बस्तर जिले के एर्राकोट गांव में रहने वाले रामलाल कश्यप को पुलिस ने उसकी खुद की ज़मीन पर मां का अंतिम संस्कार करने से रोक दिया था.
परपा थाने की पुलिस ने रामलाल से कहा था कि वह शव को अपने गांव से 15 किलोमीटर दूर कोरकापाल ग्राम में ले जाकर दफन करे, जहां एक अलग कब्रिस्तान बनाया गया है.
बस्तर पुलिस को यह डर था कि अगर वह अपनी निजी ज़मीन पर अपनी माँ की अंत्येष्टी करता है तो गांव के लोगों के बीच विवाद उत्पन्न हो सकता है और कानून व्यवस्था भी बाधित हो सकती है.
दरअसल, रामलाल कश्यप और उसका परिवार बस्तर क्षेत्र के उन आदिवासियों में से है जिसने अपना धर्म बदलकर ईसाई धर्म को अपना लिया था.
जब से जनजाति सुरक्षा मंच नामक एक संगठन ने धर्म परिवर्तित आदिवासियों को आरक्षण न देने की मांग की है, तब से बस्तर के आदिवासियों में फूट पड़ गई है.
इसी कारण गांव के आदिवासी धर्म परिवर्तित कर चुके आदिवासियों को उनके परिजनों का अंतिम संस्कार गांव में नहीं करने देते.
इस गांव के आदिवासियों का मानना है कि धर्म परिवर्तित कर चुके व्यक्ति का अंतिम संस्कार गांव में करने से गांव में अनिष्ट होता है. फिर चाहे यह अंतिम संस्कार उसकी निजी जमीन पर क्यों न किया गया हो.
जब पुलिस ने भी रामलाल को गांव में अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया तो उसके पास कोर्ट जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था.
रामलाल कश्यप ने अपने अधिवक्ता प्रवीण तुलस्थान के माध्यम से याचिका दायर कर बताया कि उनकी मां की 28 जून को स्वाभाविक मृत्यु हो गई.
इसके बाद वह अपनी जमीन पर माँ को दफनाना चाहता था लेकिन पुलिस ने उसे ऐसा करने से रोक दिया. इस कारण उसकी माँ के शव को मेडिकल कॉलेज जगदलपुर में रखा गया है.
याचिकाकर्ता ने इस मामले में हाईकोर्ट द्वारा अप्रैल में बस्तर के छिदबहार के मृत व्यक्ति के संबंध में दिए गए आदेश का हवाला दिया.
इसके अलावा याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के जम्मू कश्मीर वर्सिस मोहम्मद लतीफ के केस का हवाला दिया जिसमें याचिकाकर्ता के वकील की ओर से कहा गया था कि शव को सम्मानजनक तरीके से परिजनों की इच्छा के अनुसार न दफनाने देना संविधान के आर्टिकल 21 का उल्लंघन है.
इस मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने रामलाल के पक्ष में फैसला सुनाया और जस्टिस पार्थ प्रतिम साहू की सिंगल बेंच ने मेडिकल कॉलेज जगदलपुर के प्रबंधन से कहा है कि वह तत्काल शव को उसके बेटे के सौंप दे.
बस्तर के एसपी से कोर्ट ने कहा है कि वह याचिकाकर्ता को अपनी मां की अत्येष्टि निजी भूमि पर करने के लिए पर्याप्त सुरक्षा दे.
संघ परिवार यानि आरएसएस लंबे समय से आदिवासी इलाकों में धर्म परिवर्तन के खिलाफ़ अभियान चलाता रहा है.
लेकिन डीलिस्टिंग यानि धर्म परिवर्तन करने वाले आदिवासियों को नौकरियों में आरक्षण के लाभ से वंचित करने के आंदोलन ने कई आदिवासी इलाकों में समाज को बांट दिया है.
छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में इस अभियान की वजह से कई इलाकों में दंगे की स्थिति भी बन गई थी.