वन विभाग ने तमिलनाडु राज्य में जुलाई महीने के अंत तक 40 ट्रैकिंग रूट खोलने का निर्णय लिया है. इस फैसले ने प्रकृति प्रेमियों और आदिवासियों को खुश कर दिया है. क्योंकि इससे आदिवासियों को आजीविका के नए अवसर मिलेंगे.
यह दावा किया जा रहा है कि छह साल के बाद कोयंबटूर के बुरलियार और वेल्लियांगिरी के साथ दो अन्य रास्तों पर ट्रैकिंग की इजाज़त दी जाएगी.
प्रभागीय वन अधिकारी (Divisional Forest Officer) एन जयराज ने अपने बयान में कहा कोयंबटूर वन रेंज में सेम्बुक्कराई और पेरुमल मुडी के बीच 7 किलोमीटर, सिरुवानी जंगल में सादिवायल और तमिलनाडु केरल सीमा के बीच 20 किलोमीटर और मेट्टुपालयम में कल्लर और बुरलियार के बीच चार किलोमीटर का फैलाव है.
जंगल के अधिकारी ने जानकारी देते हुए कहा आदिवासी लोग ट्रैकिंग के लिए आए लोगों को रास्ता बताकर उनको गाइड करेंगे और पर्यावरण विकास कमेटी (Eco Development Committee) के माध्यम से आदिवासियों को वेतन भी दिया जाएगा. इससे उनकी आजीविका में सुधार आएगा.
हाल ही में अधिकारियों ने एक ट्रेनिंग प्रोग्राम भी आयोजित किया, जिससे आदिवासियों को भी यह अंदाज़ा हो जाए कि उन्हें क्या काम करना है और उन्हें मार्गदर्शन भी मिल सके.
वन विभाग के अधिकारियों ने दावा किया कि इस ट्रेनिंग में 130 आदिवासियों और अन्य स्थानीय लोगों को आपात स्थिति में पर्यटकों की जान बचाने के तरीकों के बारे में बताया गया. उन्हें बारिश से बचने के लिए शेड बनाने और ज़रूरत पड़ने पर प्राथमिक चिकित्सा देने की भी जानकारी दी गई है.
उन्हें सिखाया गया कि जो सामान वहां उपलब्ध है उसकी मदद से कैसे शेड बनाना है और कैसे ट्रैकर्स को बारिश से बचाना है. इसके साथ ही ट्रैकर्स की ऊर्जा कम होने की स्थिति में उन्हें क्या देना है, कैसे स्थिति को संभालना है, ये भी बताया गया.
एक वन अधिकारी ने कहा कि अगर ट्रेकर्स और आदिवासी जंगली जानवरों का सामना करते हैं तो ऐसी स्थिति में वन विभाग के कर्मचारियों को भेजा जाएगा. आदिवासियों को जंगली जानवरों का सामना करने पर क्या करें और क्या न करें इस पर भी प्रशिक्षण दिया गया है.
उन्हें यह भी बताया गया कि कचरा फेंकने से रोकने के लिए खुले में कूड़ेदान की व्यवस्था की जाएगी और पार्किंग को नियमित करने के लिए भी व्यवस्था की जाएगी.
अधिकारियों के मुताबिक वे वातावरण को शुद्ध रखने के लिए सभी उचित कदम उठाएंगे. लेकिन ये ट्रैकिंग रूट्स बनाने के लिए ही न जाने कितने पेड़ों को काटा जाएगा. और पृक्रति के साथ छेडछाड तो मनुष्यों के लिए विनाशकारी ही रही है.
शायद कुछ समय के लिए ये आदिवासियों को कुछ उम्मीद दे लेकिन इसकी भरपाई उन्हें लंबे समय तक करनी पड़ सकती है.