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असम: 1886 के ज़मीन कानून की बदलाव की तैयारी से क्यों नाराज़ हैं आदिवासी

असम में ज़मीन क़ानून बदलने की तैयारी से आदिवासी संगठनों में हलचल तेज़. आदिवासी संगठनों को सता रहा है कि कहीं उनकी भूमि को सुरक्षा देने वाले कानून में तो नहीं होगा संशोधन.

असम सरकार ने हाल ही में एक भूमि शासन आयोग (Land Governance Commission) का गठन किया है.

इस आयोग का उद्देश्य राज्य की ज़मीन से जुड़े पुराने क़ानूनों, विशेषकर असम भूमि और राजस्व विनियमन अधिनियम, 1886 (Assam Land and Revenue Regulation, 1886) की समीक्षा करना और उसमें आवश्यक संशोधन सुझाव देना है.

इस आयोग को असम की ज़मीन संबंधी सभी क़ानूनों को आधुनिक बनाने, ज़मीन के डिजिटल रिकॉर्ड तैयार करने, राजस्व प्रणाली को पारदर्शी बनाने और विवाद निपटारे को तेज़ करने की जिम्मेदारी दी गई है.

इस आयोग की अध्यक्षता सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार डेका को सौंपी गई है.

जहाँ सरकार इसे आधुनिक सुधार की प्रक्रिया बता रही है, वहीं आदिवासी संगठनों को आशंका है कि  असम भूमि और राजस्व विनियमन अधिनियम, 1886 के अध्याय X (Chapter 10) में संभावित संशोधन से उनकी ज़मीन और अधिकारों पर खतरा उत्पन्न हो सकता है.

क्या है अध्याय X

अध्याय X, असम भूमि और राजस्व विनियमन अधिनियम, 1886 का वह भाग है जो असम के आदिवासी क्षेत्र, बेल्ट और ब्लॉक को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है.

इसके अंतर्गत यह प्रावधान है कि इन क्षेत्रों की भूमि गैर-आदिवासी व्यक्तियों को स्थानांतरित नहीं की जा सकती.

यह अध्याय असम के अनुसूचित जनजातियों, अनुसूचित जातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों का अपनी भूमि पर स्थायी अधिकार सुनिश्चित करता है.

यह व्यवस्था कई दशकों से आदिवासी संस्कृति, आजीविका और पहचान की रक्षा करती आई है.

CCTOA की चेतावनी

असम आदिवासी संगठनों की समन्वय समिति (CCTOA) ने सरकार को स्पष्ट शब्दों में कहा है कि अध्याय X जैसे संवेदनशील प्रावधानों में बदलाव से पहले जनजातीय संगठनों से विधिवत विचार-विमर्श किया जाना चाहिए.

CCTOA ने हाल ही में गुवाहाटी स्थित जनजातीय विश्रामगृह में एक बैठक की. इस बैठक की अध्यक्षता अखिल असम जनजातीय संघ के अध्यक्ष सुकुमार बसुमातारी और ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष दिपेन बोडो ने की.

CCTOA संयोजक आदित्य खाखलारी ने कहा कि “कोई भी सिफ़ारिश जो जनजातीय भूमि अधिकारों को कमज़ोर करे, उसे हम स्वीकार नहीं करेंगे. हमें चाहिए कि आयोग इन अधिकारों को और अधिक मज़बूती दे.”

CCTOA की प्रमुख माँगें

बैठक में यह माँग की गई कि असम के सभी 48 अधिसूचित जनजातीय क्षेत्र (बेल्ट और ब्लॉक) के अधिकारिक नक्शे जारी किए जाएँ ताकि भू-माफ़ियाओं और गैर-अधिकारियों द्वारा ज़मीन अधिग्रहण पर रोक लगाई जा सके.

साथ ही, उन्होंने माँग की कि जो आदिवासी क्षेत्र अब तक इन अधिसूचित क्षेत्रों में शामिल नहीं हैं, उन्हें भी इसमें सम्मिलित किया जाए.

CCTOA ने कहा कि इन बेल्ट और ब्लॉक्स को संविधान की 5वीं और 6ठी अनुसूचियों की तर्ज़ पर विशेष संरक्षण मिलना चाहिए.

बोडोलैंड क्षेत्र, राभा हसोंग, कार्बी आंगलोंग और दीमा हसाओ जैसे इलाकों में रहने वाले आदिवासियों के भूमि अधिकारों को मान्यता और सुरक्षा मिले. इसके लिए वन अधिकार कानून को प्रभावी रूप से लागू करने की माँग की गई.

अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित 12,155 पद वर्षों से खाली पड़े हैं जबकि राज्य में 1.5 लाख से अधिक नियुक्तियाँ हो चुकी हैं.

CCTOA ने आगामी नियुक्तियों में इन पदों को भरने की माँग भी सरकार से की है.

भूमि शासन में बदलाव की यह यदि आदिवासी हितों की अनदेखी कर अध्याय X  जैसे प्रावधानों में संशोधन किया गया तो यह वर्षों से सुरक्षित आदिवासी अधिकारों पर सीधा प्रहार माना जाएगा.

CCTOA सहित सभी जनजातीय संगठनों की यही माँग है कि सरकार इस प्रक्रिया में सभी संबंधित पक्षों से खुले संवाद के बाद ही कोई अंतिम निर्णय ले.

हालांकि राज्य सरकार ने भूमि कानूनों में सुधार हेतु नागरिकों, कानूनी विशेषज्ञों और राजस्व विभाग के कर्मियों से सुझाव revenuedm@gmail.com पर अपने सुझाव भेजने को कहा है. लेकिन आदिवासी संगठन चाहते हैं कि इस विषय पर सरकार को सार्वजनिक संवाद का रास्ता अपनाना चाहिए.

(Image is for representational purpose only)

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