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मध्यप्रदेश : मंडला ज़िले की सीट जीती तो मिलेगी पूरे राज्य में सत्ता, 50 सालों से है मान्यता

मंडला ज़िला गोंड आदिवासियों की भूमि है. यहां के आदिवासियों ने विस्थापन झेला और उसके खिलाफ़ लड़े भी हैं. आंदोलन में तप कर यहां का आदिवासी राजनीतिक तौर पर जागरूक भी हुआ है. इसलिए यहां सिर्फ मीठी बातों से जीतना आसान नहीं होगा.

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) को आदिवासी बहुल राज्य कहा जाता है. क्योंकि 2011 की जनगणना के अनुसार पूरे देश की लगभग 12 प्रतिशत आदिवासी आबादी यहीं रहते हैं. इस राज्य में भी डिंडोरी (Dindori) के अलावा मंडला (Mandla) ही वो ज़िला है जिसे आदिवासी बहुल क्षेत्र कहा गया है.

आदिवासी बहुल क्षेत्र के साथ साथ इसका राजनीतिक में बेहद अनोखा इतिहास देखने को मिला है. ऐसा माना जाता है की इन 50 सालों में जिसने इस ज़िले को जीत लिया उसने पूरे राज्य में भी विजय हासिल कर ली.  

इसलिए ये ज़िला आगमी विधानसभा चुनाव (Assembly election) में राज्य के चुनाव में उतरी सभी पार्टियों के लिए महत्वपूर्ण होने वाला है.

मध्य प्रदेश में 17 नवंबर मतदान होगा. जिसका परिणाम बाकी राज्यों के परिणाम के साथ 3 दिसंबर को आएगा.

इस ज़िले की सत्ता जीतने के लिए सभी पार्टियों ने चुनाव प्रचार शुरु कर दिया है. इस पूरे ज़िले में तीन निर्वाचन क्षेत्र है और ये सभी आदिवासियों के लिए आरक्षित है.

इसलिए इस ज़िले में सत्ता हासिल करने के लिए सभी पार्टियों को आदिवासी समाज की जरूरते, मांगे और उनके संस्कृति को समझने की आवश्यक है.

आगमी चुनाव के बारे में जाने से पहले हम पिछली बार हुए चुनाव के बारे में जान लेते है. पिछले बार के विधानसभा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिला था. इस पूरे ज़िले में सबसे दिग्गज पार्टियां बीजेपी, कांग्रेस और गोंडवाणा गण्तंत्र पार्टी रही थी.

इसलिए ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है की इस बार भी इन्हीं तीन पार्टियों के बीच में ही त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा.

वहीं ये त्रिकोणीय मुकाबला वहीं जीतेगा जो आदिवासियों की समस्या और उनकी मांगों को समझने में सक्षम हो.

हाल ही में कांग्रेस की महासाचिव प्रियंका गांधी राज्य के दौरे पर आई थी. जिसमें उन्होंने आदिवासी बहुल मंडला में हो रहे चुनाव सभा को संबोधित किया था. इस सभा में उन्होंने कई बड़ी घोषणाएं भी की.

उन्होने कहा, “ जहां भी आदिवासियों की आबादी 50 प्रतिशत से अधिक होगी. उन क्षेत्रों में छठवी अनुसूचि लागू की जाएगी.

इसके साथ ही पार्टी के पढ़ो और पढ़ाओ योजना के अंतर्गत 1 से 8 कक्षा तक बच्चो को निशुल्क शिक्षा दी जाएगी. वहीं 12 वीं तक के बच्चों को 500 से 1500 तक की राशि भी मिलेगी.

इसके अलावा उन्होंने जाति आधारित जनगणना पर कई बाते बोली. उन्होंने कहा, “ हम लगातर जाति जनगणना की मांग को लेकर केंद्र सरकार के पास गए. लेकिन बीजेपी सरकार इसे नहीं करना चाहती है.

वहीं उन्होंने जाति जनगणना को अनिवार्य बताया. जनगणना होने से कितने आदिवासी किस राज्य में रहते है. इसके बारे में जानकारी मिल जाती है. ये भी पता चलता की क्या जनगणना के अनुसार आरक्षण दिया जा रहा है या नहीं.

