हिमाचल प्रदेश के वन विभाग ने हाल ही में जारी एक विवादित पत्र को वापस ले लिया है.
यह पत्र 11 अप्रैल को सभी जिलाधिकारियों और डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसरों (DFO) को भेजा गया था.
इस पत्र का विषय वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु और प्रावधानों से संबंधित था.
पत्र में वन विभाग ने कहा था कि FRA की कई धाराएं हिमाचल प्रदेश के संदर्भ में “जोखिमभरी” हो सकती हैं.
खासकर, अन्य पारंपरिक वनवासी (Other Traditional Forest Dwellers) की परिभाषा और उसके दावे राज्य के जंगलों के लिए खतरा हो सकते हैं.
क्या है FRA और क्यों बना विवाद?
वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 आदिवासी और पारंपरिक वनवासियों को उनके पारंपरिक जंगलों पर अधिकार देने के लिए लाया गया था.
इस कानून के तहत ग्राम सभाओं को अधिकार है कि वे किसी व्यक्ति या समुदाय के वनाधिकार का निर्णय लें.
FRA दो वर्गों को अधिकार देता है –
- अनुसूचित जनजाति (ST) के लोग
- अन्य पारंपरिक वनवासी (Other Traditional Forest Dwellers) – जो पिछले 75 वर्षों से जंगलों में रह रहे हैं या उनकी आजीविका जंगलों पर निर्भर है.
OTFD की परिभाषा अक्सर राज्यों में विवाद का कारण बनती है.
हिमाचल प्रदेश में आदिवासी क्षेत्र सीमित हैं, लेकिन कई अन्य समुदाय भी लंबे समय से जंगलों पर निर्भर रहे हैं.
ऐसे में उन्हें OTFD मानकर अधिकार देना कुछ अफसरों और नेताओं को जोखिम लगता है.
पत्र में क्या कहा गया था?
वन विभाग की चिट्ठी में 7 बड़े मुद्दे उठाए गए थे:
OTFD को लेकर स्पष्टता की मांग
ग्राम सभाओं की प्रक्रिया को वीडियो रिकॉर्ड करने का सुझाव
सेब की खेती जैसी व्यवसायिक गतिविधियों को अधिकारों से बाहर रखने की बात
FRA के अर्ध-न्यायिक स्वरूप पर सवाल
जमीन पर कब्जे को लेकर पुराने रिकॉर्ड को ही अंतिम मानने की मांग
पत्र में यह भी कहा गया था कि FRA का दुरुपयोग करके व्यावसायिक फायदे लिए जा रहे हैं.
कार्यकर्ताओं और संगठनों ने जताई आपत्ति
जैसे ही यह पत्र सार्वजनिक हुआ, पर्यावरण और जनजातीय संगठनों में नाराजगी फैल गई.
करीब दो दर्जन संगठनों ने इसे FRA की भावना के खिलाफ बताया.
सीपीआई (एम) नेता और पूर्व सांसद ब्रिंदा करात ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इसे रद्द करने की मांग की.
उन्होंने लिखा, “पारंपरिक जंगल निर्भरता और व्यावसायिक गतिविधियों में फर्क जरूरी है. वन विभाग की पत्र से यह फर्क मिटता नजर आता है.”
राजस्व और जनजातीय मंत्री ने मामले में हस्तक्षेप किया
अब राजस्व और जनजातीय मंत्री जगत सिंह नेगी ने इस पूरे मामले में हस्तक्षेप किया है.
उन्होंने हिमाचल के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) समीर रस्तोगी और अतिरिक्त PCCF पुष्पिंदर राणा को अपने कार्यालय बुलाया.
बैठक के बाद मंत्री ने कहा कि“मैंने पर्यावरण और आदिवासी संगठनों की चिंताओं को विभाग के सामने रखा. मैंने इस पत्र पर अपनी असहमति जताई. अब वन विभाग ने यह पत्र वापस ले लिया है.”
इससे पहले, वन विभाग के प्रमुख समीर रस्तोगी ने 17 अप्रैल को कहा था कि पत्र पर आई आपत्तियों को समीक्षा के बाद देखा जाएगा. लेकिन जनदबाव और मंत्री के हस्तक्षेप के बाद पत्र स्थगित कर दिया गया.
इस पूरे मामले से यह साफ हो गया कि वन अधिकार कानून को लेकर कई स्तरों पर भ्रम और असहमति है.
जहां विभाग कानून के दुरुपयोग की आशंका जताता है, वहीं संगठनों का कहना है कि इस तरह की चिट्ठियां वंचित समुदायों के अधिकार छीनने का प्रयास हैं.
FRA जैसे कानून का सही क्रियान्वयन तभी संभव है, जब ग्राम सभाएं मजबूत, प्रक्रिया पारदर्शी और समुदाय जागरूक हो.