मणिपुर में चल रहे जातीय संघर्ष के कारण बच्चों पर मानसिक असर बढ़ता जा रहा है.
इसी का ताज़ा उदाहरण जिरीबाम जिले के एक स्कूल में बने राहत शिविर में देखने को मिला.
यहां 13 साल का एक लड़का संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाया गया.
पुलिस के अनुसार, मृतक लड़का लम्ताईखुनोउ, बोरोबेकरा सब-डिवीज़न का निवासी था.
दो साल पहले हुई झड़पों के दौरान उसका घर जल गया था. इसके बाद से उसके परिवार को राहत शिविर में रहना पड़ रहा था.
घटना की जानकारी और पोस्टमार्टम
पुलिस ने बताया कि यह घटना रविवार को रात 1.50 बजे हुई.
लड़के को जिरीबाम हायर सेकेंडरी स्कूल के पार्किंग शेड में लटकते हुए पाया गया. सूचना मिलते ही पुलिस टीम 2.10 बजे मौके पर पहुंची. शव को जिरिबम अस्पताल ले जाया गया. पोस्टमार्टम सिल्चर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, गंगूर, असम में किया जाएगा.
इस मामले में पुलिस ने स्वत संज्ञान लेते हुए केस दर्ज करके जांच शुरू कर दी है.
परिवार और बच्चों पर मानसिक असर
मृतक के माता-पिता ने मीडिया को बताया कि लड़का शनिवार को स्थानीय त्योहार ‘लाई हुराओबा’ से रात 11 बजे वापस आया था.
इस घटना से राहत शिविरों में रह रहे लोगों को गहरा सदमा पहुँचा है. उन्होंने बताया कि लंबी अवधि तक विस्थापन और अनिश्चितता का असर बच्चों की मानसिक स्थिति पर पड़ रहा है.
मणिपुर चाइल्ड राइट्स कमीशन के अध्यक्ष, केइसम प्रदीपकुमार ने भी इस घटना को गंभीर बताया है.
उन्होंने अधिकारियों को रिपोर्ट सौंपी और कहा कि राहत शिविरों में नियमित निगरानी, बच्चों के लिए काउंसलिंग और मनिपुर स्टेट पॉलिसी फॉर चिल्ड्रन का शीघ्र क्रियान्वयन ज़रूरी है.
हाल के समय में बढ़ती आत्महत्याएं
केइसम प्रदीपकुमार ने बताया कि राज्य में लंबे समय से चल रही हिंसा के कारण हाल के महीनों में बच्चों में आत्महत्याओं की घटनाएं बढ़ रही हैं.
जुलाई 2025 में सैटन गांव के स्कूल हॉस्टल में एक 13 वर्षीय बच्चे ने भी संदिग्ध परिस्थितियों में अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली थी.
अगस्त में भी यहां आत्महत्या के दो मामले सामने आए थे. एक मामला मोइरांग खोइरु माखा इलाके का है, जहां 15 वर्षीय लड़के को लटका हुआ पाया गया था.
वहीं, अगस्त के अंत में भी, थामनापोक्पी में कक्षा 9 की एक लड़की की संदिग्ध आत्महत्या हुई थी.
राहत शिविरों में सुरक्षा की आवश्यकता
प्रदीपकुमार ने कहा कि राहत शिविरों में रह रहे बच्चों के लिए तुरंत सुरक्षा और मानसिक देखभाल का इंतज़ाम करना बहुत ज़रूरी है.
बच्चों को समय-समय पर समझाने-बुझाने वाले लोग, बातचीत करने का मौका और खेलने-सीखने जैसी गतिविधियाँ मिलनी चाहिए ताकि उनका मन हल्का हो सके और उनके मन में डर या उदासी घर न करे.
आगे इस तरह का कोई मामला सामने न आए इसलिए मणिपुर में सरकार और समाज दोनों को बच्चों की सुरक्षा और उनके मन की हालत पर ध्यान देने की ज़रूरत है.