देश में जनगणना का मुख्य उद्देशय देश की जनसंख्या की गिनती के अलावा कई तरह की जानकारी के ज़रिए ज़रुरी आंकड़े जुटाना होता है.
जनगणना के आंकड़ों के ज़रिए देश के अलग अलग समुदायों की सामाजिक-आर्थिक हालतों का अंदाज़ा लगाया जाता है.
इस लिहाज़ से देश के सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़े समुदायों के लिए जनगणना बेहद ज़रुरी मानी जाती है.
क्योंकि जब जनगणना के ज़रिए समाज के सामाजिक तौर पर पिछड़े समूहों के सही सही आंकड़े हासिल होते हैं तभी सरकारें उनके उत्थान के लिए काम कर पाती है.
इस सिलसिले में देश में जातिवार जनगणना की मांग का ज़िक्र किया जा सकता है. लेकिन इस मांग को उठाने वालों का ध्यान अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) पर ज़्यादा है.
देश के आदिवासियों की ज़्यादा चर्चा इस बहस में नहीं होती है. जबकि देश में आदिवासियों की जनसंख्या के बारे में बहस होती रही है.
सरकारी एजेंसियां यह मान कर चलती हैं कि देश में कुल जनसंख्या का 7-8 प्रतिशत आदिवासी समूहों का है. जबकि कई आदिवासी संगठन और कार्यकर्ता यह दावा करते हैं कि देश में आदिवासी जनसंख्या करीब 15 करोड़ यानि 10 प्रतिशत है.
जनगणना में आदिवासियों की जनसंख्या ही नहीं बल्कि उसकी पहचान भी एक ज़रुरी मुद्दा है. झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों में रहने वाले कई आदिवासी समुदाय जनगणना में ‘सरना’ धर्म का अलग कॉलम मांग रहे हैं.
वहीं दूसरी तरफ़ कई संगठन यह कहते हैं कि जिन आदिवासियों ने ईसाई या इस्लाम धर्म को नहीं अपनाया है उन पर हिंदू धर्म की पहचान नहीं थोपी जानी चाहिए.
इसलिए जनगणना में आदिवासी या प्रकृति धर्म का अलग कॉलम ज़रुर होना चाहिए.
इसके अलावा आदिवासियों में भी जो सामाजिक और आर्थिक तौर पर बेहद पिछड़े हुए हैं यानि PVTG की भी अलग से गिनती की ज़रुरत बताई जाती रही है.
भारत के पीवीटीजी जिन्हें आमतौर पर आदिम जनजाति कहा जाता है, उनमें से कई ऐसे हैं जिनकी जनसंख्या लगातार कम हो रही है.
दुनिया भर में यह चिंता प्रकट की जाती है कि भारत के आदिम समुदायों में से कई हैं जो अब लुप्तप्राय हैं.
अब जनजातीय कार्य मंत्रालय (MoTA) ने भारत के महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त (RGI) से आगामी जनगणना प्रक्रिया में सबसे हाशिए पर स्थित विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTGs) को अलग से दर्ज करने पर विचार करने को कहा है.
मंत्रालय ने बताया कि PVTGs की सटीक गणना से लक्षित कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में मदद मिलेगी.
अगर यह प्रस्ताव अंतिम रूप ले लेता है तो यह पहली बार होगा कि जनगणना में पीवीटीजी की अलग से गणना की जाएगी.
वर्तमान में भारत में 18 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश (अंडमान और निकोबार द्वीप समूह) में 75 पीवीटीजी हैं. इनकी पहचान निम्न साक्षरता स्तर, भौगोलिक दूरस्थता, कृषि-पूर्व तकनीकी स्तर और आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर की गई है.
जनगणना में शामिल नहीं हो पाते PVTGs
करीब 40 पीवीटीजी को सिंगल एंट्री के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और जनगणना में व्यापक अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes) श्रेणी में गिना जाता है.
उदाहरण के लिए, पिछली 2011 की जनगणना में इन 40 समूहों को इसलिए गिना गया क्योंकि वे अधिसूचित एसटी का हिस्सा थे.
ऐसा माना जा रहा है कि जनजातीय कार्य मंत्रालय ने पिछले महीने RGI को पत्र लिखकर पीवीटीजी परिवारों और लोगों की संख्या और उनकी विशिष्ट जनसांख्यिकीय, सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक विशेषताओं को दर्ज करने की व्यवस्था करने का अनुरोध किया था.
मंत्रालय ने कहा कि पीवीटीजी आबादी के सबसे हाशिए पर और सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े कमजोर वर्गों में से एक हैं और इसलिए उनकी आबादी और सामाजिक-आर्थिक संकेतकों पर एक समेकित डेटाबेस होना बेहद जरूरी है.
