मणिपुर की स्थिति पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाने वाले कांग्रेस के नए सांसद बिमोल अकोइजाम के तीखे भाषण के एक दिन बाद पीएम मोदी ने संसद में एक साल पहले शुरू हुए जातीय संघर्ष पर अपनी पहली ठोस टिप्पणी करके जवाब दिया.
मणिपुर संकट को स्वीकार करते हुए उन्होंने जोर देकर कहा कि कानून और व्यवस्था को बहाल करने के लिए पर्याप्त कदम उठाए गए हैं. उन्होंने कहा कि राज्य में ज़्यादातर संस्थाएं सामान्य रूप से काम कर रही हैं. उन्होंने राज्य में “राजनीति से परे जाकर शांति और स्थिरता लाने” की आवश्यकता की बात की है. लेकिन साथ ही कांग्रेस को अतीत में इसी तरह की घटनाओं से निपटने के तरीके के लिए दोषी ठहराया. इसके साथ ही उन्होंने इशारा किया किकि राज्य में सामाजिक तनाव गहरी जड़ें जमाए हुए हैं.
हालांकि, अब प्रयास शांति पर ध्यान केंद्रित करने और दोष देने का खेल जारी रखने की अनुमति नहीं देने का होना चाहिए.
पीएम मोदी अपनी सरकार या दूसरों की उपलब्धियों पर गर्व करने से कभी नहीं कतराते हैं. लेकिन मुश्किल सवालों या संकटों पर उनका सामान्य जवाब चुप्पी रहा है. हालांकि इस तरह के इशारों ने उनकी छवि बनाने और आलोचना को दूर रखने में मदद की है.
लेकिन मणिपुर जैसे संकट पर भारत सरकार के निर्विवाद नेता की ओर से ठोस बयान ना आने से समस्या बढ़ी ही है. देर से ही सही लेकिन उनकी टिप्पणियों से मणिपरु को संकट से बाहर निकालने के लिए फिर से प्रयास शुरू हो जाने चाहिए.
मणिपुर को लेकर जैसा कि पीएम मोदी दावा करते हैं, सामान्य स्थिति के करीब भी नहीं है. संघर्ष के दौरान विस्थापित हुए लोग अभी भी वैसे ही हैं. जिनेवा स्थित आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र की एक रिपोर्ट कहती है कि पिछले साल दक्षिण एशिया में विस्थापित हुए 69 हज़ार लोगों में से 67 हज़ार लोग मणिपुर के थे.
इंफाल में कुकी-ज़ो निवासी और चुराचांदपुर में मैतेई निवासी अन्य क्षेत्रों के अलावा अभी भी अपने घरों को वापस नहीं जा पा रहे हैं. यहां तक कि इन समुदायों के सरकारी कर्मचारी और विधायक भी विस्थापित हैं. जिससे शासन, कल्याण, स्कूली शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हो रही हैं.
स्व-घोषित “ग्राम रक्षा दस्ते” या सशस्त्र निगरानीकर्ता अभी भी घाटी और पहाड़ी क्षेत्रों में घूम रहे हैं क्योंकि संघर्ष अब तक शांतिपूर्ण माने जाने वाले जिरीबाम जैसे जिलों में फैल गया है.
वहीं राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र को केंद्रीय एजेंसियों ने अपने नियंत्रण में ले लिया है क्योंकि अनुच्छेद 355 को लागू किए बिना ही एक वास्तविक केंद्रीय नियम लागू हो गया है. जबकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का दावा है कि यह सीएम एन बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के “सहयोग” से हुआ है.
सिंह को अल्पसंख्यक समुदायों के अपने ही पार्टी के लोगों का विश्वास हासिल नहीं है और नेतृत्व में किसी भी बदलाव के बिना शांति या सुलह की कोई संभावना मुश्किल बनी हुई है. लेकिन न तो पीएम मोदी और न ही अमित शाह ने इसे प्रभावित करने की कोई इच्छा दिखाई है.
क्योंकि सिर्फ शेखी बघारने और संकट को स्वीकार करने से मणिपुर में समस्याएं हल नहीं होंगी. बल्कि पीएम को उन बदलावों का नेतृत्व करने में सक्रिय होना होगा जो शांति और सुलह की ओर ले जाएंगे.
मणिपुर पिछले एक साल से ज्यादा समय से अशांति और हिंसा के दौर से गुजर रहा है. सरकार की ओर से तमाम कवायदों के बावजूद आज भी हालात में कोई बड़ा बदलाव आता नहीं दिख रहा है. जाहिर है मुख्य रूप से मैतेई और कुकी समुदायों के बीच चल रहे हिंसक टकराव की आग में आम लोग झुलस रहे हैं और इस पर काबू पाने में सरकार नाकाम रही है.
इस हिंसा में 200 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और आज भी सरकार शांति कायम कर पाने में नाकाम है. जहां एक ओर केंद्र सरकार संसद में यह आश्वासन दे रही है कि मणिपुर में शांति बहाल हो रही है. वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट को यह टिप्पणी करनी पड़ रही है कि उसे मणिपुर सरकार पर भरोसा नहीं है.
(Image Credit: PTI)