HomeAdivasi Dailyअमेज़न के जंगलों में रहने वाली इस जनजाति के अस्तित्व को ख़तरा

अमेज़न के जंगलों में रहने वाली इस जनजाति के अस्तित्व को ख़तरा

पिछले कुछ सालों में इस काम के लिए बजट दोगुना कर दिया गया है. जंगल की सुरक्षा के लिए 19 गश्त चौकियां बनाई गई हैं, जिनमें 59 सुरक्षा कर्मी काम कर रहे हैं.

दुनिया में कई ऐसी जनजातियाँ हैं जो बाहरी दुनिया से दूर रहती हैं और अपने पुराने तरीके से जीवन बिताती हैं.

इनमें से एक सबसे बड़ी ऐसी जनजाति है “मैशको पीरो” जो अमेज़न के घने जंगलों में रहती है. ये लोग बाहरी लोगों से किसी भी तरह का संपर्क नहीं रखना चाहते और अपनी ही परंपराओं, रीति-रिवाजों और जंगल के संसाधनों पर निर्भर रहते हैं.

लेकिन आज ये जनजाति गंभीर खतरे में है.

अमेज़न के जंगलों में बड़े पैमाने पर पेड़ काटे जा रहे हैं. यह काम कुछ बड़ी कंपनियां और लकड़ी काटने वाले लोग कर रहे हैं, जिनका मकसद जंगल की लकड़ी बेचकर पैसा कमाना है.

लेकिन इन कारणों से मैशको पीरो की जमीन कम होती जा रही है. उनका जंगल, जहां वे रह रहे हैं

और अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी बिता रहे हैं, धीरे-धीरे खत्म हो रहा है.

इसके साथ ही, उनकी सुरक्षा भी खतरे में आ गई है क्योंकि बाहर से लोग उनकी जमीन पर आ रहे हैं.

यह जनजाति अपनी रक्षा के लिए तीर-धनुष का इस्तेमाल करती है और अपनी जमीन पर आने वालों को दूर रखने की कोशिश करती है.

2024 में भी लकड़ी काटने वाले दो लोगों को इस जनजाति ने तीर-धनुष से मार दिया था.

यह दिखाता है कि वे अपनी ज़मीन और जीवन की रक्षा के लिए कितने संजीदा हैं.

लेकिन फिर भी, जंगल में लकड़ी काटने का काम बंद नहीं हुआ है.

एक बड़ी कंपनी जिसका नाम “Maderera Canales Tehuamanu” है, जो खुद को “सतत” यानी पर्यावरण का ख्याल रखने वाली कंपनी बताती है, वह भी इस क्षेत्र में लकड़ी काट रही है.

सरकार ने इस खतरे को समझते हुए इस जनजाति और उनके जंगलों की रक्षा के लिए कदम उठाए हैं.

पिछले कुछ सालों में इस काम के लिए बजट दोगुना कर दिया गया है. जंगल की सुरक्षा के लिए 19 गश्त चौकियां बनाई गई हैं, जिनमें 59 सुरक्षा कर्मी काम कर रहे हैं.

इस साल अब तक 440 से ज्यादा गश्त की जा चुकी हैं. यह सब इसलिए ताकि लकड़ी काटने वालों को रोका जा सके और जंगल और जनजाति की सुरक्षा हो सके.

लेकिन सवाल यह है कि क्या ये कदम पर्याप्त हैं? क्योंकि आर्थिक फायदे के लिए कई बार लोग नियमों को ताक पर रख देते हैं.

वे बिना अनुमति के भी जंगल काटने लगते हैं. इससे न केवल जंगल नष्ट होता है बल्कि इन जनजातियों की संस्कृति, जीवनशैली और अस्तित्व पर भी खतरा आता है.

मैशको पीरो जनजाति का जीवन बहुत सरल और प्रकृति के करीब है. वे खेती-बाड़ी नहीं करते बल्कि जंगल के फल-फूल, जानवर और नदियों पर निर्भर रहते हैं.

वे अपनी परंपराओं को सहेजकर रखना चाहते हैं और बाहर के लोगों से दूर रहना चाहते हैं. लेकिन जब उनका जंगल खत्म होगा, तो उनका जीवन भी खतरे में आ जाएगा.

इसलिए यह जरूरी है कि हम इन जनजातियों के लिए सुरक्षित क्षेत्र बनाएं और जंगल की कटाई को रोकें.

उनके साथ सहानुभूति रखें और उनकी ज़मीन की रक्षा करें.

यही नहीं, पूरी दुनिया को यह समझना होगा कि ऐसे जनजातियों का अस्तित्व और संस्कृति हमारी प्राकृतिक धरोहर है, जिसे बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है.

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