ओडिशा स्थित सुंदरगढ़ में 23 अगस्त एक प्रकार से दुर्भाग्यपूर्ण और विडम्बना भरे दिन के रूप में ही याद किया जाएगा. इस दिन भारतीय हॉकी टीम आदिवासी महिला खिलाड़ियों को ओलंपिक में देश का नाम उंचा करने के लिए सम्मान किया गया.
वहीं दूसरी ओर इसी जिला अंतर्गत राउरकेला में आदिवासी महिला नेता अंजली सोरेन को उनके सभी कार्यकर्त्ताओं के साथ नज़रबंद कर दिया गया. वो ओड़िसा झामुमो कि प्रदेश अध्यक्ष और झारखण्ड मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की बड़ी बहन हैं.
न्यूज क्लिक का दावा है कि 22 अगस्त रक्षाबंधन के दिन रांची में अपने भाई हेमंत सोरेन को राखी बांधकर राउरकेला के होटल रेजेन्सी इन पहुंची थीं. वहां से अपनी पार्टी के नए प्रदेश नेताओं और कार्यकर्त्ताओं के साथ राजगांगपुर में जिंदल और ओसीएल कंपनियों के लिए ज़मीन अधिग्रहण को लेकर होने वाली जनसुनवाई में जाना था.
वो होटल से निकलने ही वाली थीं कि कई गाड़ियां में पहुंची ओड़िशा पुलिस ने उन्हें निकलने से रोक दिया. प्रशासन ने कहा कि उनके जाने से वहां ‘कानून व्यवस्था’ के लिए संकट खड़ा हो जाएगा इसलिए अगले आदेश तक उन्हें यहीं नज़रबंद रहना होगा.
अंजलि सोरेन और उनके पार्टी नेताओं ने प्रशासन को काफी समझाया कि वो किसी विरोध प्रदर्शन के लिए नहीं बल्कि वहां रह रहे अपने लोगों के लोगों के बुलावे पर जा रहें हैं. लेकिन प्रशासन ने एक नहीं सुनी और पूरे होटल की पुलिस घेराबंदी कर किसी को भी वहां से नहीं निकलने दिया.
अपने नेताओं की नज़रबंदी की खबर सुनकर वहां पहुंचे झामुमो कार्यकर्त्ताओं ने ओडिशा सरकार और प्रशासन विरोधी नारे लगते हुए राउरकेला के बिरसा मुंडा चौक पर नवीन पटनायक का पुतला जलाकर प्रतिवाद प्रदर्शन किया.
झारखण्ड मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी मीडिया में जारी बयान में अपने पार्टी नेता और बहन की गिरफ्तारी की निंदा की. इसे लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ बताते हुए कहा कि शांतिपूर्ण तरीके से जन सुनवाई में भाग लेने जा रहे उनकी पार्टी नेताओं और कार्यकर्त्ताओं की गिरफ्तारी से जन भावनाओं को गहरी ठेस पहुंची है.
ख़बरों के मुताबिक पूर्व निर्धारित समय के मुताबिक राजगांगपुर और कुतर ब्लॉक के कुकुड़ा प्रशासन ने जनसुनवाई रखी थी. जिसमें सुंदरगढ़ कलक्टर द्वारा जिंदल और ओसीएल इंडिया लिमिटेड की लौंजीबर्ना ख़ान के विस्तार के संबंध में अलंडा पंचायत में 164.82 एकड़ और कुकुड़ा पंचायत में 162.96 एकड़ भूमि अधिग्रहण को लेकर स्थानीय ज़मीन मालिकों से उनकी राय सलाह जानाने के लिए बुलाया गया था.
लेकिन ज़मीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे स्थानीय आदिवासी और मूलवासी समुदाय के सैकड़ों ग्रामीणों ने जाम लगाकर जनसुनवाई के लिए पहुंचे अधिकारीयों को रोक दिया. बाद में उसी स्थान पर प्रशासन ने बैठक की कारवाई शुरू करते हुए उपस्थित ग्रामीणों के समक्ष सरकार की ओर से प्रस्तावित ज़मीन अधिग्रहण के सन्दर्भ में तैयार रिपोर्ट पेश कर लोगों से अपना मत रखने को कहा.
जिसे सभी ग्रामीणों ने एक स्वर से उक्त रिपोर्ट के प्रस्तावों को खारिज कर जल जंगल ज़मीन पर आदिवासियों के अधिकारों की बात उठाते हुए किसी भी सूरत में ज़मीन देने से साफ़ मना कर दिया. कारण पूछे जाने पर सभी ने गुस्से भरे लहजे में कहा कि इसके पहले भी विकास के नाम पर अलग अलग परियोजनाओं के लिए उनकी ज़मीनें लेकर सबको नौकरी और समुचित मुआवजा देने का आश्वासन दिया गया था जो आज तक पूरा नहीं हुआ.
वहां मौजूद ज़मीन देने के कुछ समर्थकों और विरोधियों में हुई आपसी तकरार से थोड़ी देर के लिए अफरा तफरी भी हो गई थी लेकिन समझा बुझाकर मामला ठंडा कर लिया गया. बाद में प्रशासन एकतरफा ढंग से जन सुनवाई की प्रक्रिया पूरी होने की घोषणा करके वहां से चलता बना.
उधर प्रशासन ने दो दिनों तक अंजलि सोरेन समेत सभी झामुमो नेताओं को राउरकेला के होटल रीजेंसी इन में लगातार दो दिनों तक नज़रबंद रखकर वहां से निकलने नहीं दिया. जिसके खिलाफ नज़रबंद नेताओं ने वहीं से अपने वीडियो वायरल करते हुए ओड़िशा सरकार और प्रशासन पर तानाशाही का रवैया अपनाने का आरोप लगाया.
25 अगस्त को राउरकेला होटल में नज़रबंद झामुमो ओड़िशा राज्य झामुमो अध्यक्ष अंजलि सोरेन की विशेष अपील पर उन्हें अपने सहयोगियों के साथ पुलिस के घेरे में राउरकेला महानगर निगम उपायुक्त के पास जाने की अनुमति मिली. जहां उन्होंने डीसी को अपना ज्ञापन प्रेषित करते हुए उक्त क्षेत्र में ज़मीन अधिग्रहण को लेकर की जा रही जन सुनवाई को तकाल रद्द करने की.
ज्ञापन के जरिए यह भी कहा कि पुरखों के ज़माने से ही हमलोग अपनी छोटी सी ज़मीन पर खेती करके अपने परिवार का पेट पाल रहें हैं. अगर हमारी ये ज़मीन भी चली जाएगी तो हमारे बच्चों और परिवार का भरण पोषण हम कैसे करेंगे. सरकार तो हमसे ज़मीन ले लेगी और इसके बदले रोज़गार और मुआवजा भी नहीं देगी. तब हम कैसे जिएंगे ? इसी दिन पुलिस ने सभी नज़रबंद नेताओं को रिहा कर दिया.
इन सभी बातों में दम है क्योंकि पिछले दिनों पूरे देश ने भी देखा है कि किस तरह से ओड़िशा की सरकार ने विकास के नाम पर निजी कंपनी और कॉर्पोरेट परस्त विकास का मॉडल लागू करने के लिए विवादों और सवालों के घेरे में रही है. जबरन ज़मीन अधिग्रहण का विरोध करने पर कलिंगनगर और पोस्को विरोधी आंदोलन समेत कई स्थानों पर आदिवासियों मूलवासियों और किसानों पर गोलियां चलवाई.