HomeAdivasi Dailyआदिवासी समुदायों ने खारिज किया केरल सरकार का “गरीबी मुक्त राज्य” दावा

आदिवासी समुदायों ने खारिज किया केरल सरकार का “गरीबी मुक्त राज्य” दावा

केरल सरकार 1 नवंबर को राज्य को “गरीबी मुक्त” घोषित करने जा रही है, लेकिन आदिवासी समुदायों का कहना है कि यह दावा ज़मीनी सच्चाई से कोसों दूर है.

केरल सरकार ने 1 नवंबर को राज्य को “अत्यधिक गरीबी मुक्त” घोषित करने की तैयारी कर ली है.

इस बड़े समारोह में मुख्यमंत्री पिनराई विजयन मौजूद रहेंगे और उनके साथ फिल्म अभिनेता मोहनलाल, ममूटी और कमल हासन भी मंच साझा करेंगे.

सरकार का दावा है कि उसने राज्य में मौजूद सभी अत्यधिक गरीब परिवारों को अब सामान्य जीवन के स्तर तक पहुँचा दिया है.

लेकिन अभी भी राज्य के कई PVTG यानि आदिम जनजाति समुदाय हैं जो दो वक्त की रोटी और जीने लायक हालातों के इंतज़ार में बताए गए हैं.

ये समुदाय पनिया, आदिया, ऊराली बट्टा कुरुमा, कट्टुनायकन, हिल पुलया और मुथुवन है जो अभी भी गहरी गरीबी में जी रहे हैं.

इन समुदायों के कई लोग केवल एक समय का खाना खा पाते हैं. युवाओं में पढ़ाई का स्तर बढ़ा है, लेकिन नौकरी के अवसर लगभग नहीं हैं.

कई आदिवासी संगठनों और कार्यकर्ताओं ने सरकार के दावों पर सवाल किया है.

उनका कहना है कि यह दावा हकीकत से बहुत दूर है, क्योंकि जिन लोगों को सबसे ज्यादा मदद की ज़रूरत है, वे आज भी भूख, बेरोज़गारी और बेघरपन में जी रहे हैं.

वायनाड के आदिवासी कार्यकर्ता मणिक्कुट्टन पनियान ने कहा कि जब हमारे इलाके में ऐसे परिवार हैं, जिन्हें दिन में एक बार भी ठीक से खाना नहीं मिलता, तब सरकार का यह कहना कि राज्य में अब अत्यधिक गरीबी खत्म हो गई है, ऐसा बोलना  बिल्कुल गलत है.

उन्होंने पूछा कि क्या सरकार ने कभी इन बस्तियों में आकर देखा है कि लोग किन हालात में रह रहे हैं.

सरकार ने 2021 में “अत्यधिक गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम” शुरू किया था.

यह वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार के दूसरे कार्यकाल का एक बड़ा अभियान था.

इस योजना के तहत राज्य में मौजूद 64,006 अत्यधिक गरीब परिवारों को गरीबी से बाहर निकालने का लक्ष्य रखा गया था.

योजना का मकसद था इन परिवारों की बुनियादी ज़रूरतें पूरी करना — जैसे भोजन, आवास, स्वास्थ्य सेवाएँ और आजीविका के साधन.

स्थानीय स्वशासन मंत्री एम. बी. राजेश के अनुसार, अब तक 59,277 परिवारों को “गरीबी मुक्त” घोषित किया जा चुका है.

सरकार का कहना है कि इन परिवारों को ‘माइक्रो प्लान’ नाम की एक प्रक्रिया से बाहर निकाला गया है, जिसके तहत हर परिवार की व्यक्तिगत जरूरतों का मूल्यांकन करके सहायता दी गई.

मंत्री ने यह भी बताया कि 4,421 उन परिवारों के सदस्य अब जीवित नहीं हैं जिनमें मात्र एक ही सदस्य था. इसके अलावा 261 घुमंतू परिवारों का भी कोई पता नहीं चल सका.

लेकिन आदिवासी समुदायों का कहना है कि सरकार के ये आंकड़े केवल कागज़ों पर अच्छे लगते हैं, ज़मीन पर सच्चाई कुछ और है.

