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आदिवासी कैदी को इलाज देने से इनकार करने पर सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हाई कोर्ट को लगाई फटकार

29 फरवरी को मणिपुर हाई कोर्ट ने जेल में कैद एक आदिवासी को इसलिए इलाज के लिए मना कर दिया क्योंकि उस समय राज्य में तानव का महौल था. हाई कोर्ट के इसी फैसले की सुप्रीम कोर्ट ने निंदा की है.

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हाई कोर्ट को फटकार लगाई. अक्टूबर 2022 को एक आदिवासी व्यक्ति को दो किलोग्राम ब्राउन शुगर रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.

जेल में कैद आदिवासी गंभीर रूप से बीमार पड़ने लगा, लेकिन हाई कोर्ट ने आदिवासी को इलाज करने की अनुमति नहीं दी. राज्य में तब जातीय संघंर्ष भी अपने चरण सीमा में थी.

सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इसी फैसले की निंदा की है. आदिवासी का नाम लूनखोंगजम हाओकिप बताया जा रहा है.

3 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासी को इलाज के लिए गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज में भेजने का आदेश दिया.

इसके साथ ही उन्होंने 29 फरवरी 2024 को इस मामले में हाई कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश की आलोचना भी की है.

ऐसा बताया जा रहा है कि हाई कोर्ट ने आदिवासी को जेल से बाहर इलाज़ करने की अनुमति इसलिए नहीं दी क्योंकि वह आदिवासी समुदाय से था और कानून एवं व्यवस्था की स्थिति को देखते हुए यह खतरनाक हो सकता था.

मणिपुर में पिछले साल से ही मैतई और कुकी समुदाय के बीच संघंर्ष चल रहा है.

इस संघंर्ष में 200 से अधिक लोगों की जान चली गई. इसके अलावा हज़ारों की संख्या में लोग घायल और बेघर हो गए.

इस संघंर्ष को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट को भी हस्तक्षेप करना पड़ा. सुप्रीम कोर्ट में याचिका के दौरान यह भी सामने आया कि आदिवासी आरोपी लंबे समय से बीमार था.

जेल में एक चिकित्सा अधिकारी ने उसकी जांच की थी.

चिकित्सा अधिकारी की जांच में पता चला कि उसे बवासीर, टीबी, क्रोनिक टॉन्सिलिटिस, पेट दर्द है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश के दौरान यह भी कहा कि अगर मेडिकल रिपोर्ट में कुछ भी गंभीर बात सामने आई है, तो वह राज्य सरकार के खिलाफ कार्रवाई करेंगे.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “ वह एक अपराधी हो सकता है. ये भी हो सकता है कि उसने कुछ गंभीर अपराध किया हो. लेकिन उसे चिकित्सा मुहैया कराना राज्य का दायित्व बनता है.

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