गुजरात में लगातार तीसरी बार भाजपा ने 27 आदिवासी विधानसभा क्षेत्रों वाली आठ लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की है. इनमें चार आरक्षित अनुसूचित जनजाति लोकसभा सीटें भी शामिल हैं, जहां उसे 2 लाख से अधिक वोटों की बढ़त हासिल हुई है.
सिर्फ भरूच को छोड़कर, जिसे भाजपा ने लगातार सातवीं बार बरकरार रखा. इंडिया ब्लॉक की संयुक्त ताकत भी आदिवासी बेल्ट में भाजपा की संभावनाओं को कम नहीं कर सकी.
हाल की हार ने कांग्रेस को यह स्वीकार करने के लिए मजबूर कर दिया है कि “सत्ता से बाहर” होने के कारण उनके पास आदिवासी मतदाताओं को मनाने का बहुत कम मौका बचा है.
वरिष्ठ कांग्रेस नेता तुषार चौधरी के अनुसार, “कांग्रेस आदिवासी क्षेत्रों में कड़ी मेहनत कर रही है. लेकिन यह एक सच्चाई है कि हम इतने लंबे समय से सत्ता में नहीं हैं कि आदिवासी मतदाताओं को यह समझा सकें कि बेरोजगारी और बढ़ती महंगाई के उनके मुद्दों का पार्टी ध्यान रखेगी. इसके अलावा भाजपा जानती है कि आदिवासियों, जो एक भोली आबादी है, उसको आकर्षित करने के लिए प्रलोभन का उपयोग कैसे किया जाता है.”
हालांकि, गठबंधन के लिए अच्छी बात यह रही कि इंडिया ब्लॉक ने 27 आदिवासी विधानसभा क्षेत्रों में से अधिकांश पर वोट शेयर में बढ़त हासिल की. 2022 के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी के प्रवेश के बाद कांग्रेस पार्टी का वोट शेयर कम हो गया था.
चौधरी ने बताया, “साबरकांठा में मैं खेड़ब्रह्मा और भिलोदा में आगे चल रहा था, दोनों एसटी विधानसभा क्षेत्र है लेकिन यह गैर-आदिवासी विधानसभाओं में भाजपा की बढ़त को मात देने के लिए पर्याप्त नहीं था. इसी तरह बारडोली में कांग्रेस व्यारा, मांडवी और निज़ार विधानसभा क्षेत्रों में आगे है और हमने 2022 के विधानसभा चुनावों की तुलना में बढ़त हासिल की है, जब हम इन सीटों पर हार गए थे.”
वलसाड और भरूच में भी यही स्थिति रही, जहां कांग्रेस के मौजूदा विधायक अनंत पटेल और आप के चैतर वसावा आदिवासी क्षेत्रों में आगे चल रहे थे. हालांकि, शहरी मतदाताओं ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया, जिससे कुल मिलाकर घाटा हुआ.
चौधरी ने कहा कि भाजपा को शहरी निर्वाचन क्षेत्रों से मिलने वाले 1.6 लाख वोटों की भरपाई करना संभव नहीं है.
फिर भी दाहोद और छोटा उदयपुर की एसटी सीटों पर भाजपा के जसवंतसिंह भाभोर और जशु राठवा ने कांग्रेस के दो सबसे अनुभवी आदिवासी उम्मीदवारों – डॉ. प्रभा तवियाद को 3 लाख 33 हज़ार 677 और सुखराम राठवा को 3 लाख 98 हज़ार 777 के भारी अंतर से हराया.
भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि गुजरात के आदिवासी क्षेत्र में सफलता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आदिवासियों के लिए कल्याणकारी योजनाओं का परिणाम है.
उन्होंने कहा कि आदिवासी आबादी जानती है कि गुजरात के मुख्यमंत्री और फिर प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के शासन में उन्होंने अधिकतम विकास देखा है. इसके अलावा कोई और कारण नहीं है कि भाजपा ने 2022 के विधानसभा चुनाव सहित लगातार चार चुनावों में सभी सीटें जीती हैं.
