HomeAdivasi Dailyआदिवासियों की भाषा सीख रही है नीलगिरी पुलिस

आदिवासियों की भाषा सीख रही है नीलगिरी पुलिस

पुलिस प्रशासन का दावा है कि जब से यह अभियान शुरू हुआ है और पुलिस इन आदिवासियों की भाषा बोल रही है तब से अपराधों की रिपोर्टिंग भी बढ़ी है.

तमिलनाडु के नीलगिरी पहाड़ों में पुलिस प्रशासन ने आदिवासियों के क़रीब पहुंचने और समझने की कोशिश की है. पुलिस प्रशासन ने कोविड-19, और महिलाओं और बच्चों के ख़िलाफ होने वाले अपराधों के बारे में एक जागरुकता अभियान यहां के आदिवासियों के बीच शुरू किया है. लेकिन इस अभियान के दौरान पुलिस ने यह महसूस किया कि इन आदिवासियों में राज्य में बोली जाने वाली भाषा तमिल बहुत प्रभावी नहीं है. इसके बाद पुलिस प्रशासन ने तय किया कि इस अभियान में इन आदिासियों की ही भाषा को इस्तेमाल किया जाएगा. 

नीलगिरी के पुलिस अधिक्षक वी शशि मोहन का कहना था कि जब भी वो इन आदिवासियों से मिलने जाते तो इन आदिवासियों से बातचीत और किसी भी तरह का संवाद बेहद मुश्किल होता. ‘क्योंकि ये आदिवासी जो भाषा बोलते हैं और हम जो भाषा बोलते हैं उसमें फ़र्क है. इसलिए हमने यह तय किया कि हम आदिवासियों की भाषा में ही अभियान चलाएंगे.’ 

इस काम के लिए नीलगिरी ज़िला पुलिस ने अपने उन जवानों की पहचान की जो आदिवासी समुदायों से हैं. इस सिलसिले में टोडा, कोटा, कुरुंबा, इरूला और पनिया आदिवासी समुदाय के पुलिस जवानों को चुना गया और उन्हें इस अभियान में लगाया गया. इस अभियान में पुलिस ने तमिल और अंग्रेज़ी के संदेशों का उनकी स्थानीय भाषा में अनुवाद कराया. 

कोविड-19 से बचने के उपाय के अभियान की कामयाबी के बाद अब पुलिस ने तय किया है कि इन आदिवासियों को महिलाओं और बच्चों के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों के बारे में सचेत करने के लिए भी अभियान चलाया जाएगा. ज़िला पुलिस प्रशासन के अनुसार इस कोशिश का फ़ायदा हो रहा है और पुलिस के पास आने में आदिवासियों की हिचक कम हो रही है.

पुलिस प्रशासन का दावा है कि जब से यह अभियान शुरू हुआ है और पुलिस इन आदिवासियों की भाषा बोल रही है तब से अपराधों की रिपोर्टिंग भी बढ़ रही है.

तमिलनाडु की नीलगिरी पहाड़ियों में रहने वाले आदिवासी समूहों में से ज़्यादातर आदिम जनजाति की श्रेणी में आते हैं. यानि इन आदिवासियों में शिक्षा की दर बहुत कम है. इसके साथ-साथ मुख्यधारा कहे जाने वाले समाज से अभी भी ये आदिवासी समुदाय हिचकते हैं. इन आदिवासी समूहों में से ज़्यादातर आदिवासी यहां के चाय बागानों में मज़दूरी करते हैं, और इनकी आर्थिक हालत बेहद ख़राब है.

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