सामाजिक कार्यकर्ता और सुप्रीम कोर्ट के वकील, राधाकांता त्रिपाठी (Social activist and Supreme court Lawyer Radhakanta Tripathi) की रिपोर्ट का अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) ने संज्ञान लिया है.
इस रिपोर्ट में उन्होंने सुंदरवन के आदिवासियों (Tribes of West Bengal) की ख़राब स्थिति को उजागर किया है.
उनकी रिपोर्ट देखने के बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National commission for Schedule tribal) ने गहरी चिंता जाताई है. इसके साथ ही आयोग ने केंद्र और राज्य सरकार से सुंदरवन के आदिवासियों की स्थिति पर कार्रवाई करने को कहा है.
इस रिपोर्ट में जो खुलासे हुए है, वह चिंताजनक है.
रिपोर्ट के अनुसार सुंदरवन क्षेत्र में 2 लाख 11 हज़ार 927 आदिवासी रहते है. जिनमें मुंडा, संथाल, भूमिज, उराँव मुख्य जनजाति हैं.
यह आदिवासी यहां पर सबसे पहले आकर बसे थे. लेकिन सुविधाओं कि कमी के कारण ये आदिवासी दूसरे स्थानों पर पलायन कर रहे हैं.
बंगाल की खाड़ी के पास मौजूद सुंदरवन, विशाल मैनग्रोव और प्राकृतिक खूबसूरती के लिए मशहूर है. लेकिन इसी प्राकृतिक खूबसूरती में रहने वाले आदिवासियों का जीवन आज उतना ही दुखद हो गया है.
रिपोर्ट में पाया गया की यहां पर रहने वाले आदिवासियों में बाल विवाह एक बड़ी समस्या है.
आदिवासी समाज में लड़कियों की शादी 15 से 16 वर्ष में ही कर दी जाती है. उन्होंने अपनी इस रिपोर्ट में बताया की हसनाबाद पंचायत में बाल विवाह के कम से कम 15 मामले दर्ज किए गए है.
बाकी बचे मामले शायद ही कभी दर्ज हो. क्योंकि यहां बाल विवाह प्रचलित होने का कारण आदिवासियों की रूढ़वादी सोच और शिक्षा की कमी है.
इसके अलावा रिपोर्ट में यह बताया गया है कि पश्चिम बंगाल, महिलाओं और लड़कियों के मानव तस्करी के मामले में दूसरे नंबर पर आता है.
मानव तस्करी की यह समस्या सुंदरवन के आदिवासी बस्तियों में भी प्रचलित है. जिनका कारण आर्थिक स्थिति खराब होना, रिलेशनशिप, मानसिक बीमारियां, शिक्षा की कमी और खराब सामाजिक और आर्थिक स्थिति बताई गई है.
सुंदरवन लगभग 100 जंगली शेरों को घर है. जिसकी वज़ह से मानव-पशु संघंर्ष भी यहां एक बड़ी समस्या है.
त्रिपाठी ने बताया हाल ही में सीएजी (Comptroller and Auditor General) की रिपोर्ट से यह पता चला है कि रामसर से लेकर कोलकता के वेटलैंड और सुंदरवन तक निमार्ण संबंधित अवैध कार्य किए जा रहे हैं. जिनको नियंत्रण करना अति आवश्यक है.
समाजिक कार्यकर्ता और वकील, राधाकंता त्रिपाठी ने मुख्य सचिव, जिला कलेक्टरों और पर्यावरण और ग्रामीण विकास मंत्रालय से यह आग्रह किया की इन आदिवासी बस्तियों पर जांच के लिए एक टीम बनाई जाए.
राधाकांत त्रिपाठी की रिपोर्ट में आदिवासियों की जो स्थिति है आदिवासियों के वैसे हालात कई राज्यों में मिलते हैं.
देश भर में आदिवासियों की सामाजिक और आर्थिक हालतों पर साल 2014 में खाखा कमेटी ने एक विस्तृत रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी.
लेकिन केंद्र सरकार या फिर अनुसूचित जनजाति ने इस रिपोर्ट या फिर बीजेपी शासित राज्यों में आदिवासियों के हालातों पर रिपोर्ट तलब नहीं की है.
इसलिए यह समझा जा सकता है कि पश्चिम बंगाल में अनुसूचित जनजाति आयोग की सक्रियता का कारण शायद राजनीतिक ज़्यादा है.