HomeAdivasi Dailyछत्तीसगढ़: आदिवासी उज्जवला का चूल्हा क्यों नहीं जला रहा

छत्तीसगढ़: आदिवासी उज्जवला का चूल्हा क्यों नहीं जला रहा

कबीरधाम ज़िले के कवर्धा में अधिकतर बैगा आदिवासी रहते हैं. इस समुदाय को आदिम जनजाति या पीवीटीजी कहा जाता है. यहां बैगा महिलाएं उज्जवला योजना के बावजूद चूल्हे पर अपनी आंखें और फेफ़ड़े गंवा रही हैं.

छत्तीसगढ़ (Tribes of Chhattisgarh) के कबीरधाम ज़िले (kabirdham District) की दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले बैगा आदिवासी (Baiga tribe) आज भी अपने घरों में चूल्हें पर खाना बना रहे हैं.

वहीं इस ज़िले के तरेगांव क्षेत्र में लगभग 60 गांव को केंद्रीय सरकार की उज्जवला योजना (Ujjwala Yojana) से जोड़ा गया है. इस योजना का लाभ पहुंचाने के लिए आदिमजाति सेवा सहकारी समिति द्वारा एचपी गैस एजेंसी भी स्थापित की गई है.

सरकारी कागज़ी रिकॉर्ड की माने तो 2207 लोगों को इस योजना के ज़रिए कनेक्शन दिया जा रहा है.

वहीं गांव वालों का कहना है कि उनके गाँव में चार साल से गैस गोदाम खुला हुआ है, लेकिन आज तक उन्हें गैस कनेक्शन नहीं मिल पाया है.

इसलिए इन आदिवासियों के पास लकड़ी वाला चूल्हा जलाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है.  

इस पूरे मामले पर गैस एजेंसी संचालक ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यहां के लोगों को लकड़ी जलाने की आदत है. इसलिए यह खाने पकाने के लिए लकड़ियों का ही ज्यादातर उपयोग करते हैं.

इन लोगों की आय भी अधिक नहीं है. इसलिए सिर्फ 30 से 35 लोग ही महीने में रिफिलिंग करा पाते हैं.

इसके अलावा इस मामले पर खाद्य अधिकारियों ने अपना बयान दिया है.

उन्होंने कहा है कि सभी कनेक्शन चालू स्थिति में हैं. लेकिन ज्यादातर लोग रिफिलिंग नहीं करवा पाते हैं.

उन्होंने यह भी बताया कि रिफिलिंग की जागरूकता के लिए समय समय पर कई अभियान भी चलाया जा रहा है.

लेकिन कनेक्शन हो जाने के बाद रिफिलिंग करवाना है या नहीं, वह उपभोक्ताओं का व्यक्तिगत मामला है.

2011 की जनगणना के अनुसार बैगा आदिवासियों की जनसंख्या 89744 है. यह ज्यादातर छत्तीसगढ़ के कवर्धा और बिलासपुर ज़िले में रहते हैं.

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