HomeAdivasi Dailyधार के आदिवासी छात्रावासों में करोडों का बजट, सुविधाएं नदारद

धार के आदिवासी छात्रावासों में करोडों का बजट, सुविधाएं नदारद

प्रिंसिपलों ने पिछले साल खरीदे गए बिस्तर और चादरों जैसी आवश्यक वस्तुओं को छात्रों को देने से रोक लिया है. क्योंकि प्रिंसिपलों को नए बजट का इंतजार है.

मध्य प्रदेश के धार जिले में आदिवासी विकास विभाग के अंतर्गत आने वाले करीब 250 छात्रावास अपने छात्र-छात्राओं को मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

पिछले साल करोड़ों रुपए का बजट मिलने के बावजूद कई छात्रावास अपने विद्यार्थियों को गद्दे, तकिए, चादरें और कंबल जैसी जरूरी चीजें मुहैया करने में विफल रहे.

आमतौर पर जुलाई में नए विद्यार्थियों को ये चीजें वितरित की जाती हैं लेकिन इस साल नया बजट न होने का हवाला देकर कई छात्रावासों ने ऐसा नहीं किया है. नतीजतन, हजारों विद्यार्थी इन बुनियादी जरूरतों से वंचित हो रहे हैं.  

सूत्रों के मुताबिक, संबंधित प्रिंसिपल और ब्लॉक शिक्षा अधिकारी इस मुद्दे को हल करने के लिए कार्रवाई नहीं कर रहे हैं और इसके बजाय, नए बजट के आने का इंतजार कर रहे हैं.

इससे ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि पिछले साल की चीजें वितरित नहीं की जा रही है और नई चीजें नहीं खरीदी जा रही है.

आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त ब्रजकांत शुक्ला ने स्थिति पर हैरानी जताते हुए मामले की जांच करने का वादा किया.

उन्होंने जोर देकर कहा कि हर साल नए विद्यार्थियों को छात्रावासों में प्रवेश दिया जाता है और उन्हें बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना हॉस्टल सुपरिटेंडेंट की जिम्मेदारी है.

छात्रावास स्टाफ की भारी कमी

इसके अलावा धार जिले की ही कन्या शिक्षा परिसर सहित 250 में से करीब 50 छात्रावासों में 400 से 500 बच्चे रहते हैं और ये छात्रावास स्टाफ की भारी कमी से जूझ रहे हैं.

परेशान करने वाली बात यह है कि भोजन तैयार करने के लिए महिला स्टाफ की कमी के कारण कुछ छात्रावासों में बच्चों को अपना भोजन खुद बनाना पड़ रहा है.

आदिवासी कल्याण में सरकार के महत्वपूर्ण निवेश के दावों के बावजूद इन बच्चों की भलाई के लिए जरूरी मूलभूत सुविधाएं अपर्याप्त हैं.

इन छात्रावासों के प्रिंसिपल ने कलेक्टर और कमिश्नर सहित जिला अधिकारियों से रोटी बनाने वाली मशीनों की व्यवस्था करने की बार-बार अपील की है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई है.

इन छात्रावासों के दूरदराज के जगहों के कारण समस्या और भी गंभीर हो गई है. कुछ छात्रावास नजदीकी शहर से 5 से 10 किलोमीटर दूर स्थित हैं.

ऐसे में 5 हज़ार रुपये के मामूली वेतन के साथ महिला कर्मचारियों को परिवहन लागत को कवर करना मुश्किल लगता है, जिससे कर्मचारियों को बनाए रखने में और भी चुनौतियां आती हैं.

इतना ही नहीं प्रिंसिपलों ने पिछले साल खरीदे गए बिस्तर और चादरों जैसी आवश्यक वस्तुओं को छात्रों को देने से रोक लिया है. क्योंकि प्रिंसिपलों को नए बजट का इंतजार है और वे आने वाली आपूर्ति के साथ पुरानी सूची को एडजस्ट करने की उम्मीद कर रहे हैं.

इस मामले में भी आदिवासी विभाग के सहायक आयुक्त, ब्रजकांत शुक्ला ने आश्वासन दिया कि रोटी बनाने वालों की व्यवस्था चल रही है और संबंधित प्रिंसिपलों के साथ छात्रों को नहीं बांटे गए सामान के मुद्दे को हल करने का वादा किया.

इन 250 छात्रावासों में करीब 5,000 से 7,000 बच्चे दाखिला लेते हैं और अब उन्हें इन जरूरी चीजों की कमी के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

यह स्थिति बेहतर प्रबंधन और अधिकारियों के बीच समन्वय की जरूरत को उजागर करती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि छात्रों को वे बुनियादी सुविधाएं मिलें जिनके वे हकदार हैं.

साथ ही चल रही उपेक्षा और समय पर कार्रवाई की कमी आदिवासी बच्चों के कल्याण को ख़तरे में डालती है, जो इन छात्रावासों में सरकारी खर्च और जमीनी हकीकत के बीच एक स्पष्ट अंतर को उजागर करती है.

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