छत्तीसगढ़ विधानसभा में बुधवार को गृह मंत्री विजय शर्मा और विपक्षी कांग्रेस सदस्यों के बीच माओवादी प्रभावित बस्तर क्षेत्र में चल रही मुठभेड़ों के मुद्दे पर तीखी बहस हुई.
इस बहस में ग्रामीणों की फर्जी मुठभेड़ में हत्या और उन्हें माओवादी साबित करने के लिए बंदूकों के बड़े पैमाने पर इस्तेमाल के मुद्दे पर तीखी बहस हुई.
विपक्ष के नेता चरणदास महंत ने आरोप लगाया कि मुठभेड़ के बाद पुलिस ने निर्दोष मृतकों के शवों के पास बंदूक रख दी और उन्हें नक्सली बता दिया.
इस साल मई में बीजापुर के पिड़िया जंगलों में हुई मुठभेड़ पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस सदस्यों ने दावा किया कि मुठभेड़ में मारे गए लोग निर्दोष ग्रामीण थे जो तेंदू पत्ता इकट्ठा करने जंगल गए थे और वे नक्सली नहीं थे.
वहीं आरोपों को नकारते हुए गृहमंत्री विजय शर्मा ने कहा कि कांग्रेस नक्सलियों का समर्थन करना बंद करे.
इस पर सदन में शोरगुल हुआ और विपक्षी सदस्यों ने नारेबाजी की.
दरअसल, प्रश्नकाल के दौरान विपक्ष के नेता चरणदास महंत ने उपमुख्यमंत्री से दिसंबर 2023 से इस साल जून तक नक्सली घटनाओं का आंकड़ा पेश करने और यह स्पष्ट करने को कहा कि मारे गए माओवादियों के कब्जे से बरामद बंदूकें काम कर रही थीं या नहीं.
उन्होंने आरोप लगाया कि सुरक्षाकर्मियों ने ऑपरेशन के दौरान बंदूकें ले लीं और नक्सलियों से मुठभेड़ के दौरान उन बंदूकों को शव के पास रख दिया गया, भले ही वे निर्दोष ग्रामीण ही क्यों न हों.
महंत ने नक्सली घटनाओं में विचाराधीन और दोषी ठहराए गए लोगों की संख्या के बारे में भी पूछा.
सवाल का जवाब देते हुए उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने कहा कि 273 नक्सली घटनाओं में माओवादियों और सुरक्षा बलों के बीच 92 मुठभेड़ें हुईं, जिनमें 19 जवान शहीद हुए, 88 घायल हुए जो अब लगभग ठीक हो गए और पिछले सात महीनों में माओवादियों ने 34 नागरिकों की हत्या की.
इन मारे गए 34 लोगों में से चार को माओवादियों की जन अदालत में मौत की सजा सुनाई गई और 24 को पुलिस मुखबिर के तौर पर काम करने के आरोप में मार दिया गया जबकि छह की मौत आईईडी विस्फोटों में हुई.
विजय शर्मा ने आगे कहा, “मैंने एक लिखित जवाब भी पेश किया है जिसमें कहा गया है कि पिछले सात महीनों में 137 नक्सली मारे गए और 171 गिरफ्तार किए गए. जेल में 790 नक्सली हैं, जिनमें 765 विचाराधीन और 25 दोषी हैं.”
उन्होंने कहा कि राज्य और राज्य के बाहर मारे गए नक्सलियों का कोई वर्गीकरण नहीं है. मुठभेड़ों में मारे गए लोग निर्दोष ग्रामीण नहीं हैं, बल्कि उनके खिलाफ कई पुलिस थानों में मामले और एफआईआर दर्ज हैं.
इसके बाद कांग्रेस विधायक कवासी लखमा और विक्रम मंडावी ने बीजापुर जिले में पिड़िया मुठभेड़ का मामला उठाया और आरोप लगाया कि 600 सशस्त्र सुरक्षाकर्मियों द्वारा किए गए ऑपरेशन में 11 ग्रामीण मारे गए और 10 बंदूकें बरामद की गईं.
उन्होंने कहा कि बंदूकें फर्जी मुठभेड़ों के बाद बरामद दिखाई जाती हैं.
लेकिन उपमुख्यमंत्री ने आरोप पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि इस बयान को स्वीकार नहीं किया जा सकता और इससे सुरक्षा बलों के मनोबल पर असर नहीं पड़ना चाहिए, जो जमीन पर लड़ाई लड़ रहे हैं.
इसके बाद कांग्रेस सदस्यों ने नारे लगाना शुरू कर दिया कि सरकार को निर्दोष आदिवासियों को निशाना बनाना बंद करना चाहिए और फर्जी मुठभेड़ों को रोकना चाहिए.
माओवादी मुठभेड़ और आदिवासी
छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों और नक्सलियों के संघर्ष के बीच फंसे आदिवासी अब हिंसा और अस्थिरता के बीच जीवन जीने को मजबूर हैं.
