ओडिशा का कंधमाल ज़िला अपनी खूबसूरत पहाड़ियों, घने जंगलों और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है.
यह ज़िला खासकर हल्दी (Kandhamal Haldi) के लिए मशहूर है, जिसे देश-विदेश में बहुत पसंद किया जाता है.
यहाँ की हल्दी को GI टैग भी मिला है, जो इसकी खास पहचान को साबित करता है.
कंधमाल में रहने वाले ज़्यादातर लोग आदिवासी समुदाय से हैं, जिनमें सबसे बड़ी जनजाति का नाम है “कोंध (Kondh).
ये लोग जंगलों के पास रहते हैं और सादगी से जीवन बिताते हैं। वे अपने रीति-रिवाज, त्यौहार और पारंपरिक कपड़ों को आज भी अपनाए हुए हैं.
यहाँ के ज़्यादातर लोग खेती पर निर्भर हैं. लेकिन उनके पास ज़मीन बहुत कम होती है और सिंचाई के साधन भी बहुत कम हैं.
इसलिए फसल कम होती है और आमदनी भी बहुत सीमित रहती है.
बारिश पर निर्भर खेती के कारण कई लोग काम की तलाश में दूसरे राज्यों में चले जाते हैं.
अब धीरे-धीरे चीज़ें बदल रही हैं. सरकार और संस्थाएं मिलकर इन किसानों को ड्रैगन फ्रूट, हल्दी, अदरक, काली मिर्च जैसी फसलें उगाने में मदद कर रही हैं.
इससे किसानों की आमदनी बढ़ रही है और लोग अपने गाँवों में ही काम कर पा रहे हैं.
सरकार और कुछ संगठनों ने गाँवों में आंगनबाड़ी केंद्र, किचन गार्डन, और पोषण योजनाएं शुरू की हैं, जिससे बच्चों और महिलाओं को अच्छा खाना मिल रहा है.
इससे कुपोषण की समस्या धीरे-धीरे कम हो रही है.
ओडिशा के कंधमाल जिले के आदिवासी किसान अब पारंपरिक खेती से आगे बढ़कर ड्रैगन फ्रूट की आधुनिक खेती कर रहे हैं, जिससे उनकी आमदनी में काफी बढ़ोतरी हो रही है.
यह पहल राज्य सरकार और कृषि विभाग के सहयोग से शुरू की गई थी, जिसका लाभ अब बड़े पैमाने पर देखने को मिल रहा है.
कंधमाल जिले के कई आदिवासी गांवों में रहने वाले किसान पहले पारंपरिक खेती पर निर्भर थे, जिससे उन्हें सीमित आमदनी मिलती थी.
लेकिन अब वे ड्रैगन फ्रूट जैसी उच्च मूल्य वाली फसल की खेती कर रहे हैं.
इसका असर यह हुआ है कि उनकी सालाना आमदनी में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है.
कुछ किसानों ने बताया कि पहले जहां वे साल भर में ₹30,000 से ₹50,000 तक कमा पाते थे, अब वही आमदनी ₹1.5 लाख से ₹2 लाख तक पहुंच चुकी है.
कंधमाल जिले में पाँच आदिवासी किसानों ने मिलकर लगभग 5 एकड़ जमीन पर ड्रैगन फ्रूट की खेती की शुरुआत की थी.
सरकारी मदद और प्रशिक्षण से उन्होंने धीरे-धीरे इस नई खेती को अपनाया और अब उन्हें इससे अच्छी आमदनी हो रही है.
पिछले साल कंधमाल के आदिवासी किसानों ने लगभग 8 क्विंटल ड्रैगन फ्रूट की पैदावार की थी, जबकि इस साल अब तक 10 क्विंटल हो चुकी है.
उम्मीद की जा रही है कि मौसम (अक्टूबर–नवंबर तक) खत्म होने से पहले यह उत्पादन बढ़कर कुल 15 क्विंटल तक पहुंच जाएगा.
कंधमाल में उगाया गया ड्रैगन फ्रूट बाज़ार में ₹200 से ₹250 प्रति किलो तक बिक रहा है.
इसकी गुणवत्ता और जैविक उत्पादन होने की वजह से इसे अच्छे दाम मिल रहे हैं.
इस परियोजना के तहत ITDA (Integrated Tribal Development Agency) ने लगभग ₹40 लाख खर्च किए हैं.
इस फंड से किसानों को ड्रैगन फ्रूट के पौधे, सिंचाई की सुविधा, जैविक खाद और खेती से जुड़ा प्रशिक्षण दिया गया.
इसका मकसद आदिवासी किसानों को आधुनिक खेती से जोड़कर उनकी आमदनी बढ़ाना है.
इस बदलाव के पीछे एक बड़ा कारण है सरकार की पहल और तकनीकी प्रशिक्षण.
कृषि विभाग ने किसानों को ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए तकनीकी सहायता, पौधे और सिंचाई उपकरण उपलब्ध कराए.
किसानों को यह भी सिखाया गया कि कम लागत में किस तरह जैविक तरीके से फल की गुणवत्ता को बनाए रखा जाए.
यह पूरी प्रक्रिया आदिवासी समुदाय के लिए आत्मनिर्भर बनने की दिशा में एक प्रेरणादायक उदाहरण बन गई है.
कंधमाल की भौगोलिक स्थिति और मिट्टी की गुणवत्ता इस फसल के लिए आदर्श मानी जाती है.
यहां दिन में गर्मी और रात को ठंडक का जो संतुलन है, वह इस फल की मिठास और रंगत को बेहतर बनाता है.
इस वजह से यह फल स्थानीय बाज़ारों के साथ-साथ बाहरी मंडियों में भी अच्छे दाम पर बिक रहा है.
किसानों द्वारा उगाए जा रहे ड्रैगन फ्रूट की मांग अब सिर्फ स्थानीय स्तर तक सीमित नहीं रही.
इसे भुवनेश्वर, कटक और यहां तक कि अन्य राज्यों में भी भेजा जा रहा है.
इसकी पैकेजिंग और बिक्री में भी सरकार ने सहयोग किया है, जिससे किसान सीधे अपने उत्पाद बड़े बाज़ारों तक पहुंचा पा रहे हैं और बिचौलियों से बच रहे हैं.
इस खेती में गांव की महिलाएं और युवा भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. वे मिलकर काम कर रहे हैं ,और इससे उन्हें अच्छी कमाई हो रही है.
इससे गांव में रोजगार भी बढ़ा है और लोग बाहर काम की तलाश में नहीं जा रहे हैं.
कई स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups – SHGs) और युवा किसान इस फसल को सामूहिक रूप से उगाकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन रहे हैं.
इससे ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन भी कम हुआ है और गांवों में ही रोजगार के अवसर बढ़े हैं।
कंधमाल के आदिवासी किसान ड्रैगन फ्रूट की खेती से न सिर्फ अपनी आजीविका सुधार रहे हैं बल्कि पूरे राज्य के लिए एक मिसाल बन चुके हैं.
यह उदाहरण दिखाता है कि अगर सही दिशा, प्रशिक्षण और समर्थन मिले, तो आदिवासी समुदाय भी आधुनिक कृषि में बड़ी सफलता हासिल कर सकता है.