HomeLaw & Rightsवन अधिकार कानून से जुड़े 2023 के सर्कुलर के खिलाफ 150 संगठन एकजुट

वन अधिकार कानून से जुड़े 2023 के सर्कुलर के खिलाफ 150 संगठन एकजुट

देश के करीब 150 आदिवासी संगठन सितंबर 2023 की गाइडलाइन और मार्च 2024 की एडवाइज़री से नाराज़ हैं. उनका आरोप है कि जनजातीय कार्य मंत्रालय का ये कदम वन अधिकार कानून में दिए गए ग्राम सभा के अधिकारों को कमज़ोर करता है.

हाल ही में देशभर के 150 से ज्यादा आदिवासी अधिकार संगठनों ने केंद्र सरकार के आदिवासी कार्य मंत्रालय से 2023 में जारी की गई सामुदायिक वन संसाधन (CFR) प्रबंधन गाइडलाइंस और 2024 की संयुक्त एडवाइज़री को तुरंत वापस लेने की मांग की है.

इन संगठनों का कहना है कि ये नए नियम वन अधिकार कानून (FRA), 2006 की आत्मा के खिलाफ हैं और ग्राम सभा की शक्तियों को कमज़ोर करते हैं.

मामला क्या है?

सितंबर 2023 में मंत्रालय ने “सामुदायिक वन संसाधन (CFR) के संरक्षण, प्रबंधन और उपयोग” को लेकर नई गाइडलाइन जारी की थी.

इसके बाद मार्च 2024 में आदिवासी कार्य मंत्रालय और पर्यावरण मंत्रालय ने मिलकर एक संयुक्त एडवाइजरी भी जारी की.

संगठनों का कहना है कि इन नए नियमों से वन अधिकार कानून (FRA), 2006 के तहत ग्राम सभा को मिले अधिकार प्रभावित हो रहे हैं.

2015 और 2023 की गाइडलाइन में अंतर

2015 की गाइडलाइन में ग्राम सभा को यह स्वतंत्रता दी गई थी कि वह अपने सामुदायिक जंगल संसाधनों के लिए खुद योजना बनाए, उसे लागू करे और उसका प्रबंधन करे. यानी पूरा अधिकार ग्राम सभा के पास था.

2023 की गाइडलाइन में कई बदलाव किए गए. इसमें कहा गया कि ग्राम सभा की बैठक पंचायत सचिव बुलाएगा, सीएफआर प्रबंधन समिति को वन विभाग से समन्वय करना होगा, ज़िला स्तर पर अलग मॉनिटरिंग कमेटी बनेगी और ग्राम सभा के बैंक खाते तक के लिए अफसरों की मंजूरी ज़रूरी होगी.

संगठनों का कहना है कि इससे ग्राम सभा की स्वायत्तता खत्म होती है और वन विभाग को अनुचित ताकत मिलती है.

संयुक्त एडवाइजरी पर भी आपत्ति

मार्च 2024 की एडवाइजरी में कहा गया कि सीएफआर प्रबंधन योजनाएं वन विभाग की मदद से और वर्किंग प्लान कोड 2023 के हिसाब से बनाई जाएं.

इसमें वन अधिकारियों को समितियों में शामिल करने का भी सुझाव दिया गया.

जबकि कानून कहता है कि ये समितियां केवल ग्राम सभा बना सकती है.

मंत्रालय पर आरोप

संगठनों का आरोप है कि वन अधिकार कानून लागू करने की ज़िम्मेदारी आदिवासी कार्य मंत्रालय (MoTA की है, लेकिन मंत्रालय ने अपनी भूमिका निभाने के बजाय पर्यावरण मंत्रालय को बराबरी की भूमिका दे दी है.

उनका कहना है कि यह कानून के खिलाफ है क्योंकि वन अधिकार कानून से जुड़े स्पष्टीकरण और दिशा-निर्देश जारी करने का अधिकार केवल जनजातीय कार्य मंत्रालय के पास है.

ज़मीनी असर

छत्तीसगढ़ में इसी साल वन विभाग ने आदेश जारी कर खुद को सामुदायिक वन संसाधन (Community Forest Resources) अधिकार लागू करने वाली नोडल एजेंसी घोषित कर दिया.

आदेश में कहा गया कि सिर्फ पर्यावरण मंत्रालय द्वारा मंज़ूर योजना ही लागू होगी.

विरोध के बाद इस आदेश पर रोक लगा दी गई. लेकिन संगठनों का कहना है कि यह दिखाता है कि नई गाइडलाइन से वन विभाग और ताक़तवर हो गया है और ग्राम सभा को किनारे कर दिया गया है.

संगठनों ने हाल ही में शुरू हुए पीएम जुगा (PM JUGA) मिशन का भी विरोध किया है. उनका कहना है कि इस मिशन के तहत वन अधिकार कानून को एक सरकारी स्कीम बना दिया गया है.

क्या है मांग?

संगठनों ने मांग की है कि सितंबर 2023 की गाइडलाइन और मार्च 2024 की एडवाइज़री तुरंत वापस ली जाएं.

2015 की गाइडलाइन को फिर से लागू किया जाए.

राज्यों को साफ निर्देश दिया जाए कि ग्राम सभा ही सामुदायिक वन संसाधनों की वैधानिक और सर्वोच्च निकाय है.

आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच, संपूर्ण भारत वन आंदोलन मंच, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, जन स्वास्थ्य अभियान, हिमधारा समूह जैसे बड़े नेटवर्क और अभिनेत्री व डॉक्यूमेंट्री फिल्मकार सुहासिनी मुले ने भी इन मांगों का समर्थन किया है.

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