झारखंड में लोकसभा चुनाव 2024 के चुनाव परिणामों पर राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का जेल में डाले जाने का साफ़ साफ़ असर देखा गया था.
राज्य के आदिवासी बहुल इलाकों में लोग यह मान रहे थे कि चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा को हराने के लिए ही हेमंत सोरेन को जेल में डाला गया था.
हेमंत सोरेन की ग़िरफ़्तारी के बाद आदिवासी जनसंख्या के एक बड़े वर्ग में यह बात भी फैल गई है कि बीजेपी मूलत: आदिवासी विरोधी है. इसके अलावा विपक्षी दलों ने लगातार यह प्रचार किया है कि बीजेपी की केंद्र सरकार विपक्ष की आवाज़ को दबाने के लिए उसके नेताओं को अलग अलग मुकदमों में फंसा रही है.
अब हेमंत सोरेन जेल से बाहर आ चुके हैं और मुख्यमंत्री के पद पर भी लौट गए हैं. झारखंड हाईकोर्ट ने उन्हें ज़मानत देते हुए जो बातें कहीं हैं उनसे हेमंत सोरेन और विपक्षी दलों के आरोपों को ताक़त मिली है.
हाईकोर्ट ने हेमंत सोरेन को ज़मानत देते हुए कहा था कि ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे यह लगता है कि हेमंत सोरेन ज़मीन के घोटाले में शामिल हैं.
राजनीति में अक्सर यह कहा जाता है कि चुनाव में कोई एक मुद्दा बार-बार काम नहीं करता है. ख़ासतौर से अगर उस मुद्दे का न्याय संगत हल निकल गया हो.
लोक सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी को लगे झटके और अयोध्या सीट पर हारने के बाद भी यही बात कही जा रही है कि अयोध्या में मंदिर बन चुका है, इसलिए अब यह मुद्दा बीजेपी को चुनाव नहीं जीता सकता है.
लेकिन झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन शायद यह उम्मीद कर रहे हैं कि उनको जेल में डाले जाने का मुद्दा अभी भी असरदार हो सकता है.
ऐसा इसलिए लगता है कि जेल से छूटने के बाद वे लगातार अपने सोशल मीडिया और जनसभाओं में इस मुद्दे को लोगों को याद करा रहे हैं.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 10 अगस्त को अपने 49वें जन्मदिन पर 49 पाउंड का केक बड़े धूमधाम से काटा था. इसके साथ ही उन्होंने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर पांच महीने जेल में रहने के बाद अपने हाथ पर कैदी की मुहर की तस्वीर लगाई थी.
10 अगस्त को हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किया, “आज मेरे जन्मदिन के अवसर पर पिछले एक साल की यादें मेरे दिल में अंकित हैं – यानी कैदी की मोहर – जो जेल से रिहा होने पर मेरे हाथ पर लगाई गई थी. यह मोहर सिर्फ़ मेरी नहीं, बल्कि हमारे लोकतंत्र की मौजूदा चुनौतियों का प्रतीक है.”
यह मुहर जेल अधिकारियों ने तब लगाई जब उन्हें 28 जून को कथित भूमि घोटाले से संबंधित मामले में जेल से रिहा किया गया.
उन्होंने आगे लिखा था, “जब एक निर्वाचित मुख्यमंत्री को बिना किसी सबूत, बिना किसी शिकायत, बिना किसी अपराध के 150 दिनों के लिए जेल में रखा जा सकता है, तो वह आदिवासियों, दलितों, शोषितों के साथ क्या करेंगे…”
झामुमो नेता अपनी पांच महीने की जेल की सजा को भाजपा के खिलाफ चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं और अपनी जनसभाओं में बार-बार इस बारे में बात कर रहे हैं.
सोरेन ने 31 जनवरी को अपनी गिरफ्तारी से कुछ समय पहले ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने 29 जुलाई को सोरेन को दी गई जमानत को चुनौती देने वाली प्रवर्तन निदेशालय की याचिका को खारिज कर दिया.
उसी दिन मानसून सत्र के दौरान झारखंड विधानसभा के बाहर मीडिया से बात करते हुए सोरेन ने कहा, “ऐसा लगता है कि मैंने राज्य की बड़ी संपत्ति हड़प ली है और फरार हो गया हूं, जिसके लिए मुझे सलाखों के पीछे डाल दिया गया और सोरेन परिवार पर कई आरोप लगाए गए.”
उन्होंने आगे कहा, “अगर उन्होंने (विपक्षी भाजपा ने) कीमती समय बर्बाद नहीं किया होता तो मैं लोगों की जरूरतों को पूरा करता और बेहतर तरीके से उनकी सेवा करता. सर्वोच्च न्यायालय सबसे महत्वपूर्ण है और मेरा मानना है कि यह लोकतंत्र का एक ऐसा स्तंभ है, जहां अंधकार नहीं है.”
वहीं उनकी पत्नी और विधायक कल्पना सोरेन ने कहा कि मामले में सच्चाई सामने आई है. हालांकि मेरा सवाल यह है कि हेमंत जी को जो पांच महीने का नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई कैसे की जा सकती है.
