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गुजरात सरकार ने वन भूमि पर आदिवासियों के 40 फीसदी दावे खारिज किए

विश्व आदिवासी दिवस का दिन दुनिया भर के करीब 90 से अधिक देशों में निवास करने वाले आदिवासियों को समर्पित है, जिसका मुख्य उद्देश्य आदिवासियों के अधिकारों और अस्तित्व के संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाना है.

आदिवासी संस्कृति और सभ्यता को और सशक्त बनाने के लिए आज 9 अगस्त को 42 साल पहले संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) ने विश्व आदिवासी दिवस (International Day of the World’s Indigenous Peoples) घोषित किया था.

इसलिए आज दुनिया भर के करीब 90 से अधिक देशों में निवास करने वाले आदिवासी “विश्व आदिवासी दिवस” ​​मनाने की तैयारी कर रहे हैं. वहीं राज्यसभा के नए आंकड़े एक अहम चुनौती का खुलासा करते हैं.

दरअसल, गुजरात सरकार ने वन अधिकार अधिनियम (FRA) के तहत आदिवासियों के 40 प्रतिशत से अधिक दावों को खारिज कर दिया है.

30 जून तक कुल 1 लाख 82 हज़ार 869 लोगों और 7 हज़ार 187 समुदायों ने FRA के तहत भूमि दावे दायर किए हैं. हालांकि, सरकार ने सिर्फ 97 हज़ार 690 लोगों और 4 हज़ार 791 समुदायों को भूमि दी है, जिससे बड़ी संख्या में आवेदनों को अस्वीकार कर दिया गया है.

यह डेटा FRA कार्यान्वयन में एक प्रमुख मुद्दे को रेखांकित करता है.

पिछले पांच वर्षों में अनुसूचित जनजाति समुदायों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के लिए वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act) के तहत किए गए और स्वीकृत व्यक्तिगत और सामुदायिक टाइटल दावों के विवरण पर राज्यसभा सांसद पी विल्सन के प्रश्न के उत्तर में, जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने देश भर में स्वीकृत और अस्वीकृत एफआरए दावों पर व्यापक आंकड़े जारी किए हैं.

राज्यसभा में एक सरकारी प्रतिक्रिया के मुताबिक, “गुजरात में वन अधिकार अधिनियम के तहत दायर 1 लाख 82 हज़ार 869 आदिवासी भूमि दावों में से 85 हज़ार 179 को विभिन्न प्रशासनों द्वारा अस्वीकार कर दिया गया है. इसके अलावा एफआरए के तहत भूमि का अनुरोध करने वाले 7 हज़ार 187 समुदायों में से सिर्फ 4 हज़ार 791 को ही स्वीकृति मिली.

कुल मिलाकर,  कुल 1 लाख 90 हज़ार 56 व्यक्तिगत और सामुदायिक एफआरए दावों में से 87 हज़ार 575 को खारिज कर दिया गया और 1 लाख 2 हज़ार 481 को मंजूरी दी गई.”

गुजरात कांग्रेस के विधायक और आदिवासी नेता अनंत पटेल ने गुजरात सरकार की आलोचना करते हुए कहा, “राज्य सरकारों द्वारा बताए गए अस्वीकृति के सामान्य कारणों में 13 दिसंबर, 2005 से पहले वन भूमि पर कब्ज़ा न होना, कई दावे और अपर्याप्त दस्तावेजी साक्ष्य शामिल हैं.”

पटेल ने पूछा कि अगर ग्राम सभा और वन समिति किसी दावे को मंजूरी देती है तो सरकार उसे कैसे खारिज कर सकती है.

उन्होंने कहा कि सरकार का तर्क है कि जमीन पर खेती नहीं की जा रही है लेकिन अगर ग्रामीण खेती का लिखित प्रमाण देते हैं तो यह स्पष्ट नहीं है कि दावों को अभी भी क्यों खारिज किया जा रहा है.

उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार जानबूझकर आदिवासियों को परेशान कर रही है.

पिछले साल 7 अगस्त को लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों से पता चला है कि गुजरात ने पिछले 15 सालों में प्रतिपूरक वनरोपण के तहत विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिए 16,070.58 हेक्टेयर भूमि दी है.  

लेकिन सरकार ने बताया कि 2008 से 2022-23 तक प्रतिपूरक वनरोपण के तहत 10,832.3 हेक्टेयर भूमि दी गई है.

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