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ग्रेट निकोबार द्वीप प्रोजेक्ट: ट्राइबल रिज़र्व को डि-नोटिफाई करने के लिए मैप तैयार

ग्रेट निकोबार परियोजना बंगाल की खाड़ी में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के सबसे दक्षिणी द्वीप के लिए केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित एक बड़े पैमाने की इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास योजना है.

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह प्रशासन ने ग्रेट निकोबार द्वीप मेगा-इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट ( Great Nicobar Island mega-infrastructure Project) के लिए आदिवासी रिज़र्व ज़मीन को डी-नोटिफाई और री-नोटिफाई करने के लिए एक मैप तैयार किया है और जल्द ही इन ज़मीनों पर टावर लगाने के लिए जगहों को फाइनल कर देगा.

द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रशासन ने यह भी कहा है कि ग्रेट निकोबार द्वीप प्रोजेक्ट के सभी स्टाफ को शुरू में रहने के लिए ट्रांजिट अकोमोडेशन बनाया गया है.

इसके अलावा प्रशासन का कहना है कि एक व्यापक आदिवासी कल्याण योजना अगले महीने तक फाइनल कर दी जाएगी.

एडमिनिस्ट्रेशन ने अंडमान और निकोबार आइलैंड्स इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (ANIIDCO) की मॉनिटरिंग कमेटी के सामने इस बारे में एक प्रेजेंटेशन दिया.

यह कमेटी ग्रेट निकोबार आइलैंड पर 92 हज़ार करोड़ के इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट से जुड़े आदिवासी मामलों की देखरेख करती है.

इस प्रोजेक्ट में एक ट्रांसशिपमेंट पोर्ट, एक एयरपोर्ट, एक पावर प्लांट और एक टाउनशिप शामिल है.

यह प्रोजेक्ट ANIIDCO द्वारा डेवलप किया जा रहा है जबकि इस प्रोजेक्ट के लिए जारी किए गए फॉरेस्ट और एनवायरनमेंट क्लीयरेंस कोर्ट और ट्रिब्यूनल में चैलेंज किए जा रहे हैं.

अक्टूबर में आदिवासी मामलों पर बनी मॉनिटरिंग कमेटी की एक मीटिंग में द्वीपों के एडमिनिस्ट्रेशन के ट्राइबल वेलफेयर डिपार्टमेंट ने बताया कि फॉरेस्ट डिपार्टमेंट की मदद से ज़मीन को डिनोटिफाई और रीनोटिफाई करने के लिए एक ज्योग्राफिक इन्फॉर्मेशन सिस्टम (GIS) मैप तैयार किया गया है.

इसके अलावा कैंपबेल बे के असिस्टेंट कमिश्नर और शोम्पेन जनजाति की नुमाइंदगी करने वाली एडमिनिस्ट्रेशन बॉडी, अंडमान आदिम जनजाति विकास समिति के साथ बातचीत के बाद टावरों के लिए जगहों को फाइनल किया जाएगा.

खास बात यह है कि ग्रेट निकोबार आइलैंड (GNI) प्रोजेक्ट के लिए आदिवासी रिज़र्व ज़मीन को डिनोटिफाई करने के लिए ज़रूरी है कि उस पर जंगल के अधिकार पहले 2006 के फॉरेस्ट राइट्स एक्ट के तहत तय किए जाएं.

डिनोटिफिकेशन के लिए मैप को फाइनल करने का यह काम तब हो रहा है, जब कलकत्ता हाई कोर्ट उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है जो प्रशासन के इस दावे को चुनौती दे रही हैं कि उसने यहां कानून के मुताबिक जंगल के अधिकार तय कर दिए हैं.

मॉनिटरिंग कमेटी की अक्टूबर मीटिंग में यह भी तय किया गया कि कॉम्प्रिहेंसिव ट्राइबल वेलफेयर प्लान में निकोबारी शेड्यूल्ड ट्राइब कम्युनिटी की उस मांग पर भी विचार किया जाएगा, जिसमें उन्होंने अपनी पुश्तैनी ज़मीन पर वापस लौटने की बात कही है.

उन्हें 2004 की सुनामी की वजह से पहली बार उस ज़मीन से हटाया गया था.

यह मांग लिटिल और ग्रेट निकोबार ट्राइबल काउंसिल के GNI प्रोजेक्ट के विरोध का मुख्य कारण रही है.

उनका कहना है कि उनके पुश्तैनी गांव प्रोजेक्ट एरिया में आते हैं और इन ज़मीनों के लिए फॉरेस्ट राइट्स कभी शुरू या सेटल नहीं किए गए थे.

निकोबारी लोगों ने कहा है कि वे अपने गांवों में वापस जाना चाहते हैं, यह एक ऐसा मुद्दा है जिसके बारे में लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सितंबर में ट्राइबल अफेयर्स मिनिस्टर को लिखा था.

मॉनिटरिंग कमेटी ने कहा कि ट्राइबल प्लान में इस बात पर विचार को शामिल करने का फैसला इस साल 27 अगस्त को ट्राइबल काउंसिल से मिले एक रिप्रेजेंटेशन के जवाब में लिया गया था.

इसके अलावा, मॉनिटरिंग कमेटी ने कहा कि ट्राइबल प्लान में सुनामी से पहले के समय की आदिवासी आबादी और बस्तियों का डेटा भी शामिल करने का फैसला किया गया है.

इसने ट्राइबल प्लान में निकोबारी लोगों की घर, खेती की ज़मीन, रोज़गार और मुआवज़े के साथ-साथ सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर और कनेक्टिविटी की ज़रूरतों की मांगों को भी शामिल करने का फैसला किया.

हालांकि द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, 27 अगस्त के ट्राइबल काउंसिल के रिप्रेजेंटेशन के मुताबिक, घर, खेती की ज़मीन, रोज़गार या मुआवज़े की कोई मांग नहीं है.

इस लेटर में ट्राइबल काउंसिल ने अपने पुश्तैनी गांव तक सड़क कनेक्टिविटी की मांग की, जिसमें इंदिरा पॉइंट तक जाने वाली मौजूदा सड़क को आगे बढ़ाना शामिल है.

इसमें यह भी दोहराया गया कि, “हम नहीं चाहते कि कोई भी इंफ्रास्ट्रक्चर उस ज़मीन पर बनाया जाए जिसे ट्राइबल रिज़र्व के तौर पर मार्क किया गया है या किसी भी दूसरे इलाके में जो हमारे और शोम्पेन समुदाय के इस्तेमाल में है/था.”

ट्राइबल काउंसिल ने पहले लिखे एक लेटर का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि सड़कों जैसे बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए उनकी सहमति को एक बड़े प्रोजेक्ट के लिए सहमति नहीं माना जाना चाहिए जिसमें जंगलों और आदिवासी इलाकों को नुकसान हो.

इस अक्टूबर में ANIIDCO की मॉनिटरिंग कमेटी की मीटिंग में यह भी बताया गया कि सरकार ने चालू फाइनेंशियल ईयर के लिए ग्रेट निकोबार पर रिसर्च प्रपोज़ल, जिसमें “शोम्पेन कथा” भी शामिल है…उसके लिए भी इन-प्रिंसिपल मंज़ूरी दे दी है.

ट्राइबल वेलफेयर डिपार्टमेंट ने यह भी बताया कि हेल्थ, सर्विलांस और प्रोटेक्शन स्कीम के लिए टाइमलाइन तैयार कर ली गई हैं और ओवरलैपिंग स्कीम की पहचान भी पूरी हो गई है.

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