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ग्रेट निकोबार के आदिवासी विकास के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उन्हें मेगा प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी नहीं है: NCST सदस्य

इस महीने की शुरुआत में मीडिया से बातचीत में केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री जुएल ओरांव ने कहा था कि उनका मंत्रालय प्रस्तावित परियोजना के संबंध में जनजातीय समुदायों द्वारा उठाई गई आपत्तियों की जांच कर रहा है.

ग्रेट निकोबार के आदिवासी समुदाय विकास का विरोध नहीं करते, लेकिन द्वीप पर प्रस्तावित मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के बारे में उन्हें पर्याप्त जानकारी नहीं है. यह कहना है राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) की सदस्य आशा लाकड़ा का.

ग्रेट निकोबार का समग्र विकास’ नाम की इस परियोजना में 160 वर्ग किलोमीटर से ज़्यादा ज़मीन पर एक ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह, अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, एक नया शहर और बिजली घर बनाने का काम शामिल है.

इसमें लगभग 130 वर्ग किलोमीटर का प्राचीन जंगल भी शामिल है जहां निकोबारी जनजाति (ST) और विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह, शोम्पेन जनजाति (PVTG) रहते हैं जिनकी आबादी लगभग 200 से 300 के बीच मानी जाती है.

आशा लाकड़ा ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को दिए इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में आदिवासी समुदायों की समस्याओं का जायजा लेने के लिए 5 से 7 जून तक एनसीएसटी टीम का नेतृत्व किया.

उन्होंने कहा कि आयोग ने ग्रेट अंडमानी, जरावा, निकोबारी और शोम्पेन सहित सभी जनजातीय समूहों के प्रतिनिधियों के साथ एक विस्तृत बैठक की.

लाकड़ा ने कहा, ‘‘हमने सभी से मुलाकात की…हमने ग्रेट निकोबार द्वीप में रह रहे शोम्पेन और निकोबारी दोनों समुदायों से बातचीत की. ज्यादातर लोगों को परियोजना के बारे में कुछ नहीं पता था. वे अपनी जिंदगी में व्यस्त हैं. उन्होंने द्वीपों के बीच यात्रा करने के लिए और नौकाओं की मांग की.’’

ग्रेट निकोबार के निवासियों के साथ अपनी बातचीत के बारे में पूछे जाने पर लाकड़ा ने कहा, ‘‘उनके पास कोई और समस्या नहीं है. उन्हें बस विकास चाहिए. बेहतर परिवहन, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं. यही उन्होंने हमसे कहा. सेंटिनली लोगों को छोड़कर सभी ने यही कहा. वे विकास के पक्ष में हैं. वे रोजगार और अपनी वित्तीय स्थिति में सुधार चाहते हैं.’’

आशा लाकड़ा ने ज़ोर देकर कहा कि इस बड़ी परियोजना के बारे में द्वीप के शिक्षित लोगों के साथ हितधारकों की बैठक होनी चाहिए और सभी ज़रूरी जानकारी उन्हें दी जानी चाहिए.

हालांकि, ‘लिटिल एंड ग्रेट निकोबार ट्राइबल काउंसिल’ के अध्यक्ष बरनबास मंजू ने फोन पर ‘पीटीआई’ को बताया कि काउंसिल को बैठक में आमंत्रित नहीं किया गया था और उन्हें स्थानीय मीडिया के माध्यम से इसकी जानकारी मिली.

नवंबर 2022 में परिषद ने 84.1 वर्ग किमी आदिवासी आरक्षित क्षेत्र के विरूद्ध अधिसूचना और परियोजना के लिए 130 वर्ग किमी वन भूमि के परिवर्तन के लिए उसी वर्ष अगस्त में जारी अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) को वापस लेते हुए, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और अंडमान निकोबार प्रशासन को पत्र लिखा था. उसने आरोप लगाया कि एनओसी प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण जानकारी छिपाई गई थी.

