कभी सरकारी स्कूलों से पीछे रहने वाले तमिलनाडु के जनजातीय कल्याण स्कूलों ने अब शिक्षा के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों को छू लिया है.
बीते कुछ वर्षों से लगातार सुधार के चलते अब इन स्कूलों की उत्तीर्णता दर 95% के आसपास पहुंच चुका है. इस साल तो कई स्कूलों ने 100% रिज़ल्ट भी दर्ज किया गया है.
निरंतर निगरानी बनी सफलता की कुंजी
जनजातीय कल्याण विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इस सफलता के पीछे नियमित शैक्षणिक मूल्यांकन, शिक्षकों की मेहनत और छात्रों के मनोबल को बढ़ाने वाले सत्रों की बड़ी भूमिका रही है.
एक अधिकारी ने बताया, “हमने साल भर में 6 से 7 बार अकादमिक रिव्यू किया और छात्रों की प्रगति पर नजर रखी. शिक्षकों ने जी-जान से मेहनत की और बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए कई मोटिवेशनल सेशन भी कराए गए.”
2022 से अब तक के आंकड़ों में दिखा सुधार
वर्ष 2022 में जनजातीय स्कूलों का पास प्रतिशत 86% था, जो उस समय के सरकारी स्कूलों के 89% पास प्रतिशत से कम था. लेकिन लगातार कोशिशों के चलते न सिर्फ यह अंतर मिटा, बल्कि अब जनजातीय स्कूलों का प्रदर्शन बेहतर हो गया है.
2022 में जहां 11.49% छात्र परीक्षा से अनुपस्थित थे वहीं इस बार यह संख्या घटकर सिर्फ 5.38% रह गई.
तीन साल पहले 48% छात्र 300 अंक से कम लाते थे. अब यह संख्या घटकर 9.8% रह गई है.
इस बार 56.3% छात्रों ने 300-400 अंक के बीच और 31.8% छात्रों ने 401-500 अंकों के बीच स्कोर किया है. 501-550 अंक लाने वाले छात्रों की संख्या भी 0.5% से बढ़कर 2.1% हो गई है.
राज्य के 28 सरकारी जनजातीय आवासीय स्कूलों और 6 एकलव्य मॉडल स्कूलों में से 12 स्कूलों ने 100% पास रेट हासिल किया है. इसमें 6 EMRS (एकलव्य मॉडल रेजिडेंशियल स्कूल) शामिल हैं. बाकी स्कूलों का प्रदर्शन भी 90% से ऊपर रहा है.
चेंगलपट्टू का कुमिझी स्कूल बना प्रेरणा का स्रोत
चेंगलपट्टू ज़िले के कुमिझी में स्थित EMRS स्कूल ने इस बार इतिहास रच दिया.
पिछले साल जहां इस स्कूल का पास प्रतिशत केवल 54% था, वहीं इस बार सभी 13 छात्रों ने परीक्षा पास कर ली.
स्कूल के प्रधानाचार्य बी. वेंकटेश्वरन ने बताया, “हमारे एक तिहाई छात्र ऐसे हैं जिन्हें अकेले माता या पिता पाल रहे हैं. कुछ बच्चों के पास रहने के लिए घर भी नहीं है. कई ने पहले 10वीं की परीक्षा में भी असफलता झेली थी. ऐसे में इस बार का 100% परिणाम हमारे लिए गर्व की बात है.”
उन्होंने बताया कि जिन छात्रों ने परीक्षा नहीं दी या जो छात्र असफल रहे, उनके अभिभावकों के साथ विशेष बैठकें आयोजित की जा रही हैं ताकि उन्हें सप्लीमेंट्री परीक्षा के लिए प्रेरित किया जा सके.