HomeAdivasi Dailyमध्य प्रदेश: बैतूल के आदिवासी नायकों की अनकही गाथा अब राष्ट्रीय मंच पर

मध्य प्रदेश: बैतूल के आदिवासी नायकों की अनकही गाथा अब राष्ट्रीय मंच पर

हाल ही में इस फिल्म को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिलने का रास्ता साफ हो गया है, क्योंकि केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री जुएल ओराम ने इसके लिए आश्वासन दिया है.

मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में साल 1930 में हुए ऐतिहासिक जंगल सत्याग्रह की कहानी अब एक फिल्म के जरिए पूरे देश के सामने आने वाली है.

इस फिल्म का नाम है “जंगल सत्याग्रह (1930: द अ नटोल्ड हिस्ट्री)

यह फिल्म बैतूल के आदिवासी समुदाय की बहादुरी और स्वतंत्रता संग्राम की अनकही कहानी को दिखाती है.

हाल ही में इस फिल्म को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिलने का रास्ता साफ हो गया है, क्योंकि केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री जुएल ओराम ने इसके लिए आश्वासन दिया है.

फिल्म को नेशनल फिल्म आर्काइव ऑफ इंडिया (NFAI) में शामिल करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है.

यह सब पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह की पहल से हुआ हैं.उन्होंने बैतूल की फिल्म निर्माण टीम को दिल्ली में कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मिलवाया.

टीम ने राहुल गांधी से मुलाकात में फिल्म की पूरी जानकारी दी. उन्होंने बताया कि यह फिल्म बैतूल के भूले-बिसरे आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित है.

साल 1930 में सरदार गंजन सिंह कोरकू और सरदार विष्णु सिंह गोंड के नेतृत्व में हजारों आदिवासी ब्रिटिश सरकार के वन कानूनों के खिलाफ खड़े हो गए थे.

अंग्रेजों ने जंगलों पर टैक्स लगा दिया था, जिससे आदिवासियों की जिंदगी मुश्किल हो गई. उनके लिए जंगल सिर्फ जगह नहीं, बल्कि उनकी आत्मा था.

वे जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए सत्याग्रह में उतरे. यह आंदोलन महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह से प्रेरित था.

22 अगस्त 1930 को घोड़ाडोंगरी तहसील के बंजारीढाल गांव में बड़ा प्रदर्शन हुआ. हजारों आदिवासी हाथ में कुल्हाड़ी और कंधे पर कम्बल डालकर इकट्ठे हुए थे.

ब्रिटिश पुलिस ने गोलीबारी की, जिसमें कौवा गोंड जैसे कई जनजाती शहीद हो गए थे. इस घटना ने पूरे मध्य भारत में आजादी की चिंगारी फैला दी थी.

फिल्म इसी घटना को दिखाती है, जिसमें स्थानीय आदिवासी कलाकारों ने मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं.

फिल्म के 95 प्रतिशत कलाकार और तकनीशियन आदिवासी समुदाय से हैं.

शिवा बारस्कर जैसे कलाकार ने सरदार गंजन सिंह कोरकू का किरदार निभाया है. फिल्म में गोंडी भाषा, लोकगीत, संस्कृति और संगीत का असली चित्रण किया गया है.

निर्देशक डॉ. प्रदीप भईया ने इसे सच्ची घटना पर बनाया है, ताकि आदिवासी इतिहास को राष्ट्रीय मंच मिले.

टीम ने राहुल गांधी से मांग की, कि फिल्म को एनएफएआई में शामिल किया जाए, आदिवासी बहुल राज्यों में टैक्स फ्री घोषित किया जाए और एनएफडीसी( National Film Development Corporation of India), आईजीएनसीए (Indira Gandhi National Centre for the Arts) जैसे संस्थानों के जरिए स्क्रीनिंग कराई जाए.

साथ ही दिल्ली में विशेष प्रीमियर का आयोजन हो. राहुल गांधी ने टीम को बधाई दी और दिल्ली में प्रीमियर कराने का वादा किया.

जनजातीय कार्य मंत्रालय ने कहा कि आगे की कार्रवाई सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय करेगा.

मंत्री जुएल ओराम ने खुद राहुल गांधी को पत्र लिखकर आश्वासन दिया कि मामला विचार के लिए भेज दिया गया है.

फिल्म का प्रीमियर बैतूल में 17 नवंबर 2024 को हुआ, जहां स्थानीय लोगों ने इसे खूब सराहा.

बाद में भोपाल में दिग्विजय सिंह ने विशेष शो आयोजित किया और बीजेपी समेत सभी दलों के नेताओं को आमंत्रित किया.

यह फिल्म सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि आदिवासी स्वाभिमान और सांस्कृतिक विरासत को सामने लाने का माध्यम है.

इससे युवा पीढ़ी को पता चलेगा कि कैसे आदिवासियों ने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

फिल्म की शूटिंग बैतूल के जंगलों में हुई, जहां असली जगहों को दिखाया गया हैं. इसमें लोकगीतों का इस्तेमाल किया गया, जैसे निमाड़ी और गोंडी गाने.

अब उम्मीद है कि यह फिल्म पूरे देश में दिखाई जाएगी और आदिवासी नायकों की गाथा हर घर तक पहुंचेगी.

यह प्रयास बैतूल के इतिहास को नई पहचान देगा और स्वतंत्रता संग्राम की अनकही कहानियों को रोशनी देगा.

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