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पुनर्वास के 7 साल बाद भी इन आदिवासी परिवारों को नहीं मिली बुनियादी सुविधाएं

इन आदिवासी परिवारों को सरकारी योजनाओं और अधिकारों का लाभ नहीं मिल पा रहा है और वे आज भी सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े हैं.

तमिलनाडु के नीलगिरि क्षेत्र के आदिवासी परिवारों को पुनर्वास के सात साल बाद भी मूलभूत सुविधाएं नहीं मिली है. इन परिवारों को सड़क, बिजली, पानी, और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच नहीं मिल पाई है.

कई आदिवासी ऐसे स्थानों पर बसाए गए हैं जहां बुनियादी सुविधाएं बहुत कम हैं या बिल्कुल भी नहीं हैं. इस वजह से उनके जीवन स्तर में कोई सुधार नहीं हुआ है.

इन आदिवासी परिवारों को सरकारी योजनाओं और अधिकारों का लाभ नहीं मिल पा रहा है और वे आज भी सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े हैं.

गुडलूर स्थित ईचानाकोली गांव, जो करीब सात साल पुराना पनिया आदिवासी बस्ती है, वहां के कई परिवारों को स्थानांतरण के दौरान मिले मुआवज़े में धोखाधड़ी का सामना करना पड़ा था. जिसका फायदा रियल एस्टेट दलालों और यहां तक कि कुछ वन विभाग के अधिकारियों ने भी उठाया.

इस दौरान उन्हें राजस्व विभाग के नियंत्रण वाली ज़मीनों पर स्थानांतरित कर दिया गया और उनके पास कोई दस्तावेज़ नहीं थे.

इस वजह से ग्रामीणों को बिजली और पानी के कनेक्शन जैसी बुनियादी सुविधाएं पाने में भी भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

करीब 21 परिवारों की शिकायतों के बाद डिस्ट्रिक्ट क्राइम ब्रांच पुलिस ने एक वन रेंजर, एक वनपाल, एक वकील और रियल एस्टेट दलालों सहित दस लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था.

इन लोगों पर कुछ साल पहले टाइगर रिजर्व से स्थानांतरित किए गए परिवारों के साथ धोखाधड़ी करने का आरोप है.

तमिलनाडु ट्राइबल पीपल एसोसिएशन के ज़िला सचिव के. महेंद्रन ने कहा कि ईचानाकोल्ली के निवासियों की समस्याएं टाइगर रिजर्व से स्थानांतरित किए गए 100 से ज़्यादा परिवारों जैसी ही हैं, जहाँ आवास की खराब स्थिति, खेती के लिए ज़मीन की कमी और बुनियादी सुविधाओं का अभाव है.

उन्होंने कहा, “आदिवासी परिवारों का यह असफल पुनर्वास राज्य के अन्य सभी समुदायों के लिए एक उदाहरण और चेतावनी बन जाना चाहिए कि ये पुनर्वास कैसे किए जाते हैं, ताकि वे इस तरह के प्रयासों पर सहमति देने से पहले दो बार सोचें.”

महेंद्रन ने धोखाधड़ी के पीड़ितों के लिए न्याय की गुहार लगाते हुए तमिलनाडु राज्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग से शिकायत की है.

उनके प्रयासों के कारण, मूल प्राथमिकी दर्ज होने के बाद से धोखाधड़ी के शिकार 80 से ज़्यादा परिवारों के नाम जुड़ गए हैं, जिससे पीड़ितों की कुल संख्या अब 100 से ज़्यादा हो गई है.

वनाधिकार अधिनियम के प्रावधानों के बावजूद आदिवासियों के ठिकानों पर जबरन बुलडोजर चला दिया गया या उनके अधिकारों को मान्यता नहीं मिली. स्थानीय प्रशासन की उदासीनता और विकास कार्यों में उपेक्षा के कारण यहां के आदिवासी अब भी आधारभूत जीवनयापन से वंचित हैं.

कुल मिलाकर नीलगिरि की आदिवासी आबादी की पुनर्वास प्रक्रिया में उचित योजना, प्रशासनिक समर्थन और बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था न होना उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को और अधिक कमजोर बनाता जा रहा है, जो तत्काल सुधार का मांग करता है.

जनजातीय उपयोजना में गड़बड़

वहीं हाल ही में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की नवीनतम रिपोर्ट ने तमिलनाडु में जनजातीय उपयोजना (Tribal Sub Plan) की वित्तीय पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठाए हैं.

CAG की रिपोर्ट में बताया गया है कि तमिलनाडु सरकार ने न तो वित्तीय वर्ष 2021-22 के वास्तविक खर्च के आंकड़े दिए और न ही 2022-2023 के बजट का संशोधित अनुमान केंद्र सरकार को दिया.

इस वजह से यह पता लगाना मुश्किल हो गया कि योजनाओं पर असल में कितना खर्च हुआ.

केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय के नियम के मुताबिक, हर राज्य को जनजातीय आबादी के अनुपात के अनुसार बजट का हिस्सा जनजातीय उपयोजना के लिए आवंटित करना होता है.

लेकिन CAG की रिपोर्ट बताती है कि राज्य में वास्तविकता में जनजातीय उपयोजना के तहत इससे भी कम खर्च किया जाता है.

(Representative image)

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