दिसंबर 2023 में जब से भाजपा सरकार ने पहले आदिवासी मुख्यमंत्री विष्णु देव साई के नेतृत्व में सत्ता संभाली है, तब से नक्सलियों की मौत, गिरफ्तारी और आत्मसमर्पण की संख्या में पाँच गुना वृद्धि हुई है.
जिसमें राज्य की शक्ति के मनमाने इस्तेमाल और “ऑपरेशन प्रहार” के हिस्से के रूप में फर्जी मुठभेड़ों के गंभीर आरोप हैं.
सरकार ने आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ने वालों पर भी एक साथ कार्रवाई शुरू की है, उनका दावा है कि उनके माओवादियों से संबंध हैं.
अप्रैल 2022 में कांकेर में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा की थी: “हम अगले दो वर्षों में छत्तीसगढ़ से नक्सलियों को जड़ से उखाड़ फेंकेंगे.” और अब ऐसा ही होता दिख रहा है.
सुरक्षा बलों का दावा है कि उन्होंने कई शीर्ष माओवादी नेताओं को मार गिराया है और विद्रोहियों के नेटवर्क में सेंध लगाई है.
राज्य पुलिस और अर्धसैनिक बलों जैसे केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस और सीमा सुरक्षा बल सहित सुरक्षा बलों ने पिछले छह महीनों में मुठभेड़ों में कम से कम 130 नक्सलियों को मार गिराने का दावा किया है.
लेकिन राज्य सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि वो निर्दोष आदिवासियों को नक्सली बताकर फर्जी मुठभेड़ कर रही है.
छत्तीसगढ़ में फर्जी मुठभेड़ों और गिरफ्तारियों के आरोप नए नहीं हैं. सीआरपीएफ की कोबरा इकाई पर 17-18 मई, 2013 की रात को बीजापुर जिले के एडेसमेटा में तीन नाबालिगों सहित आठ लोगों की हत्या करने और कई ग्रामीणों को घायल करने का आरोप लगाया गया था.
जस्टिस वी.के. अग्रवाल की अध्यक्षता में एडेसमेटा मुठभेड़ पर न्यायिक आयोग की रिपोर्ट में पाया गया कि सीआरपीएफ कांस्टेबल देव प्रकाश की मौत “दोस्ताना गोलीबारी” का नतीजा थी.
वहीं न्यायिक पैनल ने निष्कर्ष निकाला कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि ग्रामीणों के पास हथियार थे और इस घटना के लिए घबराहट और गलतफहमी को जिम्मेदार ठहराया.
इसी तरह 2012 के सरकेगुडा मुठभेड़ मामले में, जिसमें बीजापुर जिले में 17 ग्रामीणों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
इस मामले में एक न्यायिक समिति ने पाया कि मृतकों को नक्सली समूहों से जोड़ने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं थे. इसमें आयोग ने सुझाव दिया कि सुरक्षा कर्मियों ने नरसंहार को सही ठहराने के लिए विवरण गढ़े होंगे.
इसी तरह के और भी कई मामले हैं जिसमें निर्दोष ग्रामीणों को अपराधी बना दिया जाता है. पूरे राज्य में शिकायतें हैं कि माओवादियों से संबंध होने के बहुत कम या बिना किसी सबूत के लोगों को हिरासत में लिया जा रहा है.
कई मानवाधिकार समूहों ने भी आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ने वाले लोगों की व्यापक हिरासत की ओर इशारा किया है.
2 अप्रैल को पुलिस ने सर्व आदिवासी समाज के उपाध्यक्ष, जाने-माने कार्यकर्ता सुरजू टेकाम को गिरफ्तार किया, जो निगमीकरण और मानवाधिकारों के हनन के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
वह गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और शस्त्र अधिनियम के तहत जेल में है, जिसे बिलासपुर में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी की अदालत ने जमानत देने से इनकार कर दिया है.
टेकाम के परिवार ने आरोप लगाया कि सुरक्षा बलों ने उनके घर में सीपीआई (माओवादी) से जुड़े साहित्य और हथियार रखे थे.
इसी तरह, पुलिस ने पीयूसीएल की कार्यकारी समिति की सदस्य सुनीता पोट्टम को 2020 से 2024 तक हत्या और हत्या के प्रयास सहित लगभग एक दर्जन मामलों में मिलीभगत का आरोप लगाते हुए गिरफ्तार किया है.
नई सरकार ने खनन परियोजनाओं और विस्थापन के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन की अनुमति देने से इनकार कर दिया है और ऐसा करने वाले कई लोगों को गिरफ्तार किया है.
जिनमें माधोनार आंदोलन के महादेव नेताम, माड़ बचाओ आंदोलन के लखमू कोरम और इराकभट्टी आंदोलन के गुड्डू सलाम शामिल हैं.