11 संग्रहालय पूरे कर दिए जाएँगे, लेकिन आज तक केवल 3 ही म्यूज़ियम तैयार हुए हैं. 

संसदीय समिति ने मंत्रालय से बार-बार पूछा कि बाकी संग्रहालय कब पूरे होंगे—विशेषकर वे जिनके लिए नवंबर 2025 और मई 2026 की समयसीमा तय की गई थी—लेकिन मंत्रालय स्पष्ट जवाब तक नहीं दे पाया है.

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