ओडिशा (Tribes of Odisha) के नुआपड़ा ज़िले (Nuapada District) में रहने वाले आदिवासी समुदाय आम की खेती करके और भी आत्मनिर्भर और सशक्त बन गए है.
गार्मियों के मौसम में देश में आम की अच्छी खासी मांग होती है. इस मौसम में होने वाली आम (Mango Production) की बढ़ती मांग को आदिवासियों ने धीरे-धीरे समझा है.
जिसके बाद उन्होंने अब अपनी आय का मुख्य स्त्रोत आम की खेती को बना दिया है.
सिनापाली तहसील के हल्दीखोल गाँव में आदिवासी किसानों के लिए 15 साल पहले राज्य और केंद्र सरकार की योजनाओं के तहत कई आम के बगीचे बनाए गए थे.
इसी आम की बगीचों ने आज आदिवासियों को आत्मनिर्भर बनाने का काम किया है.
अब इस क्षेत्र में 60 से अधिक आम के बगीचे है. ऐसा कहा जा रहा है कि प्रत्येक बगान 40 से 50 हजार रूपये के आम का उत्पादन करता है.
यहां के आदिवासियों का कहना है की सब्जियों के उत्पादन से ज्यादा उन्हें आम के उत्पादन से लाभ होता है.
2 से 3 एकड़ जमीन में आसानी से 100-150 आम के पेड़ आसानी से लगाए जा सकते हैं.
इन आदिवासी किसानों को आम उत्पादन से साल का 50,000 रूपये तक मिल जाता है. इसके अलावा आम की गुणवत्ता पर निर्भर करती है कि आम प्रति किलोग्राम कितने का बिकेगा.
किसान वाडी योजना के अंतर्गत आने वाले लाभार्थियों को सिंचाई सुविधा और अन्य विकास कार्यो के लिए विश्व बैंक से वित्तीय सहायता भी प्राप्त होती है.
इसके अलावा कई आदिवासी किसान निचली भूमि में आम के पेड़ लगाते हैं. ताकि कम से कम पानी उपयोग हो.
देश में 15,00 से ज्यादा अलग-अलग प्रकार के आम उगाए जाते हैं.
जिनमें से 1,000 प्रकार के आम को व्यापारिक उपयोग के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
इनमें अल्फांसो(महाराष्ट्र), तोतापरी (कर्नाटक), बंगनपल्ली (आंध्र प्रदेश), हिमसागर (पश्चिम बंगाल), केसर (गुजरात), चौसा (हिमाचल प्रदेश और बिहार) जैसे आम शामिल हैं.
आम के प्रत्येक प्रकार का अपना एक विशेष स्वाद होता है.
इसके अलावा समाज का प्रत्येक वर्ग के लोग अपनी जेब के बारे में सोचे बिना आम खरीद ही लेता हैं.