HomeMain Bhi Bharatबाथौ धर्म कैसे बलि से मंदिर की तरफ़ बढ़ गया है

बाथौ धर्म कैसे बलि से मंदिर की तरफ़ बढ़ गया है

बोड़ो समुदाय की धार्मिक मान्यताओं में काफ़ी बड़े बदलाव आ रहे हैं. यह समुदाय अब एक संगठित धर्म के रास्ते पर चल पड़ा है.

असम में बोड़ोलैंड (Bodoland) के इलाके में रहने वाले सबसे बड़े समूह यानि बोड़ो समुदाय (Bodo Tribe) की धार्मिक आस्थाओं से जुड़े बड़े बदलाव आ रहे हैं.

बोड़ो समुदाय के धार्मिक रीति-नीति में आ रहे बदलाव को सामाजिक सुधार की तरह भी देखा जा सकता है.

लेकिन बोड़ो समुदाय के धार्मिक क्रिया-कलापों या विधि-विधानों में जिस तरह का बदलाव दर्ज हो रहा है वह संकेत करता है कि अब यह समुदाय अपने धर्म को एक संगठित रुप देने की कोशिश कर रहा है.

बोड़ो समुदाय के धर्म को बाथौ (Bathou) के नाम से जाना जाता है.

बाथौ धर्म मूलत: प्रकृति की पूजा (animist) करने वाले लोगों का धर्म है. इसमें एक केक्टस के पौधे (Cactus Plant) की पूजा होती है.

इस पूजा में बोडो समुदाय के लोग किसी पक्षी या पशु की बलि देते हैं. इसके अलावा घर पर बनी देसी शराब भी अपने देवी-देवताओं और पुरखों को चढ़ाई जाती है.

बाथौ धर्म मानने वाले लोगों की मान्यता है कि वे जिस पौधे ‘सीजु’ की पूजा करते हैं वह खुले आसमान के नीचे ही होना चाहिए. शायद इसलिए बाथौ धर्म मानने वाले लोगों ने कभी मंदिर का निर्माण नहीं किया.

अब ये मान्यताएं बदल रही हैं. बाथौ धर्म के लोग देवी-देवताओं के मंदिर बना रहे हैं. इसके अलावा अब धीरे धीरे बोडो समुदाय के लोग बलि विधान से अलग हो रहे हैं.

हांलाकि अपने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए अभी भी पक्षियों या पशुओं की बलि का विधान पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुआ है. लेकिन शराब का इस्तेमाल लगभग बंद हो चुका है.

बाथौ धर्म में ये बदलाव क्यों और कब शुरू हुए इसके बारे में विस्तार से जानने के लिए आप यहां वीडियो लिेंक पर क्लिक करके देख सकते हैं.

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