मणिपुर के तेंगनौपाल ज़िले में इंडो-म्यांमार बॉर्डर के पास घेराबंदी (फेंसिंग) जारी है. इस घेराबंदी को लेकर कुकी-ज़ो समुदाय के गांव प्रमुखों ने कड़ा विरोध जताया है.
यहां के 15 से ज़्यादा गांवों के मुखियाओं ने एक साझा बयान जारी कर सरकार से तुरंत रोकने की मांग की है.
उनका कहना है कि यह फेंसिंग सीधे गांव की ज़मीन को प्रभावित कर रही है और यहां रहने वाले लोगों की ज़िंदगी को मुश्किल बना सकती है.
बिना सहमति आगे बढ़ रहा काम
गांव प्रमुखों का आरोप है कि कई बार प्रेस विज्ञप्ति, ज्ञापन और रैलियों के ज़रिए विरोध जताने के बावजूद सरकार ने उनकी राय नहीं ली.
उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार ने न तो किसी तरह की बातचीत की और न ही सहमति बनाने की कोशिश की. विरोध के बावजूद सीमा पर फेंसिंग का काम जारी है.
फ्री मूवमेंट रेजीम को लेकर नाराज़गी
कुकी-ज़ो प्रमुखों ने कहा कि यहां के लोग लंबे समय से ‘फ्री मूवमेंट रेजीम’ (FMR) के तहत आवाजाही करते आए हैं.
इस व्यवस्था से दोनों देशों के सीमावर्ती गांवों के लोग आसानी से एक-दूसरे के इलाके में आ-जा सकते हैं.
फेंसिंग होने से यह सुविधा खत्म हो जाएगी, जिससे रोज़गार और आजीविका पर असर पड़ेगा.
यूनाइटेड नागा काउंसिल (UNC) ने भी फेंसिंग और ‘फ्री मूवमेंट रेजीम’ को खत्म करने का विरोध किया था, लेकिन सरकार ने उनकी भी नहीं सुनी.
संयुक्त बयान में गांव प्रमुखों ने साफ कहा कि जब तक उनकी राजनीतिक मांगों पर विचार नहीं होता और राज्य में शांति वापस नहीं आती तब तक वे किसी तरह की बातचीत नहीं करेंगे. उन्होंने ज़मीन के मुआवज़े पर भी सहमत होने से साफ इंकार कर दिया है.
उन्होंने चेतावनी दी कि फेंसिंग का काम तुरंत रोका जाए और सुरक्षा बलों व मशीनों को क्षेत्र से हटाया जाए ताकि स्थिति और न बिगड़े.
विरोध में शामिल गांव
संयुक्त बयान पर न्यू शिजांग, लेइजांगफाई, टी.वी. गमनोमफाई, हुआलेनफाई, वाई. ङाहमुन, मोथा, चोंगजांग, चाल्सन, यांगोउबुंग, एच. लुंघोइहम, एच. मुनोम, जे. मुनोमजांग, एन. गंगपिजांग, टी. बॉंगमोल, एल. फुंचोंग और न्यू सालबुंग नामक ग्राम प्रमुखों ने हस्ताक्षर किए हैं.
कुकी-ज़ो नेताओं का कहना है कि अगर सरकार ने उनकी बात नहीं सुनी तो यह मुद्दा सीमा क्षेत्र में पहले से मौजूद तनाव को और बढ़ा सकता है.
FMR क्या है?
फ्री मूवमेंट रेजीम (FMR) भारत और म्यांमार के बीच 1967 में हुए एक द्विपक्षीय समझौते का हिस्सा है. इसे 1970 के दशक में लागू किया गया था.
इसके तहत दोनों देशों की सीमा के 16 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले नागरिक बिना पासपोर्ट और वीज़ा के एक-दूसरे के इलाके में 72 घंटे तक आ-जा सकते हैं.
इस व्यवस्था का उद्देश्य सीमा पर बसे जनजातीय समुदायों को उनके पारंपरिक रिश्तों, सांस्कृतिक मेलजोल और छोटे व्यापार को बनाए रखने की सुविधा देना था.
मणिपुर, नागालैंड, मिज़ोरम और अरुणाचल प्रदेश में कई परिवारों की जड़ें दोनों तरफ फैली हैं. इसलिए यह व्यवस्था उनके सामाजिक और आर्थिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा रही है.
हाल ही के वर्षों में म्यांमार में सैन्य तख्तापलट और बढ़ती हिंसा, मादक पदार्थों की तस्करी और अवैध घुसपैठ को देखते हुए भारत सरकार ने 2024 से FMR को कड़ा करने और सीमा पर घेराबंदी तेज़ करने की प्रक्रिया शुरू की है.
इससे मणिपुर के कुकी-ज़ो और अन्य जनजातीय समुदायों में यह चिंता बढ़ी है कि पारंपरिक व्यापार और पारिवारिक संपर्क टूट सकते हैं. इसलिए गांवों के प्रमुख इस घेराबंदी का विरोध कर रहे हैं.
ढाई साल से जारी हिंसा का असर
मणिपुर में 3 मई 2023 से शुरू हुई जातीय हिंसा में अब तक 260 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और 60,000 से अधिक लोग अपने घरों से बेघर हुए हैं.
मणिपुर में बिगड़ती सुरक्षा स्थिति और उसके बाद सामने आए राजनीतिक घटनाक्रम के कारण मणिपुर फरवरी 2025 से राष्ट्रपति शासन के अधीन है. जुलाई 2025 में राष्ट्रपति शासन को अन्य 6 महीने के लिए बढ़ाने की घोषणा कर दी गई थी.
मणुपुर में चल रहे संघर्ष के दौरान ही कुकी-ज़ो संगठनों ने अलग प्रशासन की मांग तेज कर दी थी. माना जा रहा है कि इसी तनाव के कारण बॉर्डर फेंसिंग के खिलाफ भी विरोध हो रहा है.
(Image Credit – The Hindu)