विधानसभा के मानसून सत्र में सोरेन ने भाजपा पर व्यंग्य करते हुए कहा था कि संसदीय चुनाव में उन्हें थोड़ा-बहुत आईना दिखाया गया था, अब विधानसभा चुनाव में उन्हें पूरा आईना दिखाया जाएगा.
इससे पहले जेल से छूटने के बाद पहले बड़े सार्वजनिक कार्यक्रम में 30 जून यानि ‘हूल विद्रोह’ के अवसर पर साहेबगंज में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने संथाली भाषा में लोगों को संबोधित किया. उन्होंने कहा, “जो लोग भाजपा के खिलाफ बोलते हैं, आदिवासियों, गरीबों और दलितों के हित में काम करते हैं, उन्हें किसी न किसी तरह से जेल में डाल दिया जाता है. मुझे भी पांच महीने तक जेल में रखा गया. लेकिन वे कब तक सच को दबाएंगे? सच को जंजीरों में नहीं बांधा जा सकता.”
झारखंड में चुनावी रणभूमि तैयार हो गई है
झारखंड में नवंबर-दिसंबर में चुनाव होने की संभावना हैं. सत्ताधारी जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन और विपक्षी भाजपा के बीच सत्ता बरकरार रखने और छीनने के लिए कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है.
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि जेएमएम ने लोकसभा चुनाव के दौरान हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को मुद्दा बनाया था, खासकर आदिवासियों के बीच यह मुद्दा चर्चा में था.
जेएमएम के रणनीतिकार और कार्यकर्ता यह संदेश देने में सफल रहे कि सोरेन को राजनीतिक साजिश के तहत गिरफ्तार किया गया है.
भाजपा ने सभी पांच आदिवासी आरक्षित सीटों पर हार का सामना किया, जिनमें से चार पर उसे 1.2 लाख से अधिक वोटों से हार का सामना करना पड़ा.
झारखंड की कुल 14 संसदीय सीटों में से भाजपा को सिर्फ 8 सीटों पर जीत मिली, जिसमें पलामू की अनुसूचित जाति आरक्षित सीट भी शामिल है.
हेमंत सोरेन अपनी ग़िरफ़्तारी को मुद्दा बनाने के साथ कई ऐसी योजनाओं पर भी काम कर रहे हैं जो लोगों को सीधे सीधे लाभ पहुंचा सकती हैं. हाल ही में महिलाओं के खाते में नकद पैसा भेजने के लिए झारखण्ड मुख्यमंत्री मइंया सम्मान योजना’ शुरु की गई है.
इस योजना के तहत 21 से 50 साल की महिलाओं के बैंक खाते में सरकार हर महीने की 15 तारीख को एक हजार रुपये जमा कराएगी.
सरकार ने करीब 50 लाख महिलाओं को इस योजना से जोड़ने का लक्ष्य रखा है.
81 सदस्यीय झारखंड विधानसभा में 28 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. ये सभी सीटें संथाल परगना, कोल्हान और उत्तरी छोटानागपुर क्षेत्र में आती हैं.
2019 में भाजपा ने झारखंड में आदिवासी क्षेत्रों और सरकार दोनों पर अपनी पकड़ खो दी, क्योंकि उसे आदिवासियों के लिए आरक्षित केवल दो सीटें ही मिली थी.
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद भाजपा इस झटके से उबरने और सत्ता में वापसी के लिए रणनीति बना रही है. कई दौर की रणनीति और बैठकें चल रही हैं, जिनमें कार्यकर्ता मंथन कर रहे हैं.
भाजपा के चुनाव प्रभारी के तौर पर केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और सह प्रभारी असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा मोर्चा संभाले हुए हैं.
सरमा ने संथाल परगना के साथ-साथ कई जिलों का दौरा किया है और पिछले डेढ़ महीने में कम से कम 10 बार कार्यकर्ताओं और समर्थकों के साथ बैठकें की हैं.
भाजपा नेता लगातार संथाल परगना में ‘बांग्लादेशी घुसपैठियों’ और बदलती जनसांख्यिकी का मुद्दा उठाते हुए आरोप लगा रहे हैं कि सरकार ने इस क्षेत्र में आदिवासियों को हाशिए पर धकेल दिया है.
भाजपा हर मंच से बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा उठाते हुए डेमोग्राफी चेंज की बात करती है.
फ़िलहाल जो स्थिति है उसमें ऐसा लगता है कि बीजेपी और जेएमएम-काग्रेंस गठबंधन के मुकाबले में सत्ताधारी गठबंधन यानि जेएमएम और कांग्रेस भारी नज़र आते हैं.
बीजेपी अभी तक कोई ऐसा एक केंद्रीय मुद्दा तय नहीं कर पाई है जिस पर आदिवासियों को जोड़ा जा सकता है. बीजेपी की रणनीति फ़िलहाल घुसपैठ को मुद्दा बनाने और जेएमएम या कांग्रेस के नाराज़ नेताओं को इस्तेमाल कर आदिवासी वोट को बांटने की नज़र आ रही है
वहीं हेमंत सोरेन ने जेल में बिताए पांच महीनों को लेकर जो दर्द जताया है, वह स्वाभाविक प्रतिक्रिया नज़र आती है. लेकिन JMM को इस मुद्दे को केंद्र में रखने के साथ साथ बारीकी से यह आकलन भी करना होगा कि इसका असर कितना व्यापक है.