9 अगस्त 2024 को विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर राजस्थान के डुंगरपुर में एक रैली का आयोजन किया गया.
इस रैली के दौरान राज्य के आदिवासी संगठनों और राजनीतिक दलों ने ट्राइबल सब प्लान के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में शराब के निर्माण और बिक्री के साथ-साथ शराब के प्रयोग पर भी रोक लगाने का अनुरोध किया है.
इस रैली में आदिवासी संगठनों ने हाल ही में आदिवासी क्षेत्रों में शराब की दुकानों की बढ़ती संख्या की आलोचना की.
इन संगठनों ने इसे आदिवासी विरोधी ताकतों के एजेंडे का हिस्सा बताया है और इलाके में शराब की दुकानों की संख्या को बढ़ने से रोकने के लिए उचित कदम उठाने की मांग की है.
इन संगठनों ने कहा कि शराब की दुकानों के बढ़ने से आदिवासियों के जीवन पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है. उनका कहना है कि इस कारण से उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती जा रही है.
डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ सहित कुल आठ ज़िले राजस्थान के टीएसपी क्षेत्रों में शामिल हैं.
इस रैली के दौरान भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) के बांसवाड़ा सांसद राजकुमार रोत ने अपने भाषण में कहा कि शराब पर रोक आदिवासी सशक्तीकरण की दिशा में पहला ज़रूरी कदम होगा.
उन्होंने शराब को युवाओं के भटकाव बताया. उन्होंने कहा कि आदिवासी युवाओं की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति को कमज़ोर करने के लिए उन्हें शराब और अन्य व्यसनों में फंसाया गया है.
उन्होंने राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ किसनराव बागड़े और सीएम भजन लाल शर्मा से शराबबंदी के लिए अधिसूचना जारी करने की भी मांग की है.
इसके अलावा रैली में शेखावाटी और हरियाणा के एक बड़े शराब माफिया द्वारा गुजरात में शराब की तस्करी और इसमें आदिवासी युवाओं की बढ़ती भागीदारी पर भी चिंता व्यक्त की गई है.
यह एक सकारात्मक विचार है लेकिन आदिवासी इलाकों में शारब पर पूर्ण पाबंदी सफलता से लागू करना मुश्किल है. यह बात सही हो सकती है कि आदिवासी समुदायों में शराब परिवारों की बर्बादी का एक कारण हो सकता है.
लेकिन शराब आदिवासी संस्कृति और धार्मिक आस्थाओं से जुड़ी भी बताई जाती है.ूइसलिए आदिवासियों को शराब से बिल्कुल दुर करना इतना आसान नहीं होगा.
फिर भी इस मांग को अच्छा ही कहा जाएगा क्योंकि इससे कम से कम आदिवासी नौजवानों में अधिक शराब सेवन के नुकसानों पर चर्चा शुरू हो सकती है.
इसके साथ ही इस रैली में एक बार फिर आदिवासियों के लिए एक अलग प्रदेश बनाने की मांग पर भी चर्चा की गई.
राजकुमार रोत ने इस मांग को साल 2000 में झारखंड के निर्माण के साथ जोड़ा और भील प्रदेश नामक एक अलग राज्य के निर्माण के लिए एक बड़े अभियान की योजना की भी घोषणा की.
उनके अनुसार एक ऐसे राज्य के माध्यम से ही आदिवासियों का उद्धार संभव है जो आदिवासियों की भावनाओं को दर्शाता हो.