HomeAdivasi Dailyचकमा-हाजोंग बनाम मूल निवासी, अरुणाचल प्रदेश में बहस तेज़

चकमा-हाजोंग बनाम मूल निवासी, अरुणाचल प्रदेश में बहस तेज़

हाल ही में केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने भी अपने बयानों में स्पष्ट रूप से कहा कि अरुणाचल में रहने वाले सभी ‘विदेशियों’ को राज्य छोड़ना होगा और कोई भी इसमें दखल नहीं दे सकता. भले ही नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) अरुणाचल पर लागू नहीं है.

चकमा और हाजोंग शरणार्थियों को अरुणाचल प्रदेश से स्थानांतरित करने की केंद्र और राज्य सरकारों की योजना को ऑल निशी स्टूडेंट्स यूनियन (ANSU) ने साहसिक कदम करार दिया है. इस संगठन ने सरकार के इस कदम का स्वागत भी किया है. 

मीडिया को जानकारी देते हुए एएनएसयू जीएस गोरा रिकम भाई ने कहा कि संघ मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री द्वारा किए गए निर्णय का तहे दिल से समर्थन करेगा.

रिकम ने कहा कि आपसू (AAPSU) पांच दशकों से अरुणाचल से चकमा और हाजोंग शरणार्थियों के निर्वासन की मांग कर रही है. हम इस आंदोलन में AAPSU का पुरजोर समर्थन करते हैं.  एएनएसयू जीएस ने चकमा और हाजोंग समुदायों से केंद्र सरकार द्वारा दिए जा रहे इस सुनहरे अवसर को स्वीकार करने और विक्टिम कार्ड खेलने से परहेज करने की अपील की है.

रिकम ने कहा, “संघ हमेशा अरुणाचल प्रदेश के मूल निवासियों की भावनाओं के साथ खड़ा रहेगा और हमारी पुश्तैनी भूमि और लोगों के स्वदेशी अधिकारों के लिए अनुचित मांगों को कभी स्वीकार नहीं करेगा. अरुणाचल प्रदेश के लोग प्रवासियों के अवैध दावों को कभी स्वीकार नहीं कर सकते हैं.”

एएनएसयू ने चकमाओं और हाजोंगों के नागरिक संगठनों द्वारा की गई नाजायज मांग को भी सिरे से खारिज किया है. उनका कहना है कि दोनों समुदायों के नेता जो खुद विलासिता में रह रहे हैं निर्दोष ग्रामीणों को गुमराह कर रहे हैं. इसलिए जब सरकार सम्मानजनक समाधान के लिए प्रस्ताव दे रही है तो ऐसे प्रस्ताव को विनम्रतापूर्वक स्वीकार किया जाना चाहिए.

एएनएसयू ने शरणार्थियों के कब्जे वाले क्षेत्रों में भारी जनसंख्या संबंधी परिवर्तनों को भी नोट किया. 1991 में यह (शरणार्थियों की आबादी) बढ़कर 30,064 हो गई और यह तेजी से बढ़कर 65,000 हो गई. जो कि 400 फीसदी की वृद्धि का संकेत देती है. उन्होंने कह कि वर्तमान में इनकी जनसंख्या लाखों में है.

हाल ही में केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने भी अपने बयानों में स्पष्ट रूप से कहा कि अरुणाचल में रहने वाले सभी ‘विदेशियों’ को राज्य छोड़ना होगा और कोई भी इसमें दखल नहीं दे सकता. भले ही नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) अरुणाचल पर लागू नहीं है.

उन्होंने इसका हवाला देते हुए कहा कि मूल आदिवासी लोगों को छोड़कर किसी भी विदेशी को एसटी (अनुसूचित जनजाति) का दर्जा (अरुणाचल में) प्राप्त नहीं हो सकता है. उन्होंने कहा कि सीएए मूल निवासियों की पहचान, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा करेगा और कोई भी इसे रोक नहीं सकता.

केंद्रीय मंत्री के बयानों के चलते चकमा डेवलपमेंट फाउंडेशन ऑफ इंडिया (CDFI) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को पत्र लिखकर उनके समुदाय की ओर से रोष जताया है.

दरअसल चकमा-हाजोंग उत्तर पूर्वी राज्यों में अपनी सुरक्षा के लिए बीजेपी का समर्थन करते रहे हैं. वहीं अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने भी राजधानी ईटानगर में दिए भाषण में कहा था कि सभी अवैध अप्रवासी चकमाओं को संविधान के मुताबिक बाइज्जत कुछ अन्य जगहों पर ले जाकर बसाया जाएगा.

मुख्यमंत्री ने कहा था कि आने वाले दिनों में हम लंबे समय से चली आ रही इस समस्या के समाधान के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे. संविधान के मुताबिक चकमा अरुणाचल में नहीं रह सकते क्योंकि अरुणाचल एक आदिवासी राज्य है.

खांडू ने यह भी कहा कि इस पेचीदा मुद्दे के चलते अरुणाचल में रहने वाले चकमा भी परेशान हैं. उनका कहना था कि मुझे उनके लिए बुरा लगता है क्योंकि वे भी आखिर इंसान हैं.

कौन हैं चकमा-हाजोंग 

मूल रूप से पूर्वी पाकिस्तान में चटगांव हिल ट्रैक्ट्स (CHT) के निवासी चकमा बौद्ध हैं. चटगांव अब बांग्लादेश का हिस्सा है. चकमा-हाजोंग असम सहित कई पूर्वोत्तर राज्यों में फैले हुए हैं. 1962 में पूर्वी पाकिस्तान द्वारा कप्ताई बांध को शुरू करने के बाद जिससे इन अल्पसंख्यक समुदायों का बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ. बाद में ये शरणार्थी खुली सीमाओं के रास्ते भारत में आ गए थे. 

चकमा-हाजोंग विरोधी आंदोलन 1987 में  अरुणाचल प्रदेश बनने के बाद इनके मूल निवासी न होने के मुद्दे पर उन्हें निकाले जाने की मांग के इर्द-गिर्द ही रहा है. समय बीतने के साथ असम का मूल-निवासी बनाम बाहरी आंदोलन विदेशी-विरोधी आंदोलन बनते हुए अंततः बांग्लादेश-विरोधी आंदोलन बन गया. अरुणाचल में भी ऐसा ही हुआ क्योंकि इनका मूल निवास चटगांव अब बांग्लादेश का हिस्सा है.

भले ही सीएए अरुणाचल में लागू नहीं था फिर भी 2019 में आपसू ने असम के आसू के साथ एकजुटता दिखाते हुए राज्य में इसके खिलाफ कई विरोध प्रदर्शन किए.

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