HomeAdivasi Dailyबच्चे ने चौंक कर पूछा, "अंकल आप मुझे जानते हो क्या?"

बच्चे ने चौंक कर पूछा, “अंकल आप मुझे जानते हो क्या?”

बज़ार में अपनी माँ की गोद में बाज़ार की सैर कर रही यह बच्ची कैमरा देख चौंक गई है. मानो पूछ रही है अंकल आप मुझे जानते हो क्या ? कौन हो तुम और कहां से आए हो? इस बाज़ार में औरतों की तादाद मर्दों से ज़्यादा पाई जाती है.

मैं भी भारत की यात्रा में आदिवासी समुदायों से मिलने के सिलसिले में इस बार आंध्र प्रदेश और ओडिशा के कम से कम तीन ज़िलों में जाना हुआ. आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम ज़िले की आरकु घाटी से इस सिलसिले की शुरूआतें हुई.

यहाँ से हम ओडिशा के कोरापुट होते हुए मलकानगिरी तक पहुँचे. इस दौरान जंगलों और पहाड़ों में बसे कई आदिवासी बस्तियों और गाँवों में जाना हुआ. इस दौरान ली गई कुछ तस्वीरें आपके साथ साँझा कर रहे हैं.

धान बरसाता यह किसान कोंडा समुदाय से हैं

यह पहली तस्वीर आरकु मंडल के एक छोटे से आदिवासी गाँव के एक किसान की है. इन्होंने बताया कि इनके पास कुछ पोडु भूमि है और कुछ समतल खेती है. पोडु भूमि यानि पहाड़ी ढलानों पर बनाए गए खेत.

यह किसान परिवार समतल खेतों में धान उगाता है. पोडु भूमि पर मिश्रित खेती होती है. उसमें दाल, राजमा और कई तरह की सब्ज़ियाँ उगाई जाती हैं. छोटे खेत और आधुनिक मशीनों और तकनीक की कमी की वजह से इन किसानों के लिए खेती काफ़ी मशक़्क़त का काम है. आज भी धान बरसाने के लिए हवा के एक झोंके का इंतज़ार इन आदिवासियों को करना पड़ता है.

बाप के कंधे पर सिर रख कर सोने का आनंद लेता बच्चा

यह तस्वीर आरकु क़स्बे में लगने वाले साप्ताहिक बाज़ार की है. शुक्रवार के दिन यहाँ पर एक बड़ा बाज़ार लगता है. इस बाज़ार में हज़ारों आदिवासी अपनी फ़सल बेचने पहुँचते हैं. यहाँ पर बाहर के व्यापारी भी आते हैं.

ये व्यापारी यहाँ पर तरह तरह के सामान की दुकानें लगाते हैं. जिस दिन हम इस बाज़ार में पहुँचे तो आरकु घाटी में त्योहार का समय था. ये आदिवासी पोंगल या मकर संक्रांति को सबसे बड़े त्योहार के तौर पर मानते और मनाते हैं.

बाज़ार में बच्चों के कपड़ों की सबसे अधिक ख़रीदारी हो रही थी. इस तस्वीर में अपने पिता के कंधे पर सोते बच्चे को देखिए. मानों सबसे आरामदायक और सुरक्षित जगह पर है. एक दम बेफ़्रिक गहरी नींद में डूबा है.

वैसे भी चिंता तो पिता को करनी है कि पोंगल पर अपने बच्चे को नए कपड़े कैसे देगा.

अंकल तुम कौन हो ? मानों बच्ची हम से पूछ रही थी

इसी बज़ार में अपनी माँ की गोद में बाज़ार की सैर कर रही यह बच्ची कैमरा देख चौंक गई है. मानो पूछ रही है अंकल आप मुझे जानते हो क्या ? कौन हो तुम और कहां से आए हो? इस बाज़ार में औरतों की तादाद मर्दों से ज़्यादा पाई जाती है.

इस बाज़ार की ख़ासियत ये है कि यहाँ पर जो दुकानें आदिवासियों की हैं वो औरतें ही चलाती हैं. ग़ैर आदिवासी व्यापारियों की दुकानों के मालिक मर्द मिलते हैं. अपने बच्चों को छाती स लगाए यहाँ आपको हज़ारों आदिवासी महिलाएँ सिर पर बोझा लिए मिलती हैं.

बोंगडुडा गाँव की औरतें

यह तस्वीर आप समझ ही गए होंगे कि बोड़ा महिलाओं की है. इनसे हमारी मुलाक़ात मुदलीपड़ा पंचायत के बोंगगुडा नाम के एक छोटे से गाँव में हुई थी. खैरपुट ब्लॉक से क़रीब 14 किलोमीटर की पहाड़ी चढ़ाई के बाद इस गाँव में पहुँचा जाता है.

इस इलाक़े को बोंडा घाटी के नाम से जाना जाता है और यह ओडिशा के मलकानगिरी में बसा है.

इन महिलाओं से लंबी और ख़ूबसूरत बातचीत हुई. यह थोड़ी लंबी कहानी है आराम से लिखी जाएगी.

मेरी मम्मी ने पोंगल के चक्कर में मुझे भी सुबह सुबह नहला दिया है

आरकु घाटी के एक छोटे से गाँव सरबागुड़ा में हमें कुटिया आदिवासियों के साथ उनके त्योहार में शामिल होने का मौक़ा मिला. मकर संक्रांति या पोंगल का अवसर था. यहाँ के सहदेव किल्लो के परिवार के साथ त्योहार में शामिल होने की मीठी याद हमेशा हमारे साथ रहेगी.

इस परिवार के साथ त्योहार में शामिल हो कर घर से दूर होने का अफ़सोस थोड़ा कम हो गया था.

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