राष्ट्रीय जनगणना के लिए हाल ही में जारी अधिसूचना ने केंद्र शासित प्रदेश अंडमान और निकोबार के अधिकारियों को तीन सवालों के जवाब खोजने पर मजबूर कर दिया है…
. पहला, सेंटिनली लोगों की गणना कैसे की जाए, जबकि प्रशासन ने उत्तरी सेंटिनली द्वीप, जो उनका घर है, उससे कम से कम 5 किलोमीटर दूर रहने का निर्णय लिया है?
. दूसरा, ग्रेट निकोबार के शोम्पेन की गणना कैसे की जाए, जो द्वीप के लगभग दुर्गम कोनों में रहते हैं?
. तीसरा, क्या सेंटिनली और शोम्पेन की संख्या गिनने पर जोर देना भी उचित है?
दिसंबर 2014 में अंडमान और निकोबार प्रशासन द्वारा द्वीप के पास न जाने या सेंटिनली लोगों को परेशान न करने के निर्णय के बाद यह पहली जनगणना है.
2011 और 2001 की जनगणनाएं, जनगणना अधिकारियों द्वारा द्वीप के तटों के निकट जाकर प्राप्त आंकड़ों पर आधारित थी.
अंडमान और निकोबार पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, 2014 के बाद से उन्होंने ऐसा नहीं किया है. यहां तक कि पिछले 11 वर्षों में द्वीपवासियों द्वारा मारे गए और द्वीप के तटों पर दफनाए गए कम से कम चार घुसपैठियों के शवों को भी निकालने के लिए नहीं.
इसमें एक अमेरिकी मिशनरी भी शामिल है, जिसने अवैध रूप से द्वीप पर पहुंचने और स्थानीय जनजाति को ईसाई धर्म का प्रचार करने का प्रयास किया था.
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के एक सरकारी अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, “दिसंबर 2014 में प्रशासन ने “नज़र रखो और हाथ मत रखो” नीति का सख्ती से पालन करने का फैसला किया. तब तक केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन नियमित रूप से द्वीप के चारों ओर नौकायन करता रहेगा और कुछ दूरी बनाए रखेगा (जहां सेंटिनली लोगों के तीर उन तक न पहुंच पाएं).
उन्होंने आगे कहा, “फ़िलहाल केवल इंडियन कोस्ट गार्ड (ICG) के जवान ही दूर से द्वीप पर नज़र रखते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि शिकारी या घुसपैठिए इसके पास न आएं. अब हमें यह देखना होगा कि जनगणना कैसे की जा सकती है.”
2011 की जनगणना के मुताबिक, इस द्वीप पर 15 लोग रहते हैं, जिनमें 12 पुरुष और 3 महिलाएं हैं. 2001 की जनगणना के मुताबिक, यह संख्या 39 थी, जिनमें 21 पुरुष और 18 महिलाएं थीं.
केंद्र शासित प्रदेश की अन्य जनजातियों जैसे – जारवा, शोम्पेन, ओंग, निकोबारी और ग्रेट अंडमानी, जिनसे स्वायत्त आदिवासी कल्याण संस्था, अंडमान आदिम जनजाति विकास समिति (AAJVS) के माध्यम से संपर्क किया गया है.
लेकिन इसके विपरीत सेंटिनली अपने 59.67 वर्ग किलोमीटर के द्वीप पर एकांत पसंद करते हैं. वे शिकार करते हैं और मछली पकड़ते हैं बाकी ज्यादा जानकारी इनके बारे में नहीं है.
एंथ्रोपोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के ज्वाइंट डायरेक्टर एम शशिकुमार ने कहा, “हमने हमेशा उनकी निजता का सम्मान किया है. 2014 में इस द्वीप पर आग लगने की एक घटना हुई थी इसलिए एक सरकारी टीम ने द्वीप का चक्कर लगाया था. लेकिन तब से कोई भी द्वीप के पास नहीं गया है. उनकी आबादी का नक्शा बनाने के लिए एक खास तकनीक का इस्तेमाल करने की बात चल रही है लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि क्या इससे सटीक अनुमान लगाया जा सकेगा या ऐसा करना नैतिक भी है या नहीं.”
एम शशिकुमार 2014 में द्वीप का चक्कर लगाने वाली टीम का हिस्सा थे.
उनका संदर्भ संभवतः इस बात की ओर इशारा करती है कि ड्रोन का उपयोग सेंटिनली लोगों की गिनती के लिए किया जा सकता है लेकिन जनजातीय समाज पर इसका प्रभाव और विनाशकारी हो सकता है.
शशिकुमार ने बताया कि 1997 तक सरकार ने द्वीप पर मित्रवत मिशन भेजने की कोशिश की. टीमें तट पर उतरीं और सेंटिनली लोगों को नारियल जैसे उपहार दिए. लेकिन द्वीपवासियों में संक्रमण फैलने के ख़तरे को देखते हुए यह भी रोक दिया गया.
