झारखंड की राजधानी रांची स्थित हज़ारीबाग में एक बार फ़िर सिदो-कान्हू चौक पर लगी आदिवासी नायकों की प्रतिमा क्षतिग्रस्त पाई गई.
ये घटना दो महीने में दूसरी बार सामने आई है. इससे पहले 24 जुलाई को भी ये स्टैचू टूटे हुए मिले थे.
इस खबर के सामने आते ही, स्थानीय आदिवासियों का गुस्सा फूट पड़ा.
आदिवासी समुदाय के लोग सड़क पर उतर आए और उन्होंने सिदो-कान्हू चौक जाम कर दिया. लोगों ने साफ कहा है कि जब तक दोषी जेल नहीं जाएंगे, उनका विरोध जारी रहेगा.
30 जून 2022 को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस चौक का उद्घाटन किया था. इसी दिन सिदो-कान्हू की प्रतिमा का अनावरण भी किया गया था.
नेताओं की प्रतिक्रिया
आज त्रिपुरा के कांग्रेस विधायक सुदीप रॉय बर्मन भी हज़ारीबाग में ही मौजूद थे तो वे भी मौके पर पहुंचे.
उन्होंने कहा कि महान नेताओं की प्रतिमा तोड़ना, उनके बलिदान का अपमान है. उन्होंने पुलिस से तुरंत गिरफ्तारी की मांग की है.
वहीं वरिष्ठ कांग्रेस नेता मुन्ना सिंह ने शरारती तत्वों की इस हरकत पर प्रशासन को घेरा.
उन्होंने कहा कि जुलाई में भी यही हुआ था. इसके बावजूद प्रशासन की तरफ़ से कोई सख्त कदम नहीं उठाया गया, इसी वजह से ये घटना दोबारा हुई.
प्रशासन की सफाई
सदर सब डिविज़नल ऑफिसर बैजनाथ कमती जवाब में सिर्फ आश्वासन ही दे पाए. उन्होंने कहा है कि दोषियों को किसी हाल में छोड़ा नहीं जाएगा.
उन्होंने प्रतिमा की मरम्मत करवा कर सुरक्षा बढ़ाने की भी बात कही है.
कौन हैं सिदू-कान्हू जिनसे आदिवासियों की भावनाएं जुड़ी हैं
1857 की क्रांति से पहले 1855 में पूर्वी भारत के संथाल परगना क्षेत्र में संथाल आदिवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ पहला संगठित विद्रोह किया था.
इस विद्रोह का नेतृत्व सिदो मुर्मू और कान्हू मुर्मू नाम के दो संथाल भाइयों ने किया था. उन्होंने अंग्रेजों और जमींदारों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी.
उनकी प्रतिमा पर हमला आदिवासियों की भावनाओं पर हमला माना जा रहा है.
लोगों का कहना है कि यह सिर्फ पत्थर की प्रतिमा तोड़ने की घटना नहीं है. यह उनकी पहचान और सम्मान को चोट पहुंचाता है.
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