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मणिपुर में संघर्ष ‘कानून और व्यवस्था’ की समस्या है : जुएल ओराम

पिछले एक साल से मणिपुर के हालात पर नरेन्द्र मोदी सरकार के भीतर कुछ हलचल नज़र आ रही है. हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह ने वहां के हालातों पर एक बैठक की थी. आरएसएस चीफ़ मोहन भागवत ने अपने एक भाषण में कुछ दिन पहले ही यह कहा था कि मणिपुर में शांति स्थापना सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए.

केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री जुएल ओराम (Jual Oram) ने बुधवार को कहा कि मणिपुर (Manipur) में एक साल से अधिक समय से चल रहा जातीय संघर्ष एक “कानून और व्यवस्था की समस्या” है. उन्होंने कहा कि लेकिन इसे केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा निपटाया जा रहा है.

यह पहली बार है जब किसी केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री ने घाटी में रहने वाले मैतेई लोगों (Meitei people) और पहाड़ों में रहने वाले अनुसूचित जनजाति कुकी-ज़ो (Kuki-Zo) के बीच में जारी संघर्ष के बारे में बात की है.

पिछले हफ्ते जनजातीय मामलों के मंत्रालय का कार्यभार संभालने वाले ओराम ने द हिंदू के साथ एक ख़ास बातचीत में कहा कि जब भी इस तरह का संघर्ष होता है तो सभी के लिए समाधान तलाशना स्वाभाविक है.

ओराम ने कहा, “यह समस्या वास्तव में गृह मंत्रालय की है. कानून और व्यवस्था की स्थिति राज्य का विषय है. इसके बारे में आप केवल इसलिए पूछ रहे हैं क्योंकि इसमें शामिल पक्षों में से एक आदिवासी समुदाय है… कौन समाधान नहीं चाहेगा? लेकिन गृह मंत्रालय राज्य सरकार और राज्यपाल के साथ समन्वय में इस पर काम कर रहा है.”

उन्होंने कहा कि बिना विस्तृत जानकारी के इस मुद्दे पर और टिप्पणी करना समझदारी नहीं होगी.

वहीं इस सप्ताह की शुरुआत में यानि सोमवार को मणिपुर में सुरक्षा समीक्षा बैठक की अध्यक्षता करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि गृह मंत्रालय दोनों समुदायों के बीच “जातीय विभाजन को पाटने” के लिए उनसे बातचीत करेगा.

शाह ने मणिपुर में केंद्रीय बलों की तैनाती का फैसला लिया है ताकि वहां शांति और सौहार्द का माहौल तैयार हो सके. इसके साथ ही जरूरत के मुताबिक फोर्स की तैनाती बढ़ाई जाएगी.

केंद्रीय गृह मंत्री ने बैठक के बाद कहा था, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार सभी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. जरूरत पड़ने पर केंद्रीय बलों की तैनाती बढ़ाई जाएगी.”

गृह मंत्री ने हिंसा करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करने का निर्देश दिया है.

केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि गृह मंत्रालय शांति की स्थापना के लिए मैतेई और कुकी समुदाय से बात करेगा ताकि जल्द से जल्द जातीय विभाजन को पाटा जा सके.

मणिपुर के हालात

मणिपुर में एक वर्ष से ऊपर हो गया हिंसा होते लेकिन न तो केंद्र और न ही राज्य सरकार ने इसे रोकने के लिए कोई उल्लेखनीय कदम उठाया. राज्य में जारी हिंसा को लेकर लगातार दोनों सरकारों पर उंगलियां उठती रही हैं.

पिछले साल यानि 3 मई 2023 को जब मणिपुर में हिंसा भड़की, तब सेना की गश्ती बढ़ा दी गई थी. जिसके चलते हिंसा पर एकदम से काबू पा लिया गया लेकिन फिर महीने भर के भीतर ही हिंसा भड़क गई थी. उसके बाद उस पर काबू पाने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया.

उपद्रवियों ने पुलिस शस्त्रागार से बड़े पैमाने पर हथियार लूट लिए, मैतेई और कुकी दोनों समुदाय एक-दूसरे पर हमले करने लगे थे. उस दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने वहां का दौरा किया था और तब भी उन्होंने हिंसा करने वालों को कड़ी चेतावनी दी थी लेकिन उसका कोई ख़ास असर नहीं हुआ.

तब से जैसे वहां के लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है. इसकी नतीजा यह हुआ कि बहुत सारे लोगों के घर जला दिए गए, पूजा स्थलों को ध्वस्त कर दिया गया, मैतेई बहुल इलाकों से कुकी आदिवासी लोग अपने घर, जमीन छोड़कर भागने पर विवश हो गए तो वहीं कुकी बहुल इलाकों में रहने वाले मैतेई लोग सब कुछ छोड़कर चले गए.

राज्य के 50 हज़ार से ज्यादा लोग अपने घरों को छोड़ राहत शिविरों में रहने को मजबूर हुए. इस हिंसा में 200 से अधिक लोगों की जान चली गई.

इस सबके बावजूद केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया. प्रधानमंत्री पर आरोप है कि वे आज तक मणिपुर पर कुछ नहीं बोले…

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए अपनी निगरानी में जांच समिति का गठन किया और राज्य पुलिस को कड़ी चेतावनी दी लेकिन इस सबका का भी कोई ख़ास नतीजा नहीं निकल पाया है.

राज्य के राहत शिविरों में नाम मात्र के संसाधनों के साथ जी रहे हैं लोग. राहत शिविरों में रह रहे लोगों को न तो ढंग का भोजन मिल पा रहा है, न पीने का पानी, न स्वास्थ्य सुविधाएं. इंटरनेट, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई सब कुछ बाधित है.

मणिपुर को उसके हाल पर छोड़ देने को लेकर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भी कुछ दिनों पहले सरकार की कड़े शब्दों में निंदा की थी. शायद इसी का असर है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मणिपुर की सुरक्षा को लेकर फिक्र जताई है.

ऐसे में अब देखना है कि मणिपुर में जारी हिंसा और बिगड़े हालात में किस स्तर तक सुधार आता है.

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