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रघुवर दास ने हेमंत सरकार पर लगाया आदिवासी अधिकारों को छीनने का आरोप

रघुवर दास ने यह भी कहा कि सरकार ने नगर निकाय चुनाव नहीं कराए हैं, जिसकी वजह से झारखंड को हर साल लगभग ₹1,800 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है.

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता रघुवर दास ने हेमंत सोरेन सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं.

उन्होंने कहा कि सरकार आदिवासी लोगों के अधिकारों को छीन रही है और PESA (Panchayats (Extension to Scheduled Areas) Act) कानून को सही तरीके से लागू नहीं कर रही है.

PESA  एक ऐसा कानून है जो आदिवासी इलाकों को खास अधिकार देता है.

इसके तहत गांव की सभा यानी ग्राम सभा को यह अधिकार होता है कि वह अपने इलाके में खनिज (जैसे बालू, पत्थर), जंगल, पानी और जमीन के इस्तेमाल पर फैसला ले सके.

इससे आदिवासी लोग अपने संसाधनों पर खुद का हक रख सकें.

लेकिन रघुवर दास का कहना है कि सरकार इस कानून को ठीक से लागू नहीं कर रही है और गांव वालों को उनका हक नहीं मिल रहा है.

रघुवर दास ने यह भी कहा कि जब बीजेपी की सरकार थी, तब इस कानून को लागू करने की तैयारी की गई थी.

विभागों ने अपनी राय दी थी और इसे कानून विभाग को भेजा गया था.

वहां से भी हरी झंडी मिल गई थी कि इसे कैबिनेट में रखा जा सकता है.

लेकिन जब से हेमंत सोरेन की सरकार आई है, तब से यह कानून सिर्फ कागजों में ही रह गया है.

उन्होंने यह भी बताया कि अगर पेसा कानून लागू होता, तो गांव के लोग अपने संसाधनों का सही इस्तेमाल कर पाते और उन्हें सरकार पर निर्भर नहीं रहना पड़ता.

गांव की सभा यह तय कर सकती थी कि जंगल और पानी का इस्तेमाल कैसे हो, किसे रेत की खुदाई की इजाजत मिले, और तालाबों में मछली पालन कौन करे.

रघुवर दास ने यह भी कहा कि सरकार ने नगर निकाय चुनाव नहीं कराए हैं, जिसकी वजह से झारखंड को हर साल लगभग ₹1,800 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है.

साथ ही, पेसा कानून लागू न होने की वजह से भी करीब ₹1,400 करोड़ रुपए की राशि राज्य को नहीं मिल पा रही है.

दूसरी तरफ, झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और कांग्रेस ने इन आरोपों को गलत बताया है.

कांग्रेस के एक प्रवक्ता ने कहा कि जब रघुवर दास की सरकार थी, तब उन्होंने खुद पेसा कानून को क्यों नहीं लागू किया?

वहीं JMM ने कहा कि बीजेपी की सरकार में ही आदिवासी लोगों की जमीन बड़े-बड़े उद्योगपतियों को दे दी गई थी.

इस विवाद से साफ है कि झारखंड में आदिवासी अधिकारों को लेकर राजनीति गरम हो गई है.

आदिवासी समुदाय यह देख रहा है कि कौन उनके साथ खड़ा है और कौन सिर्फ राजनीति कर रहा है.

आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस पर क्या कदम उठाती है और क्या पेसा कानून को जमीन पर उतारा जा सकेगा.

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