दाहोद में भाजपा का वोट शेयर काफी बढ़ा है. 2019 के वोट शेयर 52.84 प्रतिशत से मंगलवार को 61.59 प्रतिशत हो गया. 2014 में यह 56.77 प्रतिशत था. भाजपा को करीब 10 प्रतिशत का फायदा कांग्रेस की कीमत पर हुआ है, जिसका वोट शेयर 2019 में 40.84 प्रतिशत से घटकर इस साल 31.75 प्रतिशत रह गया.
हालांकि, छोटा उदयपुर में पिछले आम चुनावों की तुलना में पार्टियों का वोट शेयर लगभग समान ही रहा है. इस साल भाजपा ने 62.84 प्रतिशत और कांग्रेस ने 31.38 प्रतिशत वोट हासिल किए.
मंगलवार को भाजपा के जशु राठवा को जीत की सार्वजनिक रूप से बधाई देने के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुखराम राठवा ने कहा कि मैं मतदाताओं के इस जनादेश को पूरे सम्मान के साथ स्वीकार करता हूं. हमारे कार्यकर्ताओं ने अभियान के लिए वास्तव में कड़ी मेहनत की. यह मेरी अपनी गलती है, हमारे कार्यकर्ताओं की नहीं कि हम अपनी कड़ी मेहनत के बावजूद चुनाव हार गए. जीतने वाले को बधाई देनी चाहिए.
भरूच एकमात्र लोकसभा सीट थी जहां मंगलवार को भाजपा के प्रभुत्व को किसी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा. छह बार के भाजपा सांसद मनसुख वसावा का 2019 में जीत का अंतर 3,34,214 था. लेकिन इस बार यह अंतर घट कर 85,696 रह गया. यह मानना पड़ेगा कि डेडियापाड़ा के विधायक चैतर वसावा ने आदिवासी सीट को हासिल करने के लिए जोरदार लड़ाई लड़ी.
आप विधायक ने जहां डेडियापाड़ा और झगड़िया के एसटी विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की, वहीं उनके भाजपा प्रतिद्वंद्वी ने अंकलेश्वर, कर्जन और भरूच के शहरी क्षेत्रों से अधिक वोट हासिल किए.
मनसुख वसावा, जिनका वोट शेयर 2019 के 55.47 प्रतिशत से घटकर 50.72 प्रतिशत हो गया, उन्होंने कहा, “मेरे प्रतिद्वंद्वी, इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवार चैतर वसावा और अन्य लोगों ने कई आदिवासी संगठनों की मदद से अपने सभी साधनों का इस्तेमाल किया और मेरे और भाजपा के खिलाफ झूठे प्रचार के साथ प्रचार करना शुरू कर दिया. हमारे पास डेडियापाड़ा और झगड़िया विधानसभा सीटों पर कम संख्या है लेकिन हम आने वाले दिनों में उन पर काम करेंगे.”
वहीं चैतर वसावा के लिए भरूच में भाजपा की जीत के अंतर को कम करना अपने आप में एक जीत थी.
उन्होंने कहा, “हमने अपनी पूरी ताकत से चुनाव लड़ा और यहां तक कि कांग्रेस नेताओं और उनके कार्यकर्ताओं से भी समर्थन प्राप्त किया. पहले दिन से हमने एक बात को ध्यान में रखा था – हम जीतेंगे या हम सबक लेंगे. हम इस चुनाव को अपनी जीत मानते हैं क्योंकि हमने अपने प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार के जीत के अंतर को एक लाख से नीचे ला दिया है. मैं विधायक बना रहूंगा और न सिर्फ अपने डेडियापाड़ा निर्वाचन क्षेत्र में बल्कि पूरे भरूच लोकसभा में लोगों के लिए काम करना जारी रखूंगा.”