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ट्रांसफार्मर लगने के 4 साल बाद भी आदिवासी गांव में नहीं आई बिजली

चार साल पहले ट्रांसफार्मर तो लगा, लेकिन वन विभाग की मंजूरी न मिलने से कनेक्शन अधूरा. कलेक्टर बोले NOC मिलते ही काम तुरंत आगे बढ़ेगा.

तमिलनाडु के कोयंबटूर जिले में अनामलाई पहाड़ियों के भीतर एक छोटा-से गांव एरुमैपाराई के आदिवासी 20वीं सदी में भी बिजली के बिना रहने को मजबूर हैं.

यहां करीब 38 कादर आदिवासी परिवार रहते हैं. गांव के पास से एक बिजली लाइन गुज़रती है, इसके बावजूद एरुमाइपराई के 38 घरों में सालों से बिजली नहीं आई है.

साल 2021 में बिजली विभाग (EB) ने गांव में ट्रांसफार्मर लगाकर उम्मीद जगाई थी.

गांव वालों का कहना है कि उन्होंने 28 परिवारों से ₹3,800 प्रति परिवार लेकर कुल पैसा बिजली विभाग को दिया. ट्रांसफार्मर तो लगा पर उसके बाद काम आगे नहीं बढ़ा.

अब वह ट्रांसफार्मर केवल धूल खा रहा है और गांव के लोग अंधेरे में ही जीवन गुजारने को मजबूर हैं.

कुछ साल पहले कुछ घरों को सोलर पैनल की सुविधा मिली थी. लेकिन बैटरी खराब होने और रखरखाव न होने के कारण अब वे भी बेकार पड़े हैं.

गांव के लोग और कार्यकर्ता बताते हैं कि एरुमैपाराई के पास से ही बिजली की लाइन गुजरती है.

यहां तक कि पास में बने गेस्ट हाउस और वन विभाग के क्वार्टर में बिजली आती भी है. लेकिन बगल में रहने वाले आदिवासी परिवारों को यह सुविधा नहीं दी गई. ये सबसे बड़ी विडंबना है.

आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता एस. थनराज ने इस मामले को मुख्यमंत्री और संबंधित विभागों तक उठाया.

उनका कहना है कि कादर आदिवासी समुदाय दक्षिण एशिया के सबसे पुराने समुदायों में से है. इनका जीवन पहले ही परंबिकुलम-अलियार सिंचाई परियोजना (PAP) से प्रभावित हुआ था. अब बिजली न मिलने से उनकी मुश्किलें और बढ़ गई हैं.

तमिलनाडु ट्राइबल एसोसिएशन के जिला अध्यक्ष वी.एस. परिमासिवम का कहना है कि बिजली न होने से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है. रात में अंधेरे में वे पढ़ाई नहीं कर पाते.

स्वास्थ्य सेवाओं पर भी असर पड़ता है. मोबाइल चार्ज न होने से आपात स्थिति में डॉक्टर से संपर्क करना मुश्किल हो जाता है. साथ ही, गांववाले का ये भी कहना है कि अंधेरे में जंगली जानवरों का खतरा भी बढ़ जाता है.

हाल ही में कलेक्टर पवनकुमार जी गिरियप्पनावर से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मामला उनके ध्यान में है. प्रशासन ने वन विभाग से चर्चा भी की है.

कलेक्टर का कहना है कि सबसे बड़ी अड़चन वन विभाग की अनुमति (NOC) है. चूंकि यह इलाका टाइगर रिजर्व के भीतर आता है इसलिए वन विभाग की मंजूरी जरूरी है. अगर अनुमति मिल जाती है तो काम तुरंत आगे बढ़ाया जा सकता है.

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