त्रिपुरा के अमरा बंगाली नाम के सामाजिक और राजनीतिक संगठन ने टिपरा मोथा पार्टी के संस्थापक प्रद्योत किशोर देबबर्मन पर गंभीर आरोप लगाए हैं.
उनका कहना है कि प्रद्योत जातीय तनाव फैलाने की कोशिश कर रहे हैं.
अमरा बंगाली राज्य के गैर-आदिवासी समाज का प्रतिनिधित्व करता है.
यह विवाद तब शुरू हुआ जब प्रद्योत किशोर ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर आदिवासी अधिकारों को लेकर एक धरने के दौरान कहा कि अगर कोई “आगर्तला का मालिक” है तो वह आदिवासी हैं, बाकी सब यहां किरायेदार हैं.
उन्होंने इस दौरान पूरे उत्तर-पूर्व के आदिवासी समुदायों से अपील की कि वे एकजुट होकर अपने अधिकारों के लिए लड़ें.
अमरा बंगाली के राज्य सचिव गौरांग रुद्र पाल ने इस बयान की निंदा की.
उन्होंने कहा कि प्रद्योत का यह रवैया 1980 के दशक के दंगों जैसी स्थिति पैदा कर सकता है.
उनका आरोप है कि प्रद्योत जानबूझकर आदिवासी और गैर-आदिवासी समाज के बीच दूरियां बढ़ा रहे हैं.
उन्होंने चेतावनी दी कि अगर कोई सांप्रदायिक तनाव पैदा हुआ तो उसकी ज़िम्मेदारी प्रद्योत और उनके समर्थकों पर ही होगी.
रुद्र पाल ने यह भी सवाल उठाया कि दिल्ली की इस रैली में बीजेपी सांसद कीर्ति सिंह क्यों मौजूद थीं.
उन्होंने इसे बंगाली समाज के खिलाफ साज़िश बताया और आरोप लगाया कि बीजेपी नेतृत्व प्रद्योत के विवादित बयान पर चुप है.
प्रद्योत किशोर ने केवल अगरतला ही नहीं, बल्कि तेलियामुरा और कंचनपुर जैसे इलाकों पर भी मालिकाना दावा जताया है.
उनका कहना है कि वे आदिवासी हकों की लड़ाई और तेज़ करेंगे. उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर ज़बरदस्त बहस छिड़ गई.
आदिवासी समाज का एक हिस्सा उनके समर्थन में है तो गैर-आदिवासी समाज इसे नफरत फैलाने वाली भाषा बता रहा है.
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि प्रद्योत की ज़मीन से जुड़ी मांगें अब राज्य की राजनीति और पहचान के सवालों पर बड़ा असर डाल सकती हैं.
लेकिन उन्हें यह भी डर है कि अगर भाषा और तेवर इतने उग्र रहे तो राज्य की शांति ख़तरे में पड़ सकती है.
प्रद्योत के बयानों ने न केवल बीजेपी सरकार बल्कि कई बुद्धिजीवियों को भी असहज किया है.
आलोचक कहते हैं कि वे अपनी राजशाही पृष्ठभूमि और लोगों की भावनाओं का इस्तेमाल अपने राजनीतिक फायदे के लिए कर रहे हैं.
खासकर आने वाले स्वायत्त जिला परिषद (ADC) चुनावों को देखते हुए इसे राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है.
पिछले सात सालों से प्रद्योत लगातार बीजेपी पर यह आरोप लगाते रहे हैं कि उसने आदिवासियों के लिए कोई ठोस काम नहीं किया.
वहीं कुछ लोगों का मानना है कि राज्य के कुछ बीजेपी नेता खुद प्रद्योत को बढ़ावा देकर मुख्यमंत्री माणिक साहा को कमजोर करना चाहते हैं.
विपक्षी वामपंथी दल भी इस मुद्दे पर सक्रिय हो गए हैं.
सीपीएम का कहना है कि प्रद्योत की बातें बेबुनियाद हैं. वे याद दिलाते हैं कि 1978 से वाम मोर्चा सरकार ने बड़ी संख्या में आदिवासी युवाओं को नौकरी दी थी.
शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, रबर की खेती और सड़क जैसी सुविधाएं भी वाम मोर्चे और कांग्रेस के समय में ही बढ़ीं.
सीपीएम नेता जितेंद्र चौधरी ने प्रद्योत को उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी याद दिलाई.
उन्होंने कहा कि प्रद्योत के माता-पिता खुद कांग्रेस शासन के समय सांसद और मंत्री रहे हैं और उस दौर की नीतियों से ही उन्हें फायदा मिला.
कुल मिलाकर, प्रद्योत किशोर के बयानों ने त्रिपुरा की राजनीति में हलचल मचा दी है.
आदिवासी और गैर-आदिवासी समाज दोनों में बहस तेज़ हो गई है.