द्वीपों की सुरक्षा
एक विशेषज्ञ ने कहा कि सेंटिनली लोगों की गणना करना भी शायद उचित नहीं होगा.
अंडमान एंड निकोबार ट्राइबल रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट के रिसर्च एडवाइजरी बोर्ड के पूर्व सदस्य मनीष चांडी ने कहा, “मुझे लगता है कि सेंटिनली लोगों की जनगणना करने की कोशिश करना व्यर्थ है. यहां तक कि अनुमान भी केवल अनुमान ही है. द्वीप के आसपास के आजीविका संसाधनों जैसे चट्टान, समुद्री संसाधन और स्वयं द्वीप को बाहरी हस्तक्षेप और घुसपैठ से बचाना कहीं अधिक महत्वपूर्ण है. सरकार ऐसा करने का प्रयास कर रही है लेकिन वह इसे और भी बेहतर कर सकती है. स्थानीय मछुआरे अभी भी निर्यात बाजार के लिए समुद्री संसाधनों, जैसे झींगा मछली और व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण मछलियों का दोहन करते हैं.”
ग्रेट निकोबार के शोम्पेन भी एक और चुनौती पेश करते हैं. ग्रेट निकोबार में शोम्पेन की कुछ आबादी अभी भी संपर्कविहीन है.
लिटिल एंड ग्रेट निकोबार ट्राइबल काउंसिल के अध्यक्ष बरनबास मंजू ने कहा, “पश्चिमी तट पर जंगलों के बहुत अंदर रहने वाले शोम्पेन इस तरफ (कैंपबेल खाड़ी) नहीं आते. केवल लाफुल (क्षेत्र का नाम) के शोम्पेन ही कभी-कभी राशन वगैरह के लिए कैंपबेल खाड़ी आते हैं. वे अपनी बोली बोलते हैं लेकिन कभी-कभी उनसे संपर्क किया जा सकता है. उन तक पहुंचने के लिए आपको जंगलों से होकर बहुत दूर तक पैदल चलना पड़ता है और वे बाहरी लोगों को पसंद नहीं करते.”
2011 की जनगणना में शोम्पेन की संख्या 229 थी, जिसमें 141 पुरुष तथा 88 महिलाएं थीं.
शशिकुमार ने इस बात पर प्रकाश डाला कि शोम्पेन के सामने आने वाले ख़तरों पर नज़र रखना महत्वपूर्ण है लेकिन उन्होंने भी स्वीकार किया कि प्रशासन सभी समूहों तक पहुंचने में सक्षम नहीं है.
उन्होंने कहा, “शोम्पेन तक पहुंचना बहुत मुश्किल काम है. सुनामी के बाद पूर्व-पश्चिम सड़क टूट गई थी. आप भले ही 10 किलोमीटर अंदर पहुंच जाएं लेकिन ज़्यादातर शोम्पेन समूह 27 किलोमीटर से आगे भी हो सकते हैं. शोम्पेन एक होमोजेनियस ग्रुप यानि सजातीय नहीं हैं. शोम्पेन समूह आपस में लड़ सकते हैं या एक-दूसरे से बच सकते हैं. हमें ठीक से पता नहीं है कि वे कैसे कर रहे हैं. अगर आप पिछली जनगणना के आंकड़ों पर गौर करें तो पुरुष-महिला अनुपात बहुत चिंताजनक है. महिलाओं की संख्या बहुत कम है.”
ऐसी आशंका है कि ग्रेट निकोबार समग्र विकास परियोजना शोम्पेन और उन जंगलों पर प्रभाव डाल सकती है जिन पर वे निर्भर हैं.
ग्रेट निकोबार समग्र विकास परियोजना के अंतर्गत एक अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल (ICCT); एक इंटरनेशनल एयरपोर्ट; एक पावर प्लांट और एक टाउनशिप बनाने की योजना है. इसके अलावा एक ट्रंक इंफ्रास्ट्रक्चर रोड भी है जो ग्रेट निकोबार द्वीप से होकर गुज़रेगी. इसकी कुल लागत 81 हज़ार 800 करोड़ आंकी गई है.
निकोबार द्वीप समूह सुंडालैंड जैव विविधता हॉटस्पॉट में आता है और इंडोनेशियाई द्वीपसमूह के पश्चिमी आधे हिस्से को कवर करता है.
द्वीपों में काम कर चुके एक मानवविज्ञानी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “जनसंख्या की मैपिंग करने से पहले यह विचार करना ज़रूरी हो सकता है कि आप जनगणना क्यों करेंगे? विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों के लिए नीतियां और कल्याणकारी योजनाएं हैं लेकिन उनके कार्यान्वयन का आकलन करना भी ज़रूरी है. वनों के नुकसान और विकास परियोजनाओं पर शोम्पेन के विचारों का डॉक्यूमेंटेशन तो है लेकिन उनके विचारों पर क्या किया गया है? यह भी समीक्षा करना ज़रूरी है कि उनके लिए कल्याणकारी योजनाओं पर कितना पैसा खर्च किया गया है और किस लिए?”