महाराष्ट्र सरकार ने सरकारी छात्रावासों में रहकर पढ़ाई करने वाले आदिवासी छात्रों को बड़ी राहत दी है.
राज्य मंत्रिमंडल ने एक अहम बैठक में आदिवासी छात्रों के भत्तों को 40 प्रतिशत से लेकर 100 प्रतिशत तक बढ़ाने का फैसला लिया है. यह फैसला राज्यभर के 58,700 से अधिक आदिवासी छात्रों पर लागू होगा, जो अलग-अलग जिलों, तहसीलों और संभागीय मुख्यालयों में बने 490 छात्रावासों में रहते हैं.
अब तक इन छात्रों को पढ़ाई, भोजन और रहने के खर्च के लिए सीमित राशि दी जाती थी. लेकिन बढ़ती महंगाई को देखते हुए सरकार ने इसे पर्याप्त नहीं माना. इसी के चलते भत्तों की दरों में अब 40 से 100 फीसदी तक की बढ़ोतरी की गई है.
भत्ता दर में कितनी बढ़ोतरी
जिन आदिवासी छात्रों के हॉस्टल ग्रामीण इलाकों में हैं, उन्हें अब हर महीने ₹500 की जगह ₹1000 की राशि मिलेगी. ज़िला स्तर पर रहने वाले छात्रों के लिए यह राशि ₹600 से बढ़ाकर ₹1300 कर दी गई है, जबकि संभागीय स्तर के छात्रों को अब ₹800 की बजाय 1400 रुपये प्रतिमाह मिलेंगे.
छात्राओं को मिलने वाला अतिरिक्त भत्ता भी ₹100 से बढ़ाकर ₹150 कर दिया गया है ताकि वे पढ़ाई के साथ अपनी अन्य जरूरतें भी पूरी कर सकें.
शैक्षणिक सामग्री के लिए मिलने वाले सालाना भत्ते में भी संशोधन किया गया है.
कक्षा 8 से 10वीं तक के छात्रों को अब 4500 रुपये जबकि जूनियर कॉलेज और डिप्लोमा छात्रों को 5000 रुपये की राशि मिलेगी.
डिग्री कोर्स करने वाले छात्रों के लिए यह राशि ₹5700 कर दी गई है और जो छात्र मेडिकल या इंजीनियरिंग जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में हैं, उन्हें अब ₹8000 तक का वार्षिक भत्ता मिलेगा.
खानपान की लागत में भी सुधार करते हुए सरकार ने भोजन भत्ते में भारी बढ़ोतरी की है.
अब नगर निगम और संभागीय शहरों में रहने वाले छात्रों को ₹5000 प्रतिमाह खाद्य भत्ता मिलेगा. पहले यह ₹3500 हुआ करता था. इसी तरह ज़िला स्तर के छात्रावासों में यह राशि ₹3000 से बढ़कर ₹4500 कर दी गई है.
कितना बढ़ेगा राज्य पर वित्तीय भार?
अब तक सरकार इन छात्रों के लिए सालाना ₹144.74 करोड़ खर्च करती थीमलेकिन अब यह बढ़कर ₹228.41 करोड़ हो जाएगा. यानी अब राज्य सरकार को कुल ₹83.66 करोड़ का अतिरिक्त खर्च करना होगा.
इतनी बढ़ोतरी क्यों?
सरकार की तरफ से कहा गया है कि यह फैसला महंगाई के चलते लिया गया है. यह फैसला ऐसे वक्त पर आया है जब महाराष्ट्र में बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) के चुनाव नजदीक हैं.
जानकारों का मानना है कि यह फैसला सिर्फ महंगाई की वजह से नहीं, बल्कि एक राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है.
हालांकि बृहन्मुंबई महानगरपालिका क्षेत्र में आदिवासी आबादी कम दिखती है. लेकिन वहां भी उपशहरी बस्तियों और उपनगरों में आदिवासी वोटों का केंद्र है.
ऐसे में सरकार की यह दरियादिली वोट बैंक को मज़बूत करने की कोशिश के तौर पर भी देखी जा रही है.
हालांकि वजह चाहे जो भी हो, इस फैसले से हज़ारों आदिवासी छात्रों को राहत मिलेगी, उनकी पढ़ाई में सहूलियत होगी और यही इस कदम की सबसे सकारात्मक बात है.