अलविदा डॉ. रोज केरकेट्टा नहीं रहीं, 84 वर्ष की उम्र में हुआ निधन
“जंगल मेरा घर है,
नदी मेरी मां है,
धरती मेरा शरीर है,
क्यों कहता है कोई
कि मैं सभ्य नहीं हूं?”
यह पंक्तियाँ रोज़ केरकेट्टा के रचनात्मक संसार की आत्मा हैं — सरल लेकिन तीव्र, सौम्य लेकिन विद्रोही.
शब्दों से रचा गया प्रतिरोध
रोज़ केरकेट्टा ने कविता को सिर्फ अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि प्रतिरोध और पुनरुत्थान का औज़ार बनाया. उनकी कविताएं ‘सांस्कृतिक जनवाद’ की मिसाल थीं — जहाँ जंगल, औरत, भाषा, मिट्टी और आत्मा एक साथ सांस लेते हैं.
उनकी एक प्रसिद्ध कविता में वे लिखती हैं:
“हमारे गीतों में
सिर्फ प्रेम नहीं होता,
दबी हुई चीखें होती हैं,
कटी हुई जड़ों की पीड़ा होती है,
और होती है एक मूक पुकार —
हमें मत उखाड़ो.”
रोज़ की कविताओं का मर्म यह था कि उन्होंने आदिवासी जीवन के हर पहलू को भाषा दी — शोषण की चुप्पी को तोड़ा, विस्थापन की वेदना को स्वर दिया, और स्त्री की चेतना को खुलकर व्यक्त किया.
एक स्त्री, जो आदिवासी होने पर गर्व करती थी
रोज़ केरकेट्टा अपने लेखन और विचारों के ज़रिए बार-बार कहती थीं — “हम आदिवासी हैं, यह कोई शर्म की बात नहीं. यह हमारी ताक़त है, हमारी पहचान है.”
उन्होंने आदिवासी समाज में महिलाओं की भूमिका को केंद्रीयता दी और पितृसत्ता के खिलाफ अपनी भाषा में प्रतिरोध खड़ा किया. वे मानती थीं कि आदिवासी स्त्री अपने समाज की संस्कृति की असली संरक्षक है.
झारखंड की इस जानी-मानी आदिवासी लेखिका, कवयित्री और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. रोज केरकेट्टा का 84 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. वे लंबे समय से बीमार चल रही थीं.
उनका जन्म 5 दिसंबर 1940 को झारखंड के कइसरा गांव (अब सिमडेगा जिला) में हुआ था. वे खड़िया समुदाय से आती थीं और जीवन भर आदिवासी भाषा, संस्कृति और अधिकारों की पक्षधर रहीं.
साहित्य और संघर्ष का जीवन
डॉ. केरकेट्टा ने हिंदी और खड़िया भाषा में कई महत्वपूर्ण रचनाएँ लिखीं. उनकी प्रमुख कृतियों में ‘खड़िया लोक कथाओं का साहित्यिक और सांस्कृतिक अध्ययन’, ‘प्रेमचंद आओ लुदकोए’ (प्रेमचंद की कहानियों का खड़िया अनुवाद), और ‘सिंकोए सुलोलो’ शामिल हैं.
उनके लेखन ने आदिवासी समाज की संस्कृति, संघर्ष और पहचान को एक नई आवाज दी.
वे केवल लेखिका नहीं थीं, बल्कि एक प्रतिबद्ध सामाजिक कार्यकर्ता भी थीं. उन्होंने आदिवासी महिलाओं के हक, शिक्षा, जल-जंगल-जमीन के अधिकार और सांस्कृतिक अस्तित्व के लिए आजीवन संघर्ष किया.
नेताओं, लेखकों और कार्यकर्ताओं ने दी श्रद्धांजलि
डॉ. रोज केरकेट्टा के निधन पर राजनीतिक, साहित्यिक और सामाजिक जगत से गहरी संवेदनाएं व्यक्त की जा रही हैं.
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने शोक व्यक्त करते हुए कहा, “डॉ. रोज केरकेट्टा का निधन आदिवासी समाज और साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है. उन्होंने अपने लेखन और सामाजिक कार्यों से समाज को नई दिशा दी.”
प्रसिद्ध युवा आदिवासी लेखिका और पत्रकार जसिंता केरकेट्टा ने कहा, “रोज दी ने हमें कलम के माध्यम से अपनी पहचान, अपना इतिहास और अपनी संस्कृति से जोड़ना सिखाया। वे हमारे लिए प्रेरणा थीं और हमेशा रहेंगी.”
साहित्यकार अशोक वाजपेयी ने कहा,”रोज केरकेट्टा का लेखन केवल साहित्य नहीं था, वह एक प्रतिरोध था — हाशिए के समाज की आवाज और सम्मान का घोषणापत्र था.”
Main Bhi Bharat की ओर से डॉ. रोज केरकेट्टा को श्रद्धांजलि.