प्रियंका ने कहा, “ गिनती करनी चाहिए तभी पता चलेगा कि सही हो रहा है कि नहीं हो रहा है. बिहार में गिनती की गई. पता चला कि 84 प्रतिशत लोग ओबीसी, एससी-एसटी वर्ग से है.

जिनकी आबादी ज्यादा है, उन्हें सरकारी पदों का मौका नहीं मिल रहा है. हम चाहते है कि गिनती से लोगों के साथ न्याय हो. लेकिन ये सरकार इतना भी नहीं करना चाहती.

इन सभी वादों पर ध्यान दिया जाए तो ये वादे मुख्य रूप से आदिवासियों के लिए किए गए थे. अर्थात आदिवासियों का दिल जीतने की पूरी पूरी कोशिश पार्टी द्वारा की गई थी.

वैसे तो हर आदिवासी क्षेत्र में मूलभूत सुविधाओं को पूरा करना एक बहुत बड़ी चुनौती रही है. लेकिन इन मूलभूत सुविधाओं के अलावा भी मंडला में आदिवासियों की कई समस्याएं है.

बसनिया बांध प्रोजेक्ट का विरोध

मंडला ज़िला के ओढारी गांव में नर्मदा नदी पर बसनिया बांध बनाने का प्रस्तावित रखा गया था. इस बांध के बनने से राज्य के बहुल आदिवासी ज़िले डिंडोरी और मंडला के कई आदिवासी गाँव प्रभावित होंगे और कई आदिवासी परिवारों का विस्थापन भी किया जाएगा.

ऐसा अनुमान है की बांध बनाने में 6 हज़ार हेक्टेयर से ज्यादा जमीन डूब जाएगी.

इसलिए आदिवासी समूहों को अपनी आजीविका के संकट का भी डर है. वहीं आदिवासी बरगी बांध के समय हुई परिस्थिति से इसकी तुलना कर रहे हैं.

बरगी बांध के समय में भी विस्थापित परिवारों के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक न्याय और संवैधानिक मूल्यों का हनन हुआ था.

क्या है बसनिया बांध प्रोजेक्ट

बसनिया बांध परियोजना की घोषणा 2012 में की गई थी. जिसके साथ इलाके में दो और बांध परियोजना रोसरा और राघवपुर भी प्रस्तावित हुए थे.

इस बांध की शुरूआत 2024 में की जाएगी. वहीं इसे सिंगल फेज़ में बनाने की बात कही गई है. इस बारे में मिली जानकारी के मुताबिक बसनिया बांध को बनाने में सरकार 3700 करोड़ की लगात लगा सकती है.

सिर्फ मंडला में ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश के वो ज़िले जो नर्मदा नदी से जुड़े हुए है उनमें बांध से हो रही विस्थापन की समस्या एक बड़ा मुद्दा है. जिनमें ज्यादातर लोग आदिवासी है.

100 प्रतिशत सक्षारता दर वाला पहला ज़िला

अगर मंडला ज़िले के सक्षारता दर की बात करे तो हाल ही के रिपोर्ट में ये पाया गया था की मंडला ऐसा पहला आदिवासी ज़िला है जिसका सक्षारता दर 100 प्रतिशत है.

मंडला की ज़िला कलेक्टर, हर्षिका सिंह ने बताया की 2011 में इस ज़िले का सक्षारता दर 68 फीसदी था. वहीं 2020 में किए गए सर्वे में भी ये पाया गया की लगभग दो लाख लोगों को पढ़ना लिखना नहीं आता है.

इस बात में तो कोई दो राय नहीं है कि मंडला में चुनाव जीतने की दावेदारी सत्ताधारी बीजेपी और कांग्रेस दोनो की है. लेकिन इन दोनों ही पार्टियों की चुनाव घोषणाओं को देखें तो कांग्रेस ने आदिवासी सश्कतिकरण पर ज़ोर दिया है. जबकि बीजेपी भावनात्मक मुद्दे उठा रही है.  

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