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क्या भाजपा सरकार असम की जनजातीय परिषदों की स्वायत्तता को खत्म कर रही है?

जहां एक तरफ़ कांग्रेस भाजपा सरकार पर आदिवासी परिषदों के फैसलों में दखल देकर उनकी स्वायत्तता छीनने का आरोप लगा रही है, वहीं दूसरी तरफ़ सरकार विकास और शांति की वापसी को अपनी उपलब्धि बता रही है...

असम के आदिवासी इलाकों में स्वायत्तता और विकास को लेकर राजनीति गर्म हो गई है.

कांग्रेस नेता और सांसद गौरव गोगोई द्वारा शनिवार को लगाए गए आरोपों के बाद अब भाजपा सरकार की ओर से जवाब सामने आया है.

शनिवार को कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोगोई ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार संविधान की छठी अनुसूची के तहत चल रही आदिवासी परिषदों के अधिकार छीन रही है.

उनका कहना था कि बोडोलैंड, कार्बी आंगलोंग और दीमा हासाओ जैसे आदिवासी क्षेत्रों की स्वायत्त परिषदें अब खुद फैसले नहीं ले पा रहीं क्योंकि मुख्यमंत्री सारे निर्णय अपने स्तर पर ही ले रहे हैं.

उन्होंने मुख्यमंत्री पर यह भी आरोप लगाया कि वह बड़ी-बड़ी कंपनियों को आदिवासियों की ज़मीन बांट रहे हैं.

गोगोई के इन बयानों के बाद अब भाजपा नेता और असम विधानसभा के डिप्टी स्पीकर डॉ. नुमल मोमिन ने कांग्रेस पर पलटवार किया है.

डॉ. मोमिन ने कहा कि आदिवासी परिषदों को लेकर जो बातें कांग्रेस नेता कह रहे हैं, वह हकीकत से दूर हैं.

उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस के शासनकाल में बोडोलैंड, दीमा हासाओ और कार्बी आंगलोंग में आतंकवाद और अत्याचार आम बात थी. वहां के लोग दशकों तक असुरक्षा और हिंसा के बीच जीते रहे.

उनका कहना है कि भाजपा सरकार के आने के बाद इन क्षेत्रों में शांति लौटी है और पहली बार इन आदिवासी इलाकों को असली विकास देखने को मिला है.

उन्होंने कहा, “आज यहां न सिर्फ सड़कों और स्कूलों का निर्माण हुआ है बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा और आजीविका के कई नए साधन खुले हैं.”

उन्होंने कहा, “मैं अनुरोध करना चाहता हूं कि राज्य कांग्रेस प्रमुख को पीछे मुड़कर देखना चाहिए कि उन्होंने इन आदिवासी क्षेत्रों में क्या किया और हम वर्तमान में क्या कर रहे हैं. अगर वह तुलना करेंगे तो मुझे नहीं लगता कि वह फिर से ऐसी बातें कहने और इस सरकार पर आरोप लगाने की हिम्मत करेंगे.”

गौर करने वाली बात यह है कि असम के तीन प्रमुख आदिवासी क्षेत्र बोडोलैंड, कार्बी आंगलोंग और दीमा हासाओ, संविधान की छठी अनुसूची के तहत विशेष अधिकार प्राप्त स्वायत्त परिषदों के अंतर्गत आते हैं.

इन परिषदों को इसलिए बनाया गया था ताकि स्थानीय लोग अपने क्षेत्र के प्रशासन और विकास से जुड़ी बातों पर खुद फैसले ले सकें.

लेकिन अब सवाल उठ रहा है कि क्या वाकई इन परिषदों के अधिकार सीमित हो रहे हैं?

भाजपा का दावा है कि जनता उनके साथ है और आने वाले विधानसभा चुनावों में आदिवासी समाज एक बार फिर उन्हें समर्थन देगा.

वहीं कांग्रेस इसे जनजातीय स्वायत्तता पर हमले के तौर पर पेश कर रही है. अब देखना ये है कि 2026 में आदिवासी जनता किसे चुनेगी.

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