केरल के वायनाड ज़िले की चेयंबम काट्टुनायकन बस्ती के निवासी आत्मनिर्भर हो रहे हैं. नाबार्ड (NABARD) के सहयोग से एम.एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (MSSRF) द्वारा लागू किए गए वाडी योजना उनकी इसमें मदद कर रहा है.
काट्टुनायकन एक विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह यानि पीवीटीजी है. वो घने जंगलों में रहते हैं. वो खेती-किसानी में माहिर नहीं हैं, और अब तक उनकी आजीविका लघु वनोपज इकट्ठा कर और उसे बेचकर चलती थी.
2010 में वन अधिकार अधिनियम के तहत बस्ती के 302 परिवारों को दो-दो एकड़ जमीन दी गई. लेकिन उससे कुछ ख़ास फ़ायदा इनको नहीं हुआ, क्योंकि उनकी फ़सल को या तो कीड़े खा जाते थे, या बीमारी.
पिछले कुछ सालों में MSSRF ने गाँव में कई परियोजनाओं को लागू किया, ताकि यह आदिवासी खेती को अपना सकें. इसे बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण क़दम उठाया गया. MSSRF ने सुनिशचित किया है कि डिस्ट्रेस सेल यानि संकट में की जाने वाली बिक्री कम हो.
इन आदिवासियों द्वारा उगाई जाने वाली प्रमुख फसलों में कॉफी, काली मिर्च, अदरक और हल्दी शामिल थे. लेकिन हालात इतने बुरे थे कि आदिवासी किसान अकसर बिचौलियों को फ़सल कटाई से पहले से अपनी उपज बेचने को मजबूर हो जाते थे.
MSSRF ने इन आदिवासियों को अतिरिक्त आय के लिए इंटरक्रॉपिंग करने के लिए प्रोत्साहित किया, और उन्हें बीज भी दिए. इससे यह आदिवासी अपनी प्रमुख फ़सलों के बीच में भी कुछ पैसे कमा सकते हैं.
बस्ती के आदिवासियों को आधुनिक कृषि पद्धतियों और उनकी फ़सलों से मूल्य वर्धित उत्पाद (value-added products) बनाने के लिए प्रशिक्षित भी किया गया. ज़िले के अंदर और बाहर खरीदारों के साथ स्थापित लिंकेज ने उन्हें अपनी उपज का अच्छा दाम दिलाया.
बस्ती की ग्राम योजना समिति के अध्यक्ष बोलन ने एक अखबार को बताया कि दूसरी बड़ी पहल थी पानी की उपलब्धता को बढ़ाने के लिए दो तालाबों की खुदाई.
तालाबों की खुदाई से पहले बस्ती के लोगों को पीने के पानी के लिए पानी के टैंकरों का इंतज़ार करना पड़ता था. अब गांव में बारिश के गड्ढे, खाइयां और मिट्टी के बांध जैसे उपायों ने पानी की उपलब्धता को बेहतर कर दिया है.
MSSRF ने अब तक इस परियोजना पर 1.35 करोड़ रुपए ख़र्च किए हैं. परियोजना ने काट्टुनायकन समुदाय को घरों, शौचालयों और बिजली की आपूर्ति सहित सरकार की कई दूसरी परियोजनाओं का फ़ायदा उठाने में मदद की है.
इसके अलावा स्वास्थ्य विभाग की मदद से क्यासानूर वन रोग, जिसे मंकी फ़ीवर (monkey fever) भी कहा जाता है, के ख़िलाफ़ प्रिवेंशन क़दम उठाए गए और आदिवासियों को बचाया गया.
यह बीमारी गर्मी के मौसम में आदिवासियों के लिए एक बड़ा ख़तरा है. पिछले कुछ सालों से इस बीमारी से 13 आदिवासियों की मौत भी हुई है.