HomeAdivasi Dailyमध्यप्रदेश: आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ने वालों का दमन

मध्यप्रदेश: आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ने वालों का दमन

मध्य प्रदेश में मनरेगा और वन अधिकार कानून को लागू कराने के लिए काम करने वाले संगठनों के कार्यकर्ताओं पर दमन हो रहा है. यहां की जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता को ज़िला बदर का नोटिस दिया गया है.

मध्य प्रदेश के बुरहानपुर कलेक्टर ने जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता माधुरी बहन को ज़िला बदर कर दिया है. यानि अब वो इस ज़िले में दाखिल नहीं हो सकती हैं. इस सिलसिले में जागृत आदिवासी दलित संगठन ने प्रशासन पर दमन का आरोप लगाया है.

जागृत आदिवासी दलित संगठन मध्य प्रदेश के कई ज़िलों में लंबे समय से आदिवासी अधिकारों के लिए काम कर रहा है. इस संगठन ने मारेगा और वन अधिकार कानून को लागू करने के लिए ख़ासतौर से काम किया है.

जागृत आदिवासी दलित संगठन ने कहा है कि 30 अप्रैल को आदिवासी युवा कार्यकर्ता अंतराम अवासे के गिरफ्तार कर लिया गया था. उसके बाद अब माधुरी बहन को बुरहानपुर कलेक्टर द्वारा ज़िला बदर का नोटिस दिया गया है. 

संगठन का कहना है कि पिछले 5 वर्ष से बुरहानपुर के आदिवासी वन अधिकार अधिनियम 2006 के सही क्रियान्वयन के लिए और वन विभाग द्वारा अवैध बेदखली और अत्याचार के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं. 

इसके अलावा आदिवासी और जागृत आदिवासी दलित संगठन 2020 से खंडवा और बुरहानपुर में हो रहे वन कटाई पर रोक की मांग कर रहे हैं. विशेषकर 8 अक्तूबर 2022 से बुरहानपुर में निरंतर चल रहे कटाई ( 6 माह में 15000 -20000 एकड़ जंगल कट गए हैं) के खिलाफ शासन और स्थानीय प्रशासन से कार्यवाही की मांग करते हुए आंदोलन कर चुके हैं. 

संगठन ने दावा किया कि इस भयवाह कटाई को उजागर करते हुए जैसे ही संगठन ने प्रशासकीय निष्क्रियता और मिलीभगत को इसके लिए ज़िम्मेवार ठहराया, उस पर दमन शुरू हो गया है.  

वन विभाग के प्रतिवेदन पर कलेक्टर द्वारा दिया गया ज़िला बदर नोटिस में माधुरी बहन को उसी वन कटाई के लिए ज़िम्मेवार ठहराया गया है जिसके खिलाफ संगठन के सभी कार्यकर्ता लगातार शिकायतें दे रहे हैं और आंदोलन कर रहे हैं. 

संगठन की तरफ से जारी एक बयान में बताया गया है कि माधुरी बहन पर 21 वन प्रकरण और 2 पुलिस प्रकरण बनाया गया ऐसा इसी नोटिस से सूचना मिली है. इसके अलावा कानूनी वन अधिकार के लिए और वन अमले के अत्याचार के खिलाफ आदिवासी आंदोलन को भी ‘सरकार विरोधी’ बताते हुए उसे क्रिमिनल गतिविधि करार किया गया है. 

वन कटाई के विरोध करने पर दमन 

जागृत आदिवासी दलित संगठन ने कई दस्तावेज़ और बातचीत के रिकार्ड जारी किये हैं. इसमें संगठन अधिकारियों और माधुरी बहन के बीच हुई बातचीत जारी की है. इसके अलावा माधुरी बहन और संगठन की तरफ से दर्ज की गई शिकायतों का रिकॉर्ड भी पेश किया गया है. 

इस रिकॉर्ड में 9 अक्तूबर 2022 से 17 अप्रैल 2023 तक माधुरी बहन द्वारा कलेक्टर, डीएफ़ओ और पुलिस अधीक्षक को व्हाट्सअप्प द्वारा दिये गए जगह जगह नयी कटाई की सूचनाएँ और कार्यवाही की मांग के संदेश और 60 चैट शामिल हैं.

संगठन का कहना है कि इससे ना सिर्फ यह स्पष्ट होता है कि माधुरी बहन और संगठन के कार्यकर्ताओं को वन कटाई के मामलों में झूठा फसाया गया है , बल्कि यह भी स्पष्ट होता है कि 6 माह से भयवाह वन कटाई प्रशासन के मौन सहमति और मिलीभगत से ही हुआ है. इसीलिए इस वन कटाई का सबसे निरंतर और सशक्त विरोध करने वाले संगठन पर यह हमला हो रहा है. 

संगठन की तरफ से कहा गया है कि यह भी उल्लेखनीय है कि यह सब वन मंत्री श्री विजय शाह के क्षेत्र में हो रहा है और इसकी जानकारी मुख्य मंत्री और गृह मंत्री को भी है. 

वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन के बदले आदिवासी दावेदारों का प्रताड़ना

जागृत आदिवासी दलित संगठन ने दावा किया है कि बुरहानपुर ज़िले में लगभग 10,000 वन अधिकार दावे अभी भी लंबित हैं. परंतु अधिनियम में बेदख़ली से संरक्षण के बावजूद लगातार दावेदारों को बेदखल करने का प्रयास किया जा रहा है . 

