छत्तीसगढ़ के उदांती-सीतानदी टाइगर रिजर्व से जुड़ी 17 ग्राम सभाओं ने चिंता जताई है.
उन्होंने केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय को शिकायत भेजकर कहा है कि टाइगर रिजर्व प्राधिकरण ने उनकी पारंपरिक जमीन और जंगलों से उन्हें जबरदस्ती हटाने की कोशिश की है.
उनका कहना है कि यह कार्रवाई वन अधिकार अधिनियम (2006) और अन्य महत्वपूर्ण कानूनों जैसे पंचायती राज अधिनियम, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, और अनुसूचित जाति-जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम—का उल्लंघन करती है.
इन गांवों में सोरनमल, इछरड़ी, और दशपुर जैसे स्थान शामिल हैं. जहां भुंझिया, गोंड, और कामर जैसे आदिवासी समुदाय लंबे समय से रहते हैं.
ग्रामीणों का कहना है कि 2020 से शुरू हुआ यह बेदखली का अभियान गैरकानूनी है और बिना किसी सही जानकारी के चल रहा है.
खेती पर रोक लगने से उनकी आजीविका खतरे में पड़ गई है.
ग्राम सभाओं ने यह भी एतराज उठाया कि टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या बढ़ाने की योजना (Tiger Supplementation Program) राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने उनकी सहमति के बिना बनाई.
यह वन अधिकार अधिनियम और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के खिलाफ है. क्योंकि ये कानून आदिवासी समुदायों के पारंपरिक संरक्षण मॉडल का समर्थन करते हैं.
शिकायत में यह भी कहा गया कि रिजर्व प्रबंधन सामुदायिक वन संसाधन (CFR) क्षेत्रों को पर्यटन और घास के मैदानों में बदलने की योजना बना रहा है. जबकि मीङिया में दावा किया जा रहा है कि इसके लिए ग्राम सभाओं की सहमति है.
यह दावा गलत है, क्योंकि वन अधिकार अधिनियम के अनुसार ग्राम सभा की लिखित सहमति जरूरी है.
यह मामला सिर्फ आदिवासी अधिकारों की लड़ाई नहीं, बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि संरक्षण के नाम पर मूल निवासी समुदायों को कितना धकेला जा रहा है.
वन अधिकार अधिनियम इन समुदायों को जमीन और संसाधनों का कानूनी अधिकार देता है, लेकिन यह घटना दिखाती है कि कानून को आसानी से नजरअंदाज किया जा सकता है.
ग्राम सभाओं की शिकायत अभी तक बिना जवाब के है, जिससे प्रक्रियागत संवाद और न्याय में कमी दिखती है.
ग्रामीण अब ऐसी नीतियों की मांग कर रहे हैं जो निष्पक्ष, और समुदाय-केंद्रित हों.

