HomeAdivasi Dailyहाथी या इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी, किसके कारण हुई आदिवासी की मौत ?

हाथी या इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी, किसके कारण हुई आदिवासी की मौत ?

नीलांबुर के पास पोथुकल पंचायत में मुंडेरी के वनियामपुझा गांव में हाथी के हमले में एक आदिवासी की मौत ने नदी के उस पार रह रहे दर्जनों आदिवासी परिवारों की व्याथा को एक बार फ़िर उजागर कर दिया.

केरल के मलप्पुरम ज़िले के नीलांबूर क्षेत्र के पास पोटुक्कल पंचायत में स्थित वनीयंपुझा आदिवासी गांव में बुधवार शाम एक आदिवासी युवक की जंगली हाथी के हमले में मौत हो गई. लेकिन हादसे के घंटों बाद तक कोई भी राहत नहीं पहुंच पाई थी.

घायल आदिवासी युवक तक मदद न पहुंच पाने का कारण चालीयार नदी थी. जिस जगह हाथी ने युवक पर हमला किया था वहां तक पहुंचने के लिए गांववालों को इस नदी से होकर गुज़रना पड़ता, लेकिन इस पर अब तक कोई पुल नहीं बना है.

मृतक युवक की पहचान बिल्ली के रूप में हुई है.

जानकारी के अनुसार, जब हाथी ने हमला किया तो आसपास के लोग घबरा गए और तुरंत सहायता के लिए प्रशासन को सूचना दी गई.

घटना के बाद दमकल और बचाव दल ने तुरंत नदी पार करने की कोशिश की लेकिन तेज़ बहाव के कारण उनकी डोंगी (नाव) बह गई और बचावकर्मी भी फंस गए.

कई घंटे तक न तो बिल्ली को मदद मिल पाई और न ही बचाव दल वहां पहुंच सका.

बचावकर्मी रात भर वहीं फंसे रहे. उन्हें तब निकाला जा सका जब ज़िला प्रशासन की ओर से उच्चस्तरीय हस्तक्षेप हुआ और राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) की टीम को मौके पर भेजा गया.

बिल्ली के शव को गुरुवार सुबह निकालकर मंजेरी के सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल ले जाया गया. पोस्टमार्टम के बाद शव को गांव वापस लाया गया.

इस दौरान नीलांबूर से हाल ही में चुने गए विधायक आर्यादन शोउकत जब बिल्ली के शव को गांव लाने के लिए पहुंचे तो उनकी मोटरबोट भी बीच नदी में खराब हो गई और वे कुछ अन्य लोगों के साथ एक टापू पर फंस गए.

बाद में जिला कलेक्टर वी.आर.विनोद द्वारा भेजी गई राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) की टीम ने शाम को उन्हें सुरक्षित बाहर निकाल लिया.

बिल्ली की मौत ने एक बार फिर उस गंभीर स्थिति को सामने ला दिया है, जिसमें वनीयंपुझा जैसे कई आदिवासी गांव बरसों से जी रहे हैं.

साल 2019 की बाढ़ में जब यहां के घर और पुल बह गए थे तभी से ग्रामीण तिरपाल से बने अस्थायी आश्रयों में जीवन बिता रहे हैं.

जंगल के बीच बसे इस गांव तक पहुंचने का कोई पक्का रास्ता नहीं है.

गांव वालों के पास सिर्फ एक बांस से बनी नाव है, जिसे वे नदी पार करने के लिए इस्तेमाल करते हैं. लेकिन बरसात में जब नदी उफान पर होती है, तब यह नाव चलाना जानलेवा हो जाता है.

हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद गांव में एक अस्थायी शौचालय और कुआं ज़रूर बनाया गया. लेकिन बुनियादी सुविधाओं की स्थिति अब भी बेहद खराब है.

सरकार द्वारा पुल निर्माण की योजना शुरू की गई थी पर वह अधूरी पड़ी है.

स्थानीय लोगों का कहना है कि हर बरसात में उनका गांव जैसे एक टापू में तब्दील हो जाता है. स्कूल, अस्पताल, राशन सब कुछ नदी के उस पार है.

ऐसी स्थिति में कोई भी मेडिकल इमरजेंसी जानलेवा साबित हो सकती है.

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