पूर्व आईएएस अधिकारी और ओडिशा राज्य जनजातीय संग्रहालय के पूर्व निदेशक, प्रोफेसर ए बी ओटा ने कहा कि 75 में से 40 पीवीटीजी को राष्ट्रपति के आदेश के तहत एसटी सूची में शामिल किया गया है और इसलिए वे जनगणना के अंतर्गत आते हैं.
उन्होंने कहा, “हालांकि, बाकी के पीवीटीजी, जो अक्सर बड़े एसटी समुदायों के भीतर उप-समूह होते हैं, जनगणना में स्पष्ट रूप से गणना नहीं की जाती है. उनकी वास्तविक स्थिति की जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाती. यह आंकड़ों की कमी नीति निर्माताओं के लिए बड़ी चुनौती है.”
उन्होंने आगे कहा, “आंकड़ों का यह अंतर नीति निर्माताओं और योजनाकारों के लिए लक्षित, आवश्यकता-आधारित कार्यक्रम तैयार करने में महत्वपूर्ण चुनौतियां पेश करता है.”
ओटा ने कहा कि अगर पीएम-जनमन (प्रधानमंत्री जनजाति न्याय महा अभियान) जैसी हालिया पहलों ने कुछ आंकड़े इकट्ठा करना शुरू कर दिया है. लेकिन अब व्यापक स्तर पर जनगणना में पीवीटीजी की अलग गिनती करना जरूरी हो गया है.
नवंबर 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड के 200 से अधिक जिलों में पीवीटीजी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए पीएम-जनमन योजना की शुरुआत की.
इस योजना का मुख्य उद्देश्य तीन वर्षों में पीवीटीजी बस्तियों और घरों में सड़क निर्माण, स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर विद्युतीकरण तक, बुनियादी सुविधाओं की आपूर्ति को पूर्ण करना है. इसे नौ संबंधित मंत्रालयों के माध्यम से क्रियान्वित किया जा रहा है.
योजना शुरू होने पर केंद्र ने कहा था कि पीवीटीजी की अनुमानित जनसंख्या 28 लाख है.
जनजातीय कार्य मंत्रालय और राज्यों ने पीवीटीजी की जनसंख्या का अनुमान लगाने और सुविधाओं व इंफ्रास्ट्रक्चर में कमियों की पहचान करने के लिए पीएम गति शक्ति मोबाइल एप्लिकेशन का उपयोग करके बस्ती-स्तर पर डेटा संग्रह का कार्य किया.
इस सर्वेक्षण के आधार पर इस महीने लोकसभा में जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा दिए गए जवाब के मुताबिक, पीवीटीजी की अनुमानित जनसंख्या 45.56 लाख है.
पीवीटीजी जनसंख्या के मामले में मध्य प्रदेश (12.28 लाख), महाराष्ट्र (6.2 लाख) और आंध्र प्रदेश (4.9 लाख) शीर्ष तीन राज्यों में हैं.
भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक प्रोफेसर कमल के मिश्रा ने कहा कि पीवीटीजी की गणना से पहले, एक विशेषज्ञ समिति को संभवतः पीवीटीजी श्रेणी में समुदायों को शामिल करने के मानदंडों के संशोधन पर विचार करना चाहिए.
उन्होंने कहा, “नामकरण के कारण राज्यों में ओवरलैप्स हैं और कुछ मामलों में कुछ समूहों को छोड़ दिया गया है. वर्तमान में पीवीटीजी में 75 समूहों की पहचान की गई है और यह संख्या बढ़ या घट सकती है. इसलिए केवल मानदंडों में संशोधन से ही जानकारी को अद्यतन करने में मदद मिल सकती है.”
मिश्रा ने कहा कि एक बार पीवीटीजी की गिनती के बाद एक डेवलपमेंट इंडेक्स तैयार किया जाए, ताकि यह तय हो सके कि किन समूहों को तत्काल विकास कार्यों की ज्यादा आवश्यकता है, क्योंकि सभी समूहों की स्थिति समान नहीं है.
2027 की जनगणना का रोडमैप
इस साल जून में केंद्र सरकार ने 2027 की जनगणना की अधिसूचना जारी की और घोषणा की कि यह जाति गणना के साथ-साथ दो चरणों में आयोजित की जाएगी.
मकान सूचीकरण और आवास जनगणना का पहला चरण अप्रैल 2026 से शुरू होगा और उसके बाद जनसंख्या गणना का दूसरा चरण शुरू होगा.