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मेरी हसरत क्रिकेट नहीं रग्बी टीम में शामिल होना है – गणेश धंगड़ामाझी

ओडिशा के मलकानगिरी ज़िले की बोंडा घाटी के एक छोटे से गाँव में हमारी मुलाक़ात गणेश धंगड़ामाझी से हुई. पहाड़ी बोंडाओं के इस गाँव का नाम बोंडगुड़ा है जो मुदलीपड़ा पंचायत में पड़ता है.

गणेश से हुई बातचीत बताने से पहले यह बताना ज़रूरी है कि पहाड़ी बोंडा भारत में बसने वाले सबसे पहले आदिवासी समूहों में से एक माना जाता है. इन आदिवासियों के इतिहास के बारे में सही सही कोई आकलन बताना तो कठिन है. लेकिन माना जाता है कि कम से कम 60 हज़ार साल से वो बोंडा घाटी के जंगलों में मौजूद हैं.

आज के हालात की बात करें तो अभी भी बाक़ी आदिवासी समुदायों की तुलना में यह आदिवासी समुदाय मुख्यधारा से कटा हुआ है. इसके अलावा इस आदिवासी समुदाय को उन आदिवासी समुदायों में गिना जाता है जिनकी आबादी कम हो रही है.

गणेश इसी आदिवासी समुदाय से हैं. गणेश पहाड़ी बोंडा समुदाय के उन गिने चुने बच्चों में से हैं जो 12 क्लास तक पुहँचे हैं. गणेश ने बताया कि जब वो पहली बार पढ़ने के लिए भुवनेश्वर गए तो काफ़ी डरे हुए थे. उनके स्कूल में ओडिया, अंग्रेज़ी या फिर हिन्दी में बात करने वाले बच्चे थे.

गणेश की मातृभाषा रेमो है. शुरूआतें में वो कोशिश करता कि अपने साथ के बच्चों से जितना कम हो सके बात ना करनी पड़े. लेकिन धीरे धीरे उसने भी ओडिया और हिन्दी सीख ही ली.

पहाड़ी जंगल के एक छोटे से गाँव से पहुँचे गणेश को भुवनेश्वर के स्कूल पढ़ाई के लिए ले जाया गया था. लेकिन इस आदिवासी लड़के में खेलने की एक स्वभाविक ललक थी. उसके स्कूल में क्रिकेट, हॉकी और कब्बडी जैसे खेलों की टीम थीं.

गणेश पहले कुछ दिन क्रिकेट में मन लगाने की कोशिश करता है. लेकिन उसका मन क्रिकेट में नहीं लगता है. एक दिन स्कूल के मैदान में रग्बी का मैच था और गणेश अपने साथियों के साथ वो मैच देख रहा था.

उसने हमें बताया कि यह मैच देख कर उसे लगा कि यही वो खेल है जिसमें उसे होना चाहिए. उसके बाद उसने स्कूल के रग्बी कोच को अपनी इच्छा बताई. कोच ने गणेश को ट्रेनिंग देने से पहले कई टेस्ट देने को कहा.

अंततः उसे स्कूल की रग्बी टीम में खेलने का मौक़ा मिला. गणेश से आप भारत के स्टार क्रिकेट खिलाड़ियों के बारे में पूछे तो वो ज़्यादा कुछ नहीं बता सकते हैं. लेकिन रग्बी के सभी खिलाड़ियों के बारे में जानते हैं.

फ़िलहाल वो राज्य की ज़िला टीम से खेलते हैं. लेकिन उनकी तमन्ना भारत की राष्ट्रीय टीम में खेलने की है. गणेश स्कूल से छुट्टी के दिनों में हर साल अपने गाँव आते हैं. ज़ाहिर है जब वो गाँव आते हैं तो गाँव के लड़के लड़कियों को अपने स्कूल और दोस्तों की कहानी सुनाते हैं.

हमें लगा कि आदिवासियों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए गणेश धंगड़ामाझी जैसे लड़के लड़कियाँ सबसे असरदार लोग हो सकते हैं.

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