वायनाड, जो केरल का सबसे बड़ा आदिवासी ज़िला है, उसको  हाल ही में “अत्यधिक गरीबी मुक्त ज़िला” घोषित किया गया था.

मगर वहाँ रहने वाले आदिवासी परिवारों का कहना है कि उनकी स्थिति आज भी बहुत खराब है. करीब 90 प्रतिशत आदिवासी परिवारों के पास अपनी ज़मीन नहीं है.

वे अब भी प्लास्टिक और टीन की झोपड़ियों में रहते हैं, जहाँ बिजली नहीं है, साफ पानी नहीं है और शौचालय की सुविधा तो दूर की बात है.

कई बस्तियों में लोग सामुदायिक शौचालयों का इस्तेमाल करते हैं जो इतने गंदे और खराब हालत में हैं कि महिलाएँ और बच्चे रात होने तक इंतज़ार करते हैं ताकि थोड़ी निजता मिल सके.

आदिवासी महिला नेता के. अम्मिनी, जो “आदिवासी महिला प्रस्थानम” संगठन से जुड़ी हैं, कहती हैं कि सरकार के अधिकारी और मंत्री अगर एक बार भी इन इलाकों का दौरा करें तो उन्हें असली हालत दिख जाएगी.

उन्होंने कहा कि अगर राज्य में गरीबी खत्म हो गई होती तो हमारे लोग इस तरह नारकीय जीवन क्यों जी रहे होते.

केरल में कुल मिलाकर 35 आदिवासी जातियाँ हैं. इनमें से कुरिचिया समुदाय की स्थिति बाकी से थोड़ी बेहतर मानी जाती है.

एक आदिवासी युवक ने कहा कि सरकार हर साल बड़ी-बड़ी घोषणाएँ करती है, लेकिन फंड का दस प्रतिशत भी हमारे गाँवों तक नहीं पहुँचता.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, केरल में कुल 4,26,208 आदिवासी लोग रहते हैं. इनमें से 1,52,808 यानी करीब 36 प्रतिशत वायनाड जिले में हैं.

इडुक्की जिले में 52,565 और कासरगोड में 47,603 आदिवासी हैं. सरकार का कहना है कि इन जिलों में भी योजनाएँ लागू की गई हैं, लेकिन स्थानीय संगठनों के अनुसार इन योजनाओं का कोई खास असर नहीं दिख रहा.

मुख्य विवाद यही है कि सरकार जो तस्वीर पेश कर रही है, वह असल ज़िंदगी से मेल नहीं खाती.

कागज़ों पर गरीबी मिट चुकी है, लेकिन ज़मीन पर आदिवासी अब भी उन्हीं मुश्किलों से जूझ रहे हैं.

जिन लोगों के पास न पक्का घर है, न ज़मीन, न रोजगार और न ही साफ पानी, उनके लिए यह घोषणा व्यंग्य की तरह लगती है.

कई कार्यकर्ताओं का कहना है कि जब तक अधिकारी और मंत्री इन बस्तियों में आकर लोगों की बातें नहीं सुनेंगे और योजनाओं को सही मायने में लागू नहीं करेंगे, तब तक यह सब केवल दिखावा रहेगा.

सरकार 1 नवंबर को पूरे राज्य में बड़े कार्यक्रम के साथ “गरीबी मुक्त केरल” का उत्सव मनाने जा रही है, लेकिन आदिवासी समुदायों ने कहा है कि वे इसका विरोध करेंगे.

उनका कहना है कि यह जश्न उस समय तक अधूरा रहेगा जब तक राज्य का हर नागरिक—खासकर सबसे पिछड़ा आदिवासी वर्ग—खुशहाल और सम्मानजनक जीवन नहीं जीने लगता.

एक आदिवासी कार्यकर्ता ने कहा, “अगर हमारे बच्चे भूखे हैं, हमारे घर अंधेरे में हैं और हमारे पास रहने की ज़मीन नहीं, तो फिर यह गरीबी मुक्त केरल आखिर किसके लिए है?”.

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