ग्राम सिवल में 2019 में बेदख़ली मुहिम के तहत फ़ाइरिंग किया गया था जिसमें 4 आदिवासी छर्रे से घायल हुए थे. कानूनी जागरूकता फैलाने में बेहद सक्रिय इसी गाँव के युवा कार्यकर्ता को 30 अप्रैल 2023 को झूठे प्रकरण में गिरफ्तार किया गया था. 17 मई 2023 को बिना किसी सूचना दिये अचानक वन और पुलिस कर्मी का एक दल ग्राम टंगीयापाट के 14 दावेदारों के घर तोड़ गए

इसी वन सर्कल के खंडवा ज़िले में नेगाँव-जमनीया में जुलाई 2021 को वन विभाग ने 40 आदिवासी परिवार पर हमला करते हुए उनके घर तोड़ डाले और पूरा सामान लूट लिया तथा जून 2020 में ग्राम भिलाईखेड़ी में आदिवासी दावेदारों के कानूनी जागरूकता के कारण उन्हें बेदखल नहीं कर पाये पर अब 12 मई 2023 को उनके 25 घर तोड़ गए.

जागरूक आदिवासी वन अधिकार दावेदारों को लगातार झूठे प्रकरण में गिरफ्तार करने और प्रताड़ित करने का लंबा सिलसिला रहा है. टंगीयापाट के 2 आदिवासी कार्यकर्ताओं को अगस्त 2020 में खाकनार रेंज परिसर में बने कर्मचारी क्वार्टर में हथकड़ी लगा कर रात भर यह बोल कर पीटा गया था.   

अगले दिन कैलाश जमरे मार पीट के कारण कोर्ट परिसर में बेहोश हो गए.  इसी तरह लिंगी फाटा के ग्यारसीलाल अवाए को नवम्बर 2020 को खेत से चारा लाते समय वन अमले ने ‘उठा’ लिया और बर्बर पीटा. 

जुलाई 2021 में आदिवासी कार्यकर्ता सुरसिंग अजनारे के साथ तब ताल मार पीट की गयी जब तक गाँव वालों ने उन्हें नहीं छुड़ाया . 13 अप्रैल 2022 को पलासपानी के कार्यकर्ता , रतन अलावे, के घर में घुस कर उन्हें राइफल बट्ट और लाट घुसों से पीटा. 

सभी पर झूठे मुकदम्मे भी लगाए गए। कानूनी अधिकार मांगने वाले आदिवासी कार्यकर्ताओं के प्रताड़ना के लंबे सूची के ये मात्र कुछ उदाहरण हैं. वन अधिकार कानून के सही क्रियान्वयन और इन अत्याचारों के खिलाफ सशक्त आदिवासी आंदोलन को ‘सरकार विरोधी’ और आपराधिक बताया जा रहा है.

अपने संवैधानिक और कानूनी अधिकार के लिए लामबंध जागृत आदिवासी दलित संगठन से जुड़े बड़वानी और खरगोन के आदिवासियों को भी लगातार प्रताड़ना झेलना पड़ता आ रहा है. ग्राम सभा के अधिकार मांगने , ‘मनरेगा’ योजना में काम और समय पर पूरा मजदूरी भुगतान मांगने, स्वास्थ्य सेवाओं में ( विशेषकर मातृतव सेवाओं) में सुधार मांगने, डूब प्रभावितों के कानून अनुसार पुनर्वास मांगने पर इन पर फ़ौजदारी मुक़द्दमे लगे हैं. 

उन्हें गिरफ्तार किया गया है. इन्हें सब मांगों के लिए आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले वाल सिंग ससतिया को भी पिछले वर्ष बड़वानी कलेक्टर द्वारा ज़िला बदर नोटिस दिया गया था. आक्रोशित आदिवासी आंदोलन के बाद ज़िला बदर नहीं किया गया था अनियमित रूप से उन्हें दबाने उनसे 2 लाख रूपय का बॉन्ड भराया गया था जो बाद में कमिश्नर द्वारा खारिज किया गया था. 

मध्य प्रदेश वह राज्य है जहां पर देश की सबसे बड़ी आदिवासी आबादी रहती है. यह जनसंख्या राजनीतिक रूप से भी एक दबाव समूह मानी जाती है.

इसके बावजूद इस राज्य में आदिवासियों के ख़िलाफ़ अत्याचार सबसे अधिक होते हैं. इसके अलावा आदिवासियों को अधिकार देने वाले क़ानून लागू करने के मामले में भी यह प्रदेश अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहा है.

जागृत आदिवासी दलित संगठन लंबे समय से मध्य प्रदेश में आदिवासी अधिकारों के लिए काम कर रहा है. इस संगठन के लोग मनरेगा और वन अधिकार क़ानून को लागू करवाने के लिए लोगों में जागरूकता अभियान चलाने के साथ साथ, प्रशासन पर दबाव बनाने के लिए आंदोलन भी करता है.

शायद इसलिए यह संगठन और ज़ाहिर है उससे जुड़े नेतृत्वकारी लोग प्रशासन के लिए मुश्किलें पैदा करते हैं. इसलिए अक्सर प्रशासन इस तरह के संगठनों को परेशान करने और डराने का काम करता है.

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