जनजातीय परिषद ने यह जानकर हैरानी जताई थी कि परियोजना के तहत उनके सुनामी के पहले के गांवों के कुछ हिस्सों को “अधिसूचित क्षेत्र से हटाकर दूसरे काम में लगाया जाएगा.”

कैंपबेल बे में जनवरी 2021 में हुई एक जन सुनवाई में परिषद के अध्यक्ष ने कहा था कि वे विकास योजना का समर्थन करते हुए भी, अपने पूर्वजों के गांवों में वापस जाना चाहते हैं.

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में जनजातीय परिषदें 2009 के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (जनजातीय परिषद) विनियमन के तहत बनाई गई सरकारी संस्थाएं हैं. इनके पास सीमित सलाहकार और प्रशासनिक अधिकार हैं.

जबकि संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाली स्वायत्त परिषदों को विधायी, प्रशासनिक और कुछ न्यायिक अधिकार प्राप्त हैं और वे ज़्यादा स्वतंत्र हैं.

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के कुल 910 वर्ग किलोमीटर में से लगभग 853 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र 1956 के अंडमान और निकोबार (आदिवासी जनजातियों के संरक्षण) विनियम के तहत जनजातीय आरक्षित क्षेत्र घोषित है.

आदिवासी आरक्षित क्षेत्रों में भूमि का स्वामित्व आदिवासी समुदायों के पास होता है और वे अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए इसका इस्तेमाल पूरी तरह से कर सकते हैं. लेकिन इन इलाकों में ज़मीन का लेन-देन, खरीद-फ़रोख़्त या हस्तांतरण सख्त मना है.

जब यह पूछा गया कि क्या आयोग ने इस परियोजना से जुड़े वन अधिकार अधिनियम (FRA) के उल्लंघन की शिकायतों की जांच की, इस पर आशा लाकड़ा ने कहा, ‘‘एफआरए उल्लंघन की एकमात्र ऐसी शिकायत सामने आई है जिसमें गैर-आदिवासी बाहरी लोग शामिल हैं, जो निर्माण कार्य के लिए आते हैं, आदिवासी महिलाओं से विवाह करते हैं और आदिवासी भूमि पर बस जाते हैं.’

उन्होंने कहा कि इससे गैर-आदिवासियों को एफआरए के तहत संरक्षित भूमि पर वास्तविक नियंत्रण प्राप्त करने की अनुमति मिल जाती है.

अप्रैल 2023 में एनसीएसटी ने अंडमान और निकोबार प्रशासन को एक नोटिस जारी कर इस मेगा प्रोजेक्ट से जुड़े आरोपों पर फैक्ट और की गई कार्रवाई की जानकारी मांगी. आरोप था कि यह परियोजना संविधान के विरुद्ध है और स्थानीय आदिवासियों के जीवन पर बुरा प्रभाव डालेगी.

लाकड़ा ने बताया कि आयोग देखेगा कि जवाब मिला है या नहीं.

वहीं इस महीने की शुरुआत में मीडिया से बातचीत में केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री जुएल ओरांव ने कहा था कि उनका मंत्रालय प्रस्तावित परियोजना के संबंध में जनजातीय समुदायों द्वारा उठाई गई आपत्तियों की जांच कर रहा है.

उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा था, “हाँ, इस मामले की जाँच चल रही है. मैंने संसद में भी इस पर एक सवाल का जवाब दिया था. हम फिलहाल उनके द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों की जांच कर रहे हैं. इसके बाद आगे की कार्यवाही तय की जाएगी.”

मंत्रालय की जाँच के उद्देश्य के बारे में और पूछताछ पर ओराम ने बताया था, ”पहले हमें यह जानना होगा कि क्या ग्राम सभा (यहां जनजातीय परिषद) हुई थी, उसमें क्या निर्णय लिया गया और क्या कोई नियमों का उल्लंघन हुआ है.”

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