कांग्रेस ने बुधवार को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के आदिवासी बहुल इलाकों में खनन के लिए हजारों हेक्टेयर जमीन की नीलामी के भाजपा सरकार के फैसले के खिलाफ जन आंदोलन की घोषणा की.
पूर्व जिला अध्यक्ष महेश पटेल और जोबट विधायक सेना पटेल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इसे ‘खनन साजिश’ करार दिया.
उन्होंने अलीराजपुर जिले में हज़ारों हेक्टेयर जमीन की नीलामी और 600 हेक्टेयर जमीन को खनन प्रक्रिया में शामिल करने की आलोचना की. साथ ही उन्होंने सरकार पर इन घटनाक्रमों के बारे में आदिवासी समुदाय को जानकारी न देकर धोखा देने का आरोप लगाया है.
महेश पटेल ने विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि केंद्र और राज्य सरकारों ने मध्य प्रदेश, झारखंड और राजस्थान में खनिज खनन के लिए अलग-अलग जमीनों की पहचान की है.
विशेष रूप से जोबट विधानसभा क्षेत्र में हज़ारों हेक्टेयर जमीन को खनन के लिए चिह्नित किया गया है, जिसमें पड़ोसी धार जिले के अतिरिक्त ब्लॉक भी शामिल हैं.
उन्होंने कहा कि 2003 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने झाबुआ-अलीराजपुर को अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया था लेकिन भाजपा सरकार ने इस घोषणा की अनदेखी की है.
पटेल ने कहा कि जोबट क्षेत्र में छह ब्लॉक पहले ही खनन के लिए निर्धारित किए जा चुके हैं, जिनमें करीब 4,000 हेक्टेयर भूमि शामिल है. उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों पर आदिवासी समुदायों को उनकी पुश्तैनी ज़मीनों से बेदखल करने की साजिश रचने का आरोप लगाया है.
आदिवासी भूमि के विनाश से आदिवासी समुदायों की आजीविका प्रभावित होगी, साथ ही पर्यावरण और वन्य जीवन को भी गंभीर नुकसान पहुंचेगा, जिससे मानव-हाथी संघर्ष की स्थिति और भी बदतर हो सकती है.
उन्होंने कहा कि आदिवासी लोगों ने अपनी पवित्र और महत्वपूर्ण भूमि की रक्षा के लिए हर दरवाजे पर दस्तक दी है लेकिन सरकार ने आदिवासी और मूल निवासी लोगों के अधिकारों और भारत के संविधान और कानूनों से ऊपर खनन को प्राथमिकता देना चुना है.
वन अधिकार कानून, 2006 और पेसा एक्ट होने के बावजूद अक्सर आदिवासियों की जमीन पर अतिक्रमण के मामले सामने आते हैं.
आदिवासी इलाकों में रहने वाले या वहां काम करने वाले लोग जानते हैं कि यह कानून होने के बावजूद हकीकत में अक्सर इसका पालन ठीक से नहीं होता है.
MP में 2022 में लागू हुआ था पेसा कानून
मध्य प्रदेश में साल 2022 में पेसा क़ानून से जुड़े नियम लागू किए गए हैं. यह क़ानून 1996 में बना था जो आदिवासी बहुल इलाक़ों में पंचायती राज से जुड़ा है.
ये क़ानून आदिवासी इलाक़ों में मौजूद संसाधनों के प्रबंधन में ग्राम सभाओं की भागीदारी सुनिश्चित करता है. उसी तरह से वन अधिकार क़ानून 2006 भी जंगलों के प्रबंधन में आदिवासी समुदाय को अधिकार देता है.
पेसा अधिनियम के तहत मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 15 नवम्बर 2022 को आदिवासी बहुल और अनुसूची छह के तहत घोषित अनुसूचित क्षेत्रों में पेसा एक्ट लागू किया था.
यह नियम लागू कर तत्कालीन शिवराज सरकार ने आदिवासियों का हितैषी बताकर उन्हें लुभाने के लिए प्रदेश में नवंबर और दिसंबर 2022 में बड़े-बड़े आयोजन किए थे.
तत्कालीन भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने उस वक्त मंचों से कहा था कि सरकार आदिवासियों के अधिकारों के संरक्षण करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है. अब यही भाजपा की सरकार पेसा कानून की धज्जियां उड़ा रही है.
पेसा कानून 1996 की धारा 4 के अंतर्गत किसी भी प्रकार की खनन गतिविधियों के लिए ग्राम पंचायतों की अनुशंसा और अनापत्ति लेना जरूरी है जो की अक्सर नहीं ली जाती है.
आदिवासियों का पलायन और विस्थापन सदियों से होता रहा है और ये आज भी जारी है. आदिवासियों के विस्थापन की कई वजहें रही हैं. लेकिन बड़ी बांध परियोजनाएँ और खनन आदिवासी विस्थापन की दो बड़ी वजह कही जा सकती हैं.
जब आदिवासी विस्थापन का शिकार होता है तो सिर्फ़ जंगलों, संसाधनों या गांवों से ही बेदखल नहीं होता है. उसकी जीवनशैली, भाषा और संस्कृति सब प